चित्तौड़गढ़. जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए चित्तौड़गढ़ कृषि विज्ञान केंद्र में केंचुओं की खाद तैयार की जा रही है. साथ ही किसानों को भी केंचुओं से खाद बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है और उन्हें ये भी उपलब्ध करवाए जा रहे हैं.
दरअसल, रासायनिक उर्वरकों के लगातार अंधाधुंध और असंतुलित प्रयोग से खेतों के मिट्टी की भौतिक दशा खराब होती जा रही है. इससे उत्पादकता में दिन-प्रतिदिन कमी आ रही है. साथ ही ऐसी भूमि से प्राप्त अन्न, फल और सब्जियों में भी पोषक तत्वों की गुणवत्ता में अपेक्षाकृत कमी देखने को मिली है. ऐसे में रासायनिक उर्वरकों के बजाय जैविक खाद के प्रयोग को ज्यादा उचित बताया जा रहा है .
पढ़ें: पेट्रोल-डीजल के विरोध की आड़ में जमकर हुई राजनीति, सरकार बनाने को लेकर नेताओं ने दिए अलग-अलग बयान
बताया जाता है कि केंचुआ खाद एक अद्वितीय खाद तकनीक है जो कि परंपरागत खाद तकनीक से पूर्ण रूप से भिन्न है. परंपरागत विधि में खाद कूड़े या अवशेष को अपघटित (सड़ा कर) कर बनाया जाता था, जबकि वर्मी कंपोस्टिंग में अपघटित होने योग्य कार्बनिक अवशेष केंचुओं द्वारा खाए जाते हैं. इसके बाद इनके शरीर के अंदर पचा कर अपोषक तत्वों को उत्सर्जित कर दिया जाता है. केंचुआ पालन को वमीकल्चर और केंचुओं के मल-मूत्र विष्ठा को वर्मी कंपोस्ट कहते हैं. इसमें विभिन्न पोषक तत्वों के अतिरिक्त हार्मोंन और एन्जाइम के साथ ही ह्यूमिक एसिड भी होता है. खेतों में पीएच मान को कम करने में भी वर्मी कंपोस्ट सहायक होता है. ये जमीन का एक संतुलित आहार है, जो जमीन की उर्वरक शक्ति को बढ़ाता है और पेड़ पोधों को संतुलित आहार दिला सकता है.
चित्तौड़गढ़ के कृषि विज्ञान केंद्र के मृदा वैज्ञानिक डॉ. रतनलाल सोलंकी ने बताया कि एक केंचुआ एक सप्ताह में 2-3 कोकून देता है और एक कोकून में 3-4 अंडे होते हैं. इस तरह एक प्रजनन में केंचुआ 6 महीने में 250 केंचुओं को पैदा करता है. उन्होंने बताया कि वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए छायादार और उंचे स्थान का चयन करना चाहिए, जहां पानी ना भरें. ये स्थान घने पेड़ों की छाया या छप्पर बनाकर तैयार किया जा सकता है. चयनित स्थान का फर्श कच्चा या पक्का हो सकता है. फर्श पर प्लास्टिक की शीट भी बिछाते हैं. पक्की ईंटों का खरंजा मिट्टी के साथ तैयार करना भी उपयुक्त रहता है. चित्तौड़गढ़ कृषि विज्ञान केंद्र में अभी गोबर का उत्पादन अधिक नहीं हैं. ऐसे में वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने के लिए विभाग को पशुपालकों से गोबर क्रय करना पड़ता है, जिससे वर्मी कंपोस्ट भी तैयार हो और किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जा सके.
पढ़ें: Special : राजधानी में दौड़ने वाली 200 लो फ्लोर बसों के 700 से ज्यादा स्टॉपेज...क्यू शेल्टर महज 145
बता दें कि चित्तौड़गढ़ शहर के निकट बोजुन्दा स्थित कृषि विज्ञान केंद्र पर साल 2011 में वर्मी कम्पोस्ट यूनिट की स्थापना हुई थी, जो काफी कारगर सिद्ध हो रही है. शुरुआत में यहां काफी कम मात्रा में वर्मी कंपोस्ट मिल पाता था. लेकिन अब समय के साथ उत्पादन में वृद्धि हुई है. प्रति वर्ष यहां 300 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट तैयार हो रहा है. साथ ही करीब 300 क्विंटल केंचुओं का भी उत्पादन होता है, जो किसानों को उपलब्ध करवाए जाते हैं. इससे चित्तौड़गढ़ जिले में वर्मी कंपोस्ट यूनिट को बढ़ावा मिल रहा हैं. कृषि विज्ञान केंद्र में जिले के लोगों को केंचुआ पालन और वर्मी कंपोस्ट उत्पादन का समय-समय पर प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है.