चित्तौड़गढ़. जिले में भारी बारिश के कारण सभी प्रमुख नदियां उफान पर है. ऐसे में में बारिश का पानी अब भी खेतों में जमा है. जिसके चलते खरीफ की फसलें चौपट हो चुकी है. वहीं ईटीवी भारत द्वारा चित्तौड़गढ़ शहर और आसपास के करीब 50 किलोमीटर के एरिया का सर्वे किया गया.
इस सर्वे के दौरान जो तस्वीरे उभर कर आई है वह बेहद चिंतनीय कही जा सकती है. गांव में फसलें पूर्णता चौपट हो चुकी है. हालांकि गंभीरी और बेडच का पानी धीरे-धीरे उतर रहा है. लेकिन बारिश के एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी इन गांव के खेतों में पानी जमा है और मक्का, जवार और सोयाबीन की फसलें पकने के सतय पूर्णता सूख चुकी है. हालत यह है कि पशुओं को खिलाने के लिए चारा तक नहीं बचा है. इस आफत भरी बारिश में फसलों के साथ-साथ चारा भी पानी के साथ खराब हो चुका है.
किसानों से हुई बातचीत में यह सामने आया है कि फसलें करीब-करीब पकने की कगार पर थी कि अचानक पानी का ऐसा जलजला आया कि खाने पीने के भी लाले पड़ गए. सुखी फसलों को देखकर किसान अगले चार महीने परिवार को कैसे चलाएंगे, इसे लेकर चिंतित है.
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एक तिहाई फसलें चौपट
जिले में मक्का और सोयाबीन की फसल सर्वाधिक की जाती है. खासकर निंबाहेड़ा, चित्तौड़गढ़, बड़ी, सादड़ी और बेगू उपखंड क्षेत्र में बड़े पैमाने पर मक्का के साथ सोयाबीन की फसल की जाती है. इन इलाकों में ही बारिश का प्रकोप सर्वाधिक रहा है. कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि जिले में करीब एक लाख 20 हजार हेक्टर क्षेत्र में मक्का और एक लाख 3 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की फसल की बुवाई की गई थी.
कुल मिलाकर जिलेभर में करीब तीन लाख 16 हजार हेक्टर क्षेत्र में खरीफ की फसल बोई गई थी. प्रारंभिक तौर पर बारिश प्रभावित इलाकों में 40 से लेकर 50 फ़ीसदी फसलें खराब होने का अनुमान लगाया जा रहा है. औसतन जिले भर में 35 प्रतिशत से अधिक फसलों के खराब होने की आशंका जताई जा रही है.
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कृषि अधिकारी हेमराज मीणा के अनुसार फसल बड़े पैमाने पर खराब होने की आशंका है. जिला प्रशासन के आदेशानुसार 15 सितंबर से फसली नुकसान की गिरदावरी की जा रही है. गिरदावरी के बाद ही फसल खराब की वास्तविक स्थिति सामने आ पाएगी.