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चित्तौड़गढ़: कजरी तीज पर महिलाओं ने गाए मंगल गीत - Kajri Teej fast

प्रदेश भर में गुरुवार को कजरी तीज मनाई गई. कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच इस बार महिलाओं ने घर में ही पूजा की. कपासन में भी कजरी तीज का त्योहार महिलाओं और लड़कियों ने हर्षोल्लास से मनाया. महिलाओं ने अपने घरों में ही नीम के पेड़ की पूजा की और अपने पतियों की लंबी उम्र की प्रार्थना की.

Importance of Kajri Teej,  Kajri Teej fast,  Pooja method of Kajri Teej
कजरी तीज पर महिलाओं ने गाए मंगल गीत
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Published : Aug 6, 2020, 10:01 PM IST

कपासन (चित्तौड़गढ़). प्रदेश भर में गुरुवार को कजरी तीज मनाई गई. कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच इस बार महिलाओं ने घर में ही पूजा की. मेवाड़ में कजरी तीज को सातुडी तीज भी कहा जाता है. कपासन में भी कजरी तीज का त्योहार महिलाओं और लड़कियों ने हर्षोल्लास से मनाया. महिलाओं ने अपने घरों में ही नीम के पेड़ की पूजा की और अपने पतियों की लंबी उम्र की प्रार्थना की.

Importance of Kajri Teej,  Kajri Teej fast,  Pooja method of Kajri Teej
महिलाओं और लड़कियों ने हर्षोल्लास से मनाया त्योहार

पढ़ें: Special : कजली तीज पर कोरोना का 'ग्रहण'...पहली बार नहीं होगा ऐतिहासिक मेले का आयोजन

कुंवारी कन्याओं के लिए कजरी तीज शुभ मानी जाती है. मान्यता है कि कजरी तीज पर अगर कुंवारी कन्याएं व्रत रखती हैं तो उन्हें सुंदर वर की प्राप्ति होती है. इस दिन पूजा के बाद महिलाएं और लड़कियां घर पर बने जौ, चने, चावल और गेहूं के सत्तू से चंद्रमा की पूजा करके ही अपना उपवास खोलती हैं. कई महिलाओं ने गाय की भी पूजा की. इस दौरान महिलाओं ने कजरी के मौके पर गाए जाने वाले गीत भी गाए. जो इस उत्सव का अभिन्न हिस्सा हैं. शाम को सूर्यास्त के बाद महिलाएं सज धज कर नीम की पूजा करने जाती हैं और उसके बाद कहानी सुनती हैं. कपासन में कई जगह पर महिलाओं एकत्र होकर गीत गाए और मेहंदी लगाई, कुमकुम, इत्र, पुष्प अर्पित कर कजरी माती की पूजा की.

क्या है धार्मिक मान्यता

भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की तृतीया को कजरी तीज मनाई जाती है. कजरी तीज को कई नामों से जाना जाता है. इसे सातुडी तीज और बूढ़ी तीज भी बुलाते हैं. व्रतधारी महिलाओं ने बताया कि 108 जन्म लेने के बाद आज ही के दिन पार्वती ने भगवान शिव का वरण किया था. इस दिन व्रत और पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है.

कपासन (चित्तौड़गढ़). प्रदेश भर में गुरुवार को कजरी तीज मनाई गई. कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच इस बार महिलाओं ने घर में ही पूजा की. मेवाड़ में कजरी तीज को सातुडी तीज भी कहा जाता है. कपासन में भी कजरी तीज का त्योहार महिलाओं और लड़कियों ने हर्षोल्लास से मनाया. महिलाओं ने अपने घरों में ही नीम के पेड़ की पूजा की और अपने पतियों की लंबी उम्र की प्रार्थना की.

Importance of Kajri Teej,  Kajri Teej fast,  Pooja method of Kajri Teej
महिलाओं और लड़कियों ने हर्षोल्लास से मनाया त्योहार

पढ़ें: Special : कजली तीज पर कोरोना का 'ग्रहण'...पहली बार नहीं होगा ऐतिहासिक मेले का आयोजन

कुंवारी कन्याओं के लिए कजरी तीज शुभ मानी जाती है. मान्यता है कि कजरी तीज पर अगर कुंवारी कन्याएं व्रत रखती हैं तो उन्हें सुंदर वर की प्राप्ति होती है. इस दिन पूजा के बाद महिलाएं और लड़कियां घर पर बने जौ, चने, चावल और गेहूं के सत्तू से चंद्रमा की पूजा करके ही अपना उपवास खोलती हैं. कई महिलाओं ने गाय की भी पूजा की. इस दौरान महिलाओं ने कजरी के मौके पर गाए जाने वाले गीत भी गाए. जो इस उत्सव का अभिन्न हिस्सा हैं. शाम को सूर्यास्त के बाद महिलाएं सज धज कर नीम की पूजा करने जाती हैं और उसके बाद कहानी सुनती हैं. कपासन में कई जगह पर महिलाओं एकत्र होकर गीत गाए और मेहंदी लगाई, कुमकुम, इत्र, पुष्प अर्पित कर कजरी माती की पूजा की.

क्या है धार्मिक मान्यता

भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की तृतीया को कजरी तीज मनाई जाती है. कजरी तीज को कई नामों से जाना जाता है. इसे सातुडी तीज और बूढ़ी तीज भी बुलाते हैं. व्रतधारी महिलाओं ने बताया कि 108 जन्म लेने के बाद आज ही के दिन पार्वती ने भगवान शिव का वरण किया था. इस दिन व्रत और पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है.

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