कपासन (चित्तौड़गढ़). चावल से निर्मित मरके मिठाई का सबसे पहले निर्माण कपासन में किया गया था. जिसको अब खाड़ी देशों में पसंद किया जाता है. सेठीया जैन परिवार के पुरखों ने इस मिठाई को सबसे पहले कपासन में ही बनाई थी. दीपावली से एक महीने पहले से ही इस मिठाई का दर्जनों हलवाई बनाने में लग जाते है. जो दीवावली के 15 दिन बाद तक जारी रहता है.
गुजरात महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों सहित विदेशों में इसे मिठाई को लोग खूब स्वाद लेकर खाते है. मरका एक ऐसी मिठाई है जो चावल के आटे से बनाया जाता है. जिसे राजस्थान के कई क्षेत्रों में व्यापारी खरीद कर ले जाते है और अपने इलाके में इसका विक्रय करते है.
पढ़ें- त्योहारों को लेकर मिठाई दुकानों पर खाद्य सुरक्षा टीम के छापे, मावा और लड्डू के लिए सैंपल
बता दें की इस मिठाई को बनाने में मावे का उपयोग नहीं होता है. इसको बनाने के लिये चावल के आटा, घी और शक्कर का उपयोग किया जाता है. शुद्वता के पैमानों पर यह मिठाई एकदम खरी उतरती है.
कैसे बनती है मरके मिठाई
हलवाई के अनुसार एक किलो चावल का आटा लेकर उसे अच्छी तरह गुंथ लिया जाता है. यदी मौसम ज्यादा ठंडा हो तो गुनगुने पानी में इसे गुंथा जाता है. सामान्यत इसे ठंडे पानी में ही गुंथते है. इसके बाद इसके छोटे-छोटे लोई बनाए जाते है. इसके बनाने के लिये दो जनों की जरूरत होती है. जो एक लोई बनाता है और दूसरा उसे एक हाथ में गीला कपड़ा लेकर उस पर गोल-गोल पहिये की जैसी आकृति देकर उसमें उंगली से छेदकर गरम घी में डालकर उसे अच्छी तरह फ्राई करता है. फ्राई होने के बाद इन्हे दूसरे पात्र में निकाते है और जरूरत के अनुसार इन्हें शक्कर की चासनी पिलाई जाती है. सूखने के बाद इसे बड़े चाव से खाया जाता है.
पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: चाक की तरह चकरघिन्नी बनी कुम्हारों की जिंदगी, मिट्टी में तलाश रहे 'दो जून की रोटी'
वहीं बता दें कि दुकानदार वनस्पति घी से बने मरके 100 से 120 रूपये और शुद्व देसी घी से बने मरके 200 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचते है.