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हरा-भरा राजस्थान: श्रीगंगानगर वन विभाग का दावा पांच साल में लगा दिए 19 लाख पौधे...लेकिन कितने जीवित हैं इसका कोई रिकॉर्ड नहीं - Wood Mafia

श्रीगंगानगर में वन विभाग ने हरियाली बढ़ाने के लिए पिछले 5 सालों में भले ही 3063.46 हेक्टेयर वन भूमि पर करीब 19 लाख पौधे लगाए हैं लेकिन पौधरोपण के बाद की जमीनी हालात क्या है. उसे देखकर लगता है कि वन विभाग ने पौधे लगाने के लिए खर्च किए करोड़ों रुपए व्यर्थ बहाए हैं.

श्रीगंगानगर में पौधारोपण के दावों का रियलिटी चेक
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Published : Jul 10, 2019, 3:10 PM IST

श्रीगंगानगर. जिले में कुल 8 स्थानों पर नर्सरी है. जिन से पौधरोपण के लिए पौधे तैयार किए जाते हैं. जिले की इन नर्सरियों से पौधे तैयार होते हैं. सरकारी नर्सरियों में तैयार किए जाने वाले पौधों के लिए सरकार का लंबा चौड़ा लवाजमा है. जिसके लिए राज्य सरकार हर साल वन विभाग को बजट जारी करती है. मगर बजट खपाया कहां जा रहा है इसकी बानगी आपको ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्ट दिखाएगी.

श्रीगंगानगर जिले में वन विभाग ने पिछले 5 सालों में लाखों पौधे लगाए हैं लेकिन विभाग द्वारा लगाए गए पौधों में से कितने पेड़ बने हैं. इसका रिकॉर्ड वन विभाग के पास ढूंढने से ही नहीं मिलेगा. जिले में वन विभाग की भूमि पर लगाए पौधे भले ही पेड़ बने लेकिन ऐसे पेड़ कब कटे और किसने काटे इसका रिकॉर्ड विभाग के पास शायद ही मिले. वन क्षेत्र काफी बड़ा होने के कारण सरकारी भूमि पर तैयार हुए बेशकीमती पेड़ों को रातों-रात काट लिया गया. नहरों के किनारे लगाए गए पौधे जब पेड़ बनकर तैयार हुए तो लकड़ी माफियाओं की नजर उन पर पड़ी और ऐसे माफियाओं ने रातों-रात हरे सूखे पेड़ों पर प्रहार कर उन्हें गायब दिया. पेड़ों की कटाई होना इस क्षेत्र में कोई नई बात नहीं है. यहां लकड़ी माफिया इस कदर हावी है कि सरकारी पेड़ों पर नजरें गड़ाए रखते हैं और मौका पाते ही पेड़ों को गायब कर देते हैं.

साधुवाली नहर के आसपास के वन क्षेत्र की बात करें तो यहां वन विभाग द्वारा पिछले कई सालों में लगाए गए पौधे तो नजर नहीं आते हैं लेकिन आसपास के किसानों की मानें तो यहां से समय-समय पर भारी संख्या में रातों-रात पेड़ों की कटाई जरूर होती रहती है. यहां के लोग बताते हैं कि नहर के आसपास का यह क्षेत्र कभी पेड़ों से घिरा बड़ा जंगल हुआ करता था. मगर अब यहां पेड़ कम आपको झाड़ झखाड़ ज्यादा नजर आएगा. क्षेत्र के लोगों की माने तो वन विभाग ने जो पौधे लगाए थे वे पौधे तो नष्ट हो गए. साथ ही यहां बड़े पेड़ों पर भी प्रहार कर घने जंगल को खाली कर दिया गया है.

श्रीगंगानगर में पौधारोपण के दावों का रियलिटी चेक

सहायक वन अधिकारी रमेश मुंड बताते हैं कि वन विभाग जो पौधे लगाता है उसकी 8 साल तक देखभाल की जाती है. मगर जमीनी हकीकत देखने पर पता चलता है कि यहां वन विभाग द्वारा बगैर देखभाल करने से पेड़ों पर लकड़ी माफियाओं की नजर हावी रही है और उन्होंने पेड़ों को काटने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है. ईटीवी भारत पौधारोपण करने व पेड़ों को बचाने के लिए अपने ग्रीन भारत अभियान के तहत जब वन विभाग के द्वारा लगाए गए वृक्षों की रियलिटी चेक की तो वन विभाग के दावों से हकीकत कुछ अलग नजर आई. ईटीवी भारत के कैमरे पर स्थानीय लोगों ने वन विभाग की जो पोल खोली उससे वन विभाग पर सवालो के घेरे में खड़ा नजर आता हैं.

श्रीगंगानगर. जिले में कुल 8 स्थानों पर नर्सरी है. जिन से पौधरोपण के लिए पौधे तैयार किए जाते हैं. जिले की इन नर्सरियों से पौधे तैयार होते हैं. सरकारी नर्सरियों में तैयार किए जाने वाले पौधों के लिए सरकार का लंबा चौड़ा लवाजमा है. जिसके लिए राज्य सरकार हर साल वन विभाग को बजट जारी करती है. मगर बजट खपाया कहां जा रहा है इसकी बानगी आपको ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्ट दिखाएगी.

श्रीगंगानगर जिले में वन विभाग ने पिछले 5 सालों में लाखों पौधे लगाए हैं लेकिन विभाग द्वारा लगाए गए पौधों में से कितने पेड़ बने हैं. इसका रिकॉर्ड वन विभाग के पास ढूंढने से ही नहीं मिलेगा. जिले में वन विभाग की भूमि पर लगाए पौधे भले ही पेड़ बने लेकिन ऐसे पेड़ कब कटे और किसने काटे इसका रिकॉर्ड विभाग के पास शायद ही मिले. वन क्षेत्र काफी बड़ा होने के कारण सरकारी भूमि पर तैयार हुए बेशकीमती पेड़ों को रातों-रात काट लिया गया. नहरों के किनारे लगाए गए पौधे जब पेड़ बनकर तैयार हुए तो लकड़ी माफियाओं की नजर उन पर पड़ी और ऐसे माफियाओं ने रातों-रात हरे सूखे पेड़ों पर प्रहार कर उन्हें गायब दिया. पेड़ों की कटाई होना इस क्षेत्र में कोई नई बात नहीं है. यहां लकड़ी माफिया इस कदर हावी है कि सरकारी पेड़ों पर नजरें गड़ाए रखते हैं और मौका पाते ही पेड़ों को गायब कर देते हैं.

साधुवाली नहर के आसपास के वन क्षेत्र की बात करें तो यहां वन विभाग द्वारा पिछले कई सालों में लगाए गए पौधे तो नजर नहीं आते हैं लेकिन आसपास के किसानों की मानें तो यहां से समय-समय पर भारी संख्या में रातों-रात पेड़ों की कटाई जरूर होती रहती है. यहां के लोग बताते हैं कि नहर के आसपास का यह क्षेत्र कभी पेड़ों से घिरा बड़ा जंगल हुआ करता था. मगर अब यहां पेड़ कम आपको झाड़ झखाड़ ज्यादा नजर आएगा. क्षेत्र के लोगों की माने तो वन विभाग ने जो पौधे लगाए थे वे पौधे तो नष्ट हो गए. साथ ही यहां बड़े पेड़ों पर भी प्रहार कर घने जंगल को खाली कर दिया गया है.

श्रीगंगानगर में पौधारोपण के दावों का रियलिटी चेक

सहायक वन अधिकारी रमेश मुंड बताते हैं कि वन विभाग जो पौधे लगाता है उसकी 8 साल तक देखभाल की जाती है. मगर जमीनी हकीकत देखने पर पता चलता है कि यहां वन विभाग द्वारा बगैर देखभाल करने से पेड़ों पर लकड़ी माफियाओं की नजर हावी रही है और उन्होंने पेड़ों को काटने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है. ईटीवी भारत पौधारोपण करने व पेड़ों को बचाने के लिए अपने ग्रीन भारत अभियान के तहत जब वन विभाग के द्वारा लगाए गए वृक्षों की रियलिटी चेक की तो वन विभाग के दावों से हकीकत कुछ अलग नजर आई. ईटीवी भारत के कैमरे पर स्थानीय लोगों ने वन विभाग की जो पोल खोली उससे वन विभाग पर सवालो के घेरे में खड़ा नजर आता हैं.

Intro:श्रीगंगानगर : वन विभाग ने हरियाली बढ़ाने के लिए श्रीगंगानगर जिले में पिछले 5 सालों में भले ही 3063.46 हेक्टेयर वन भूमि पर करीब 19 लाख पौधे लगाए हैं,लेकिन पौधरोपण के बाद की जमीनी हालात क्या है। उसे देखकर लगता है कि वन विभाग ने पौधे लगाने के लिए खर्च किए करोड़ों रुपए व्यर्थ बाय हैं। जिले में कुल 8 स्थानों पर नर्सरी है ,जिन से पौधरोपण के लिए पौधे तैयार किए जाते हैं। जिले की इन नर्सरीयो से पौधे तैयार होते हैं। सरकारी नर्सरीओं में तैयार किए जाने वाले पौधों के लिए सरकार का लंबा चौड़ा लवाजमा है, जिसके लिए राज्य सरकार हर साल वन विभाग को बजट जारी करती है। मगर बजट खफाया कहां जा रहा है इसकी बानगी आपको ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्ट दिखाएगी।


Body:श्रीगंगानगर जिले में वन विभाग ने पिछले 5 सालों में लाखों पौधे लगाए हैं।लेकिन विभाग द्वारा लगाए गए पौधों में से कितने पेड़ बने हैं,इसका रिकॉर्ड वन विभाग के पास ढूंढने से ही नही मिलेगा। जिले में वन विभाग की भूमि पर लगाए पौधे भले ही पेड़ बने लेकिन ऐसे पेड़ कब कटे और किसने काटे इसका रिकॉर्ड विभाग के पास शायद ही मिले। वन क्षेत्र काफी बड़ा होने के कारण सरकारी भूमि पर तैयार हुए बेशकीमती पेड़ों को रातों-रात काट लिया गया। नेहरो किनारे लगाए गए पौधे जब पेड़ बनकर तैयार हुए तो लकड़ी माफियाओं की नजर उन पर पड़ी और ऐसे माफियाओं ने रातों-रात हरे सूखे पेड़ों पर प्रहार कर उन्हें गायब दिया। पेड़ों की कटाई होना इस क्षेत्र में कोई नई बात नहीं है,यहां लकड़ी माफिया इस कदर हावी है कि सरकारी पेड़ों पर नजरें गड़ाए रखते हैं और मौका पाते ही पेड़ों को गायब कर देते हैं।

साधुवाली नहर के आसपास के वन क्षेत्र की बात करें तो यहां वन विभाग द्वारा पिछले कई सालों में लगाए गए पौधे तो नजर नहीं आते हैं,लेकिन आसपास के किसानों की मानें तो यहां से समय-समय पर भारी संख्या में रातों-रात पेड़ों की कटाई जरूर होती रहती है। यहां के लोग बताते हैं कि नहर के आसपास का यह क्षेत्र कभी पेड़ों से गिरा बड़ा जंगल हुआ करता था,मगर अब यहां पेड़ कम आपको झाड़ झखाड़ ज्यादा नजर आएगा। क्षेत्र के लोगों की माने तो वन विभाग ने जो पौधे लगाए थे वे पौधे तो नष्ट हो गई साथ ही यहां बड़े पेड़ों पर भी प्रहार कर घने जंगल को खाली कर दिया गया है।

सहायक वन अधिकारी रमेश मुंड बताते हैं कि वन विभाग जो पौधे लगाता है उसकी 8 साल तक देखभाल की जाती है,मगर जमीनी हकीकत देखने पर पता चलता है कि यहां वन विभाग द्वारा बगैर देखभाल करने से पेड़ों पर लकड़ी माफियाओं की नजर हावी रही है और उन्होंने पेड़ों को काटने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। ईटीवी भारत पौधारोपण करने व पेड़ों को बचाने के लिए अपने ग्रीन भारत अभियान के तहत जब वन विभाग के द्वारा लगाए गए वृक्षों की रियलिटी चेक की तो वन विभाग के दावों से हकीकत कुछ अलग नजर आई। ईटीवी भारत के कैमरे पर स्थानीय लोगों ने वन विभाग की जो पोल खोली उससे वन विभाग पर सवालो के घेरे में खड़ा नजर आता हैं।

वन टू वन रियलिटी चैक


Conclusion:वन विभाग के पौधारोपण की रियलिटी।
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