ETV Bharat / state

हरा-भरा राजस्थान : खेजड़ली के 363 बलिदानी...जिन्होंने पेड़ों की रक्षा के लिए कटा दिए थे सिर - Khayjidi Sacrifice

वृक्ष के लिए जीवन देने का एक मात्र उदाहरण पूरे भारत में राजस्थान में जोधपुर में मिलता है. जिनकी प्रेरणा से लोग पर्यावरण के संरक्षण के लिए काम करते हैं. लेकिन जहां लोग बलिदान हुए उनकी खेजडली में समाधि बनाई गई उसकी पहचान सीमित होकर रह गई है.

खेजड़ली के 363 बलिदानी
author img

By

Published : Jul 9, 2019, 3:00 PM IST

Updated : Jul 9, 2019, 3:17 PM IST

जोधपुर. हम बात कर रहे हैं अमृतादेवी विश्नोई और उन 363 लोगों की जिन्होंने पेडों को बचाने के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया. बात 1730 की थी जिसे सदियां बीत गई है लेकिन वह जगह आज भी बड़ी पहचान के लिए मोहताज है. विश्नोई समाज के युवा गुमनाम इन 363 बलिदानियों को पर्यावरण शहीद का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं. जिससे इनको पहचान मिले. पूरा देश इनके बलिदान से रूबरू होकर पर्यावरण संरक्षण के लिए आगे आए.

विश्नोई समाज के युवा विशेक विश्नोई ने यह बीडा उठाया हुआ है. विशेक इन बलिदानियों को पर्यावरण शहीद का दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उनका मानना है कि इस स्थल को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में विकसित किए जाने की जरूरत है. इसकी मांग को लेकर वे दिल्ली जयपुर तक धरने दे चुके हैं. सरकार में इन बलिदानियों का कोई रिकॉर्ड तक नहीं है. एक बारगी केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल ने इसको लेकर कुछ कदम आगे बढाए लेकिन बात नहीं बनी.

खास बात यह भी है कि खेजडी को राज्य वृक्ष का दर्जा इस घटना से प्रेरित होकर ही दिया गया है. जिसके चलते खेजडी को काटने पर राजस्थान में प्रतिबंध है. खेजडी मंदिर से जुडे संत रामदास कहते हैं कि बिना वृक्ष कुछ भी नहीं है, विश्नोई समाज वन एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए सदैव जागृत रहता है. जरूरत है तो अब सरकार को आगे आने की जिससे बडी तादाद में लोग जुड सके.

खेजड़ली के 363 बलिदानी...जिन्होंने पेड़ों की रक्षा के लिए कटा दिए थे सिर

यह थी घटना
1730 में जोधपुर के महाराज अभयसिंह को महल निर्माण कार्य के लिए चूना बनाना था. इसके लिए खेजडी के वृक्ष की आवश्यकता थी तो उन्होंने अपने मंत्री गिरधर भंडारी को खेजडली और आस पास की जगह जहां खेजडी अधिक मात्रा में थी काटकर लाने का हुक्म दिया. भंडारी ने कटाई शुरू करवा दी थी. यह देखकर अमृतादेवी विश्नोई और अन्य लोगों ने इसका विरोध किया और खेजडी की कटाई रोकने के लिए आग्रह किया लेकिन राजा के हुक्मदारों ने इसे नहीं माना तो वे लोग खेजडी से लिपट गए लेकिन पेड़ काटने वालों की कुल्हाडियां नहीं रूकी. 363 लोगों के सिर काट दिए गए. जिन्हें सामूहिक रूप से खेजडली में दफनाया गया. तब से विश्नोई समाज का ध्येय वाक्य बन गया कि सिर साखे रूंख बचे तो भी सस्तो जाण. यानी की सिर के बदले पेड बच जाए तो भी सस्ता ही है.

जोधपुर. हम बात कर रहे हैं अमृतादेवी विश्नोई और उन 363 लोगों की जिन्होंने पेडों को बचाने के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया. बात 1730 की थी जिसे सदियां बीत गई है लेकिन वह जगह आज भी बड़ी पहचान के लिए मोहताज है. विश्नोई समाज के युवा गुमनाम इन 363 बलिदानियों को पर्यावरण शहीद का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं. जिससे इनको पहचान मिले. पूरा देश इनके बलिदान से रूबरू होकर पर्यावरण संरक्षण के लिए आगे आए.

विश्नोई समाज के युवा विशेक विश्नोई ने यह बीडा उठाया हुआ है. विशेक इन बलिदानियों को पर्यावरण शहीद का दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उनका मानना है कि इस स्थल को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में विकसित किए जाने की जरूरत है. इसकी मांग को लेकर वे दिल्ली जयपुर तक धरने दे चुके हैं. सरकार में इन बलिदानियों का कोई रिकॉर्ड तक नहीं है. एक बारगी केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल ने इसको लेकर कुछ कदम आगे बढाए लेकिन बात नहीं बनी.

खास बात यह भी है कि खेजडी को राज्य वृक्ष का दर्जा इस घटना से प्रेरित होकर ही दिया गया है. जिसके चलते खेजडी को काटने पर राजस्थान में प्रतिबंध है. खेजडी मंदिर से जुडे संत रामदास कहते हैं कि बिना वृक्ष कुछ भी नहीं है, विश्नोई समाज वन एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए सदैव जागृत रहता है. जरूरत है तो अब सरकार को आगे आने की जिससे बडी तादाद में लोग जुड सके.

खेजड़ली के 363 बलिदानी...जिन्होंने पेड़ों की रक्षा के लिए कटा दिए थे सिर

यह थी घटना
1730 में जोधपुर के महाराज अभयसिंह को महल निर्माण कार्य के लिए चूना बनाना था. इसके लिए खेजडी के वृक्ष की आवश्यकता थी तो उन्होंने अपने मंत्री गिरधर भंडारी को खेजडली और आस पास की जगह जहां खेजडी अधिक मात्रा में थी काटकर लाने का हुक्म दिया. भंडारी ने कटाई शुरू करवा दी थी. यह देखकर अमृतादेवी विश्नोई और अन्य लोगों ने इसका विरोध किया और खेजडी की कटाई रोकने के लिए आग्रह किया लेकिन राजा के हुक्मदारों ने इसे नहीं माना तो वे लोग खेजडी से लिपट गए लेकिन पेड़ काटने वालों की कुल्हाडियां नहीं रूकी. 363 लोगों के सिर काट दिए गए. जिन्हें सामूहिक रूप से खेजडली में दफनाया गया. तब से विश्नोई समाज का ध्येय वाक्य बन गया कि सिर साखे रूंख बचे तो भी सस्तो जाण. यानी की सिर के बदले पेड बच जाए तो भी सस्ता ही है.

Intro:


Body:जोधपुर। वृक्ष के लिए जीवन देने का एक मात्र उदाहरण पूरे भारत में राजस्थान में जोधपुर में मिलता है। जिनकी प्रेरणा से लोग पर्यावरण के संरक्षण के लिए काम करते हैं। लेकिन जहां लोग बलिदान हुए उनकी खेजडली में समाधी बनाई गई उसकी पहचान सीमित होकर रह गई है। हम बात कर रहे हैं अमृतादेवी विश्नोई और उन 363 लोगों की जिन्होंने पेडों को बचाने के लिए अपना जीवन कुर्बान कर दिया। बात 1730 की थी जिसे सदियां बीत गई है लेकिन वह जगह आज भी बडी पहचान के लिए मोहताज है। विश्नोई समाज के युवा गुमनाम इन 363 बलिदानियों को पर्यावरण शहीद का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं, जिससे इनको पहचान मिले पूरा देश इनके बलिदान से रूबरू होकर पर्यावरण संरक्षण के लिए आगे आए। विश्नोई समाज के युवा विशेक विश्नोई ने यह बीडा उठाया हुआ है, विशेक इन बलिदानियों को पर्यावरण शहीद का दर्जा दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनका मानना है कि इस स्थल को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में विकसित किए जाने की जरूरत है, इसकी मांग को लेकर वे दिल्ली जयपुर तक धरने दे चुके हैं। सराकर में इन बलिदानियों का कोई रेकॉर्ड तक नही है। एक बारगी केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल ने इसको लेकर कुछ कदम आगे बढाए लेकिन बात नहीं बनी। खास बात यह भी है कि खेजडी को राज्य वृक्ष का दर्जा इस घटना से प्रेरित होकर ही दिया गया है। जिसके चलते खेजडी को काटने पर राजस्थान में प्रतिबंध है। खेजडी मंदिर से जुडे संत रामदास कहते हैं कि बिना वृष कुछ भी नहीं है, विश्नोई समाज वन एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए सदैव जागृत रहता है जरूरत है तो अब सरकार को आगे आने की जिससे बडी तादाद में लोग जुड सके।

यह थी घटना की वजह
1730 में जोधपुर के महाराज अभयसिंह को महल निर्माण कार्य के लिए चूना बनाना था इसके लिए खेजडी के वृक्ष की आवश्यकता थी तो उन्होंने अपने मंत्री गिरधर भंडारी को खेजडली और आस पास की जगह जहां खेजडी अधिक मात्रा में थी काटकर लाने का हुक्म दिया, भंडारी ने कटाई शुरू करवा दी थी यह देखकर अमृतादेवी विश्नोई और अन्य लोगों ने इसका विरोध किया और खेजडी की कटाई रोकने के लिए आग्रह किया लेकिन राजा के हुक्मदारों ने इसे नहीं माना तो वे लोग खेजडी से लिपट गए लेकिन पेड काटने वालों की कुल्हाडियां नहीं रूकी 363 लोगों के सिर काट दिए गए। जिन्हें सामूहिक रूप् से खेजडली में दफनाया गया। तब से विश्नोई समाज का ध्येय वाक्य बन गया कि सिर साखे रूंख बचे तो भी सस्तो जाण। यानी की सिर के बदले पेड बच जाए तो भी सस्ता ही है।

बाईट विशेक विश्नोई
बाईट संत रामदास





Conclusion:
Last Updated : Jul 9, 2019, 3:17 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.