केशवरायपाटन (बूंदी). जिले के केशवरायपाटन मुख्यालय के अंतिम छोर पर बसे रोटेदा ग्राम पंचायत के ग्रामीण कोरोना महामारी से निपटने को आतुर नजर आ रहे हैं. शिक्षा से लेकर जनधन तक जागरूक इस ग्रामीण इलाके में करीब 5 हजार की जनसंख्या है, जिनमें 1 हजार आदमी मजदूरी के लिए अन्य शहरों में निवास करते है.
यहां राजीव गांधी सेवा केंद्र के साथ राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, राजकीय उपस्वास्थ्य केंद्र, राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय, पुलिस चौकी, पशु चिकित्सालय और पटवार घर बने हुए है. चंबल नदी से सटे होने के कारण यहां बिजली और पानी की बेहतरीन व्यवस्था है, लेकिन उपखंड के अंतिम छोर पर स्थित होने के चलते विकास में अभी पिछड़ा है.
रोटेदा ग्राम पंचायत में 3 गांव देवली, ढीकोली और झरण्या की झोपड़ियां आती है. जानकारों के मुताबिक यह पंचायत सन 1965 में अस्तित्व में आई थी. उस समय यहां के पहले सरपंच स्वर्गीय नाथूलाल जैन बने थे. ग्रामीणों ने बताया कि पहले के जमाने में अगर कोई खुले में शौच के लिए जाता तो उससे ग्राम पंचायत जुर्माना वसूल करता था.
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रोटेदा गांव के अधिकांश लोग कृषि कार्यों पर निर्भर है. इसके साथ ही मुस्लिम समाज का प्रमुख कार्य बीड़ी और साड़ियों की बुनाई पर निर्भर है. कोरोना काल में यहां बाजारों में सन्नाटा पसरा रहा. ग्रामीण युवा भी बाहर से आने वाले लोगों की पूरी चौकसी किया करते थे. इसी का नतीजा है कि यहां एक भी कोरोना पॉजिटिव केस नहीं आया.
रोटेदा सरपंच रामलाल गुर्जर ने बताया कि गांव में ग्रामीणों से सोशल डिस्टेंसिंग की पालना करवाई गई. घर-घर मास्क और सैनिटाइजर बटवाएं गए. खास बात यह है कि ग्रामीणों ने अब यह सब बातें अपनी आदत में डाल ली. इसी के परिणाम स्वरूप गांव में एक भी कोरोना पॉजिटिव केस नहीं आया है.
रोटेदा गांव में स्थित प्राचीन किला ऐतेहासिक स्थल है. जो अपने इतिहास की खुद गवाही देता है. इस किले को इसे कापरेन के जागीरदार दीपसिंह ने बनवाया था. 1748 में बूंदी के महाराज राजा उम्मेद सिंह जब गद्दी पर कायम हुए, तब उनके छोटे भाई महाराजा दीपसिंह को कापरेन के साथ रोटेदा का किला एक लाख की सालाना जागीर में 27 गांवों सहित दिया था.
यहां की 40 फीसदी आबादी हथकरघा उद्योग पर निर्भर
देशभर में कोटा डोरिया के नाम से मशहूर कोटा डोरिया की मसुरिया साड़ियों की रोटेदा में बुनाई की जाती है. यहां करीब 40 फीसदी लोग हथकरधा उद्योग पर निर्भर है. रोटेदा में बुनकरों द्वारा मसुरिया साड़ी, जरीकी साड़ी, डिजाइनिंग साड़ी और सादी साड़िया तैयार की जाती है. जिनकी लागत करीब 5 हजार रुपये से लेकर 1 लाख रुपये तक होती है.
विदेशों में पहचान, 2 वर्षों से आ रहे पर्यटक
2017 में न्यूजीलैंड की पर्यटक पीटा यहां कोटा डोरिया की साड़िया देखने और कला जानने आई थी. पीटा वापस अपने करीबियों को लेकर पिछले वर्ष अक्टूबर में आई. जिन्होंने करीब 30 हजार के दुपट्टे और साड़ियों खरीदी.
कोरोना संक्रमण के चलते बन्द है गांव के सभी मंदिर
कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए गांव में अति प्राचीन मंदिर दर्शनार्थियों के लिए बन्द कर रखे है. श्रद्धालु दूर से ही मंदिरों में दर्शन कर पाते है. उन्हें अंदर प्रवेश नहीं दिया जाता. यहां वर्षो पुराना जैन मंदिर, लक्ष्मीनाथ मंदिर और चारभुजा मंदिर अपनी बेजोड़ कलाकृतियों की अदभुत मिसाल है.