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गणगौर त्योहार: हाडो ले डूब्यों गणगौर, बूंदी राजपरिवार में आखिर क्यों पड़ी गणगौर की आंठ

देश भर में कोरोना वायरस के चलते सभी कार्यक्रम निरस्त कर दिए गए हैं. साथ में नवरात्रा का पर्व चल रहा है, ऐसे में गणगौर भी लोग अपने घरों में अपने-अपने तरीकों से मना रहे हैं. लेकिन बूंदी के राजपरिवार में गणगौर की कई सालों से आंठ चली आ रही है. यहां पर कई सालों से पहले राज परिवार में मौत हो जाने के चलते राज परिवार आज भी गणगौर महोत्सव धूमधाम से नहीं मनाता है. उनके परिवार में आंठ होने के चलते गणगौर के त्योहार में कोई धूम नहीं रहती है. आमजन अपने हिसाब से गणगौर मनाते हैं.

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बूंदी राजपरिवार में आखिर क्यों पड़ी गणगौर की आंठ
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Published : Mar 27, 2020, 8:22 PM IST

बूंदी. छोटी काशी बूंदी में हर महोत्सव के दौरान अलग उत्साह रहता है. यहां पर हर त्योहार को लोग बड़े ही उत्साह के साथ मनाते हैं. लेकिन इस बार कोरोना वायरस के चलते सारे उत्सव के रंग फीके पड़ गए हैं. लेकिन हम बूंदी के गणगौर की बात कर रहे हैं. यहां पर राज परिवार आज भी गणगौर नहीं मनाता है.

बूंदी राजपरिवार में आखिर क्यों पड़ी गणगौर की आंठ

हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि कई साल पहले बूंदी राज परिवार में राजा के छोटे भाई का गणगौर के दौरान आकस्मिक निधन हो गया था, जिसके चलते राजपरिवार में तब से लेकर अब तक आंठ चली आ रही है. कोई भी राज परिवार का सदस्य आज के दिन गणगौर नहीं मनाता है.

यह भी पढ़ेंः जरूरतमंदों के घर खाना पहुंचाएगी नगर परिषद, रोजाना 1 हजार खाने के पैकेट हो रहे वितरित

किसी समय बूंदी में गणगौर की सवारी भी निकला करती थी. बड़े धूमधाम से यहां पर इस पर्व को लोग मनाते थे, महिलाओं में यहां काफी उत्साह रहता था. लेकिन यह हादसा गणगौर पर ब्रेक लगा गया और तब से लेकर अब तक गणगौर महोत्सव राजपरिवार नहीं मनाता है. शहर के कुछ जगहों पर सालों से स्थापित गणगौर होने के चलते वहां पर लोग एकत्रित होते हैं और गणगौर महोत्सव को धूमधाम से मनाते हैं. लेकिन ऐसी संख्या गिने-चुने में ही है.

मद-मस्त हाथी ने पलटी थी नाव...

किसी जमाने में हाडा परिवार की गणगौर इतनी प्रसिद्धि थी कि जयपुर से पहले बूंदी का नाम आता था. लेकिन बूंदी नरेश महाराव बुध सिंह के छोटे भाई की इसी दिन हादसे के दौरान मौत हो जाने के बाद लोग आंट रखने लगे और गणगौर राजपरिवार ने मनाना बंद कर दिया.

जानकारी के अनुसार महाराव बुध सिंह के साल 1695 से 1740 के दौर में उनके छोटे भाई जोध सिंह जैतसागर में सरदार और रूपसियों के साथ गणगौर का दरीबाना लगाकर सैर करते थे. जोध सिंह के आदेश पर राजकीय हाथियों को सुरपान (शराब पिलाकर ) कराकर युद्ध प्रदर्शन किया जाता था. बूंदी के जैतसागर स्थित परिसर में युद्ध प्रदर्शन होता था और वहीं पर गणगौर मनाई जाती थी. इस दौरान राजा के छोटे भाई नाव में बैठे और तभी एक हाथी नशे में मदमस्त हो गया और पूरी नाव को जैतसागर में गणगौर सहित हाथी ने पलटा दिया, जिसमें राजा के छोटे भाई सहित कुछ जागीरदारों कि इस हादसे में मौत हो गई थी. तब से लेकर अब तक बूंदी में राजपरिवार गणगौर महोत्सव में आंठ रखे हुए है.

400 साल पुरानी गणगौर, लेकिन रंग फीका...

इतिहासकार राजकुमार दाधीच के आवास पर 400 साल पुरानी गणगौर स्थापित है. राजाओं के जमाने से हवेली में यह गणगौर स्थापित थी. जहां पर आसपास की महिलाएं एकत्रित होती हैं और वहां पर गणगौर की पूजा करती हैं. लेकिन इस बार कोरोना वायरस के चलते यहां पर भी महोत्सव फीका पड़ता नजर आया. कुछ महिलाएं पहुंची तो वह सामाजिक दूरी बनाकर ही अपना इंतजार करती नजर आईं और एक-एक कर गणगौर की पूजा की.

आज के दिन महिलाएं और युवतियां घरों में ही पार्वती की पूजा करती हैं, जिन घरों में 16 दिन से गणगौर की पूजा चली आ रही है. वहां पर महिलाओं का एकत्रित होना शुरू हो गया. लेकिन कोरोना वायरस के चलते यह त्योहार फीका हो गया. गिनी-चुनी महिलाएं इस त्योहार में अपनी आहुति देने पहुंची.

कुछ महिलाओं की मानें तो यह त्योहार 15 से 16 दिनों तक पूजने वाला होता है. लेकिन कोरोना वायरस के चलते केवल 1 दिन ही इस त्योहार को मनाया जा रहा है. सुबह पूजा की जा रही है और शाम को गणगौर को विदा करने का काम किया जा रहा है.

बूंदी. छोटी काशी बूंदी में हर महोत्सव के दौरान अलग उत्साह रहता है. यहां पर हर त्योहार को लोग बड़े ही उत्साह के साथ मनाते हैं. लेकिन इस बार कोरोना वायरस के चलते सारे उत्सव के रंग फीके पड़ गए हैं. लेकिन हम बूंदी के गणगौर की बात कर रहे हैं. यहां पर राज परिवार आज भी गणगौर नहीं मनाता है.

बूंदी राजपरिवार में आखिर क्यों पड़ी गणगौर की आंठ

हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि कई साल पहले बूंदी राज परिवार में राजा के छोटे भाई का गणगौर के दौरान आकस्मिक निधन हो गया था, जिसके चलते राजपरिवार में तब से लेकर अब तक आंठ चली आ रही है. कोई भी राज परिवार का सदस्य आज के दिन गणगौर नहीं मनाता है.

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किसी समय बूंदी में गणगौर की सवारी भी निकला करती थी. बड़े धूमधाम से यहां पर इस पर्व को लोग मनाते थे, महिलाओं में यहां काफी उत्साह रहता था. लेकिन यह हादसा गणगौर पर ब्रेक लगा गया और तब से लेकर अब तक गणगौर महोत्सव राजपरिवार नहीं मनाता है. शहर के कुछ जगहों पर सालों से स्थापित गणगौर होने के चलते वहां पर लोग एकत्रित होते हैं और गणगौर महोत्सव को धूमधाम से मनाते हैं. लेकिन ऐसी संख्या गिने-चुने में ही है.

मद-मस्त हाथी ने पलटी थी नाव...

किसी जमाने में हाडा परिवार की गणगौर इतनी प्रसिद्धि थी कि जयपुर से पहले बूंदी का नाम आता था. लेकिन बूंदी नरेश महाराव बुध सिंह के छोटे भाई की इसी दिन हादसे के दौरान मौत हो जाने के बाद लोग आंट रखने लगे और गणगौर राजपरिवार ने मनाना बंद कर दिया.

जानकारी के अनुसार महाराव बुध सिंह के साल 1695 से 1740 के दौर में उनके छोटे भाई जोध सिंह जैतसागर में सरदार और रूपसियों के साथ गणगौर का दरीबाना लगाकर सैर करते थे. जोध सिंह के आदेश पर राजकीय हाथियों को सुरपान (शराब पिलाकर ) कराकर युद्ध प्रदर्शन किया जाता था. बूंदी के जैतसागर स्थित परिसर में युद्ध प्रदर्शन होता था और वहीं पर गणगौर मनाई जाती थी. इस दौरान राजा के छोटे भाई नाव में बैठे और तभी एक हाथी नशे में मदमस्त हो गया और पूरी नाव को जैतसागर में गणगौर सहित हाथी ने पलटा दिया, जिसमें राजा के छोटे भाई सहित कुछ जागीरदारों कि इस हादसे में मौत हो गई थी. तब से लेकर अब तक बूंदी में राजपरिवार गणगौर महोत्सव में आंठ रखे हुए है.

400 साल पुरानी गणगौर, लेकिन रंग फीका...

इतिहासकार राजकुमार दाधीच के आवास पर 400 साल पुरानी गणगौर स्थापित है. राजाओं के जमाने से हवेली में यह गणगौर स्थापित थी. जहां पर आसपास की महिलाएं एकत्रित होती हैं और वहां पर गणगौर की पूजा करती हैं. लेकिन इस बार कोरोना वायरस के चलते यहां पर भी महोत्सव फीका पड़ता नजर आया. कुछ महिलाएं पहुंची तो वह सामाजिक दूरी बनाकर ही अपना इंतजार करती नजर आईं और एक-एक कर गणगौर की पूजा की.

आज के दिन महिलाएं और युवतियां घरों में ही पार्वती की पूजा करती हैं, जिन घरों में 16 दिन से गणगौर की पूजा चली आ रही है. वहां पर महिलाओं का एकत्रित होना शुरू हो गया. लेकिन कोरोना वायरस के चलते यह त्योहार फीका हो गया. गिनी-चुनी महिलाएं इस त्योहार में अपनी आहुति देने पहुंची.

कुछ महिलाओं की मानें तो यह त्योहार 15 से 16 दिनों तक पूजने वाला होता है. लेकिन कोरोना वायरस के चलते केवल 1 दिन ही इस त्योहार को मनाया जा रहा है. सुबह पूजा की जा रही है और शाम को गणगौर को विदा करने का काम किया जा रहा है.

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