बूंदी. देश भर में लगातार कोरोना संक्रमण अपना पांव पसार रहा है. आए दिन कोरोना की भयावह स्थिति सामने आ रही है. कोरोना के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो दिन-ब-दिन इजाफा देखने को मिलता है. कोरोना की शुरुआत होते ही सरकार ने लॉकडाउन लागू कर दिया. कोरोना संक्रमण रोकने के लिए सरकार का यह कदम सराहनीय तो जरूर रहा, लेकिन स्थिति दर से बदतर हो गई. कई लोगों के रोजगार छीन गए, नौकरियां चली गईं और रोजाना कमाकर खाने वालों की हालत तो बिल्कुल दयनीय हो गई.
देश-प्रदेश में अपनी सांस्कृतिक विरासत के नाम से मशहूर बूंदी का पर्यटन क्षेत्र, इस बेरोजगारी से अछूता नहीं है. बूंदी में हर साल हजारों की तादाद में देशी-विदेशी पावणे विरासत को देखने के लिए आते हैं और इन विरासत को दिखाने के लिए स्थानीय टूरिस्ट गाइड उन्हें रूबरू करवाते हैं. लेकिन कोरोना के चलते विदेशी पावणो का आवागमन बाधित हुआ और टूरिस्ट गाइड भी बेरोजगार हो गए. ऐसे में कई लोगों ने अपने इस धंधे को ही चेंजकर अपनी जिंदगी को दूसरी ओर मोड़ दिया और कोरोना के साथ इस लॉकडाउन के संक्रमण काल में जीने लगे.
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बूंदी शहर के न्यू कॉलोनी निवासी ओमप्रकाश कुक्की और अश्विनी शर्मा ने हजारों की तादाद में विदेशी टूरिस्टों को बूंदी की विरासत को दिखाया. उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन ऐसा आएगा जो कुछ माह के लिए उन्हें बेरोजगार कर देगा. बेरोजगारी के बोझ तले उन्होंने आत्मनिर्भर बनने की ठानी और अपने कई साल पुराने धंधे को फिर से शुरू करने की पहल की. ओमप्रकाश कुक्की बूंदी में रॉक पेंटिंग की खोज के लिए जाने जाते हैं, जबकि अश्वनी शर्मा टूरिस्ट को बूंदी की विरासत बताने के लिए जाने जाते हैं और दोनों बाप-बेटे हैं.
14 साल बाद शुरू किए काम
आपको बता दें कि अपने पुश्तैनी धंधे को शुरू करते हुए 14 साल बाद वापस से स्वादिष्ट नमकीन, कचौरी, बालूशाही और बेसन चक्की सहित कई प्रकार के व्यंजनों की दुकान खोल ली है. वहीं से दोनों पिता-पुत्र आत्मनिर्भर होकर अपने इस पुश्तैनी धंधे को पूरा करने में जुटे हुए हैं. खास बात यह है कि इन सामानों को खाने के साथ ही आमजन के मुंह में स्वाद बटोर रहा है और लोग लॉकडाउन के बीच सीधा फोन पर ऑर्डर देकर सामग्रियों को बुक करवाने का काम करते हैं. वर्तमान स्थिति यह है कि दोनों बाप-बेटे के पास इतने आर्डर आते हैं कि उनके पास माल कम पड़ जाता है.
लॉकडाउन ने बनाया 'आत्मनिर्भर'
ओमप्रकाश कुक्की के पिता किसी जमाने में बूंदी शहर में नमकीन, बालूशाही, कचौरी और बेसन चक्की सहित कई प्रकार की व्यंजनों को बनाकर स्वाद बटोरा करते थे. ऐसे में कुक्की ने बूंदी के शैल चित्रों को खोजने का प्रयास किया तो बड़े-बड़े विश्व के चित्रों को खोज लिया. पिता के निधन के बाद उनका पुश्तैनी धंधा बंद सा हो गया. टूरिस्ट में अपना भविष्य देखते हुए ओमप्रकाश ने अपने पुत्र अश्वनी शर्मा को भी इस धंधे में ही पारंपरिक कर दिया. दोनों पिता-पुत्र पर्यटन क्षेत्र में बूंदी की विरासत को संवरने का काम करते रहे. घर में कोई नहीं होने से उनका पुश्तैनी धंधा पूरी तरह से बंद करना पड़ा था. करीब 14 साल पहले ओमप्रकाश कुक्की ने अपने इस धंधे को बंद कर दिया था.
लेकिन लॉकडाउन के चलते घर की माली हालत खराब हुई तो वापस से ओमप्रकाश ने अपने पुश्तैनी धंधे को अपने हाथों की हुनर से वापस शुरू कर दिया और उनके पुत्र अश्वनी शर्मा भी इस कार्य में जुट गए. बाप-बेटे ने संकल्प लिया कि वापस से जो उनका पुश्तैनी धंधा है, वह लोगों की जुबां पर स्वाद बटोरेगा. उसके साथ उन्होंने अपनी सामग्री को बनाना शुरू कर दिया और लॉकडाउन के बीच दोनों पिता पुत्रों ने अपने प्रोफेशन से हटकर पुश्तैनी धंधे शुरू कर आत्मनिर्भर बनने का काम किया है.
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इस कार्य को करने के लिए कोई बाजारी सामग्रियों का उपयोग यह नहीं करते हैं. केवल घर की बनी चीजों को खुद अपने हाथों से बाजार में उसको मिक्स करवाते हैं और उस सामग्री को उपयोग में लेते हैं. ताकि शुद्धता का पूरा ख्याल रखा जा सके. वर्तमान में केवल रविवार को ही बूंदी शहर के लोगों को दुकान खोलकर यह सामग्री उपलब्ध करवाते हैं और बड़ी तादाद में शहर भर के लोग इस सामग्री को लेने के लिए फोन पर ही ऑर्डर देकर वहां पहुंचते हैं. ऐसे में ओमप्रकाश कुक्की और अश्विनी शर्मा एक मिसाल हैं, जिन्होंने अपने इस पुश्तैनी धंधे को शुरू किया और आज लोगों के सामने आत्मनिर्भर बनकर स्वाद बटोर रहे हैं. आत्मनिर्भर बनने से ही उन्होंने अपने घर का इस संकट की घड़ी में पूरा खर्च चलाया है और इस धंधे से उन्हें अच्छी खासी आमदनी भी होने लगी है.