केशवरायपाटन (बूंदी). सहकारिता क्षेत्र की प्रदेश की एकमात्र शुगर मिल साल 2000 से बंद पड़ी है. मिल के पुन: संचालन को लेकर किसानों ने फिर मुद्दा बना लिया है. मेगा हाइवे के शुगर मिल चौराहे पर किसान महापंचायत हुई, जिसमें संयुक्त किसान समन्वय समिति ने आरपार की लड़ाई का ऐलान करते हुए अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया. जो गुरुवार को दूसरे दिन भी जारी रहा.
पिछले 21 सालों से शुगर मिल के चलने की आस लगाए बैठे गन्ना उत्पादक अंशधारी किसान इसलिए आशावादी हो रहे हैं कि कांग्रेस शासन में घाटे का सौदा बताकर हाड़ौती की जीवनदायिनी शुगर मिल को बंद कर दिया गया था. उसको भाजपा ने सरकार बनने पर चलाने का किसानों से वादा किया था, लेकिन वो पूरा नहीं हो पाया. साल 2011 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने शुगर मिल की भूमि पर 1,000 मेगावाट पावर प्लांट लगाने की घोषणा करने से शुगर मिल की 456 बीघा भूमि राजस्थान विद्युत प्रसारण निगम ने 54 करोड़ रुपए में शुगर मिल से खरीद ली. शुगर मिल की भूमि बिकने से बकाया सभी देनदारियां चुकने के बाद भी शुगर मिल के पास 15 करोड़ की राशि शेष बची हुई है.
क्षेत्रीय किसान और किसान पुत्र अब अपने पुरखों की धरोहर के लिए हुंकार भर चुका है. सरकार को क्षेत्र के विकास व किसानों के भविष्य की सोचते हुए सकारात्मक पहल कर बजट सत्र में शुगर मिल के संचालन की घोषणा करना चाहिए. शुगर मिल के बंद होने के बाद से ही क्षेत्र का किसान कर्जदार होकर रह गया है. क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों को चाहिए कि वे किसानों के हित में शुगर मिल की आवाज को सरकार के जिम्मेदारों तक पहुंचाए. किसान गन्ने की फसल की बुवाई करने के लिए तैयार हैं. इससे भूमि उपजाऊ होने के साथ ही लाभ की फसल होने से किसानों को आय दोगुनी और कर्ज भी कम होने लगेगा.
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किसानों ने कहा कि क्षेत्र का किसान अब अपने लक्ष्य से पीछे हटने वाला नहीं है. सरकार ने पांच दिन में शुगर मिल को लेकर निर्णय स्पष्ट नहीं किया तो किसान अब चंद्रशेखर आजाद के मार्ग पर चलकर अपनी बात सरकार के सामने रखेंगे. धरने में प्रतिदिन एक गांव के किसान हिस्सा ले रहे हैं. संघर्ष समिति के सदस्य शुभम शर्मा ने कहा कि सरकार शुगर मिल संचालन के लिए पूंजी नहीं बस चलाने की घोषणा कर दें. गन्ना उत्पादक किसान संघर्ष समिति पुन: संचालन करने में सक्षम है.