बूंदी. जिले के वन्यजीव प्रेमियों के लिए बड़ी खुशखबरी है. यहां का प्रसिद्ध रामगढ़ विषधारी वन्य जीव अभयारण्य प्राकृतिक संपदा और वन्य जीवों से भरपूर होने के साथ ही अब और भी खास होने जा रहा है. इस अभ्यारण्य में दो दशक के बाद बाघों की दहाड़ सुनाई देगी. प्रदेश की गहलोत सरकार ने अभ्यारण्य में दो बाघों को छोड़ने का फैसला किया है. जिसके बाद यहां के पर्यटन व्यवसाय को भी चार-चांद लगने की उम्मीद जताई जा रही है.
यहां बाघों को शिफ्ट करने के बाद यह प्रदेश का चौथा टाइगर रिजर्व अभ्यारण्य बन जाएगा. इस संबंध में वन विभाग ने तैयारी पूरी कर ली है. नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी ने बूंदी के रामगढ़ विषधारी टाइगर सेंचुरी में रणथंभोर से दो बाघों को शिफ्ट करने की इजाजत दे दी है. यह सिर्फ एक खबर नहीं बल्कि बूंदी की तस्वीर बदलने वाला फैसला है.
यहां कुछ राइस मील को छोड़कर ऐसी कोई इंडस्ट्री नहीं है, जिससे लोगों को रोजगार मिल सके. लेकिन, माना जा रहा है कि यहां टाइगर अभ्यारण्य विकसित होने के बाद ना केवल पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि, रोजगार के अवसर भी मिलेंगे. जानकारों का मानना है कि बूंदी जिले में बाघ आएंगे तो जंगल बचे रहेंगे और ईको-टूरिज्म होगा. हजारों लोगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा.
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सबसे ज्यादा वन्यजीव रामगढ़ में
रामगढ़ अभ्यारण्य की बात की जाए तो 1982 में रामगढ़ अभयारण्य और 2009 में टाइगर रिजर्व घोषित हुआ. कुल अभयारण्य 800 वर्ग किमी में फैला हुआ लेकिन 307 वर्ग किमी इलाके को टाइगर रिजर्व का दर्जा मिला है. यह जयपुर से 200 किलोमीटर दूर है. एक तरफ रणथंभोर दूसरी तरफ मुकुंदरा टाइगर से जुड़ा हुआ है. इस टाइगर रिजर्व में नीलगाय, सियार, हिरण, भालू, आईना, जंगली कुत्ते, चीतल, सांभर, जंगली बिल्लियां, तेंदुए, लंगूर, सांप, मगरमच्छ सहित 500 प्रकार के वन्यजीव मौजूद है. रणथंभोर से ज्यादा खूबसूरत बाघों के प्रजनन के लिए ग्रास लैंड है. रणथंभोर से ज्यादा वैरायटी के पौधे बूंदी के इस रामगढ़ अभयारण्य में हैं.
बूंदी के पास काफी कुछ है टूरिज्म के लिए
वाइल्डलाइफ सफारी के लिए बूंदी से बेहतर कोई स्पोट नहीं है. यहां समृद्द हेरिटेज है. फोर्ट पेंटिंग, बावड़ियां, झील-झरने, रॉक पेंटिंग्स है. यहां घड़ियाल सेंचुरी के साथ ही वेटलैंड्स हैं जहां विदेशी परिंदों को करलव करते हुए देखने का एहसास होता है. बर्ड्स की हजारों की तादात में यहां प्रजातियां है. वन्य जीव की पूरी श्रृंखला है. बूंदी के जंगल रणथम्भोर से हर मायने में कहीं ज्यादा बेहतर है.
दो दशक से चली आ रही है योजना
रामगढ़ विषधारी वन्य जीव अभयारण्य में बाघों को शिफ्ट करने की योजना पिछले दो दशक से चली आ रही है, जिसपर अब मुहर लगने जा रही है. रामगढ़ अभयारण्य के जंगल को 1982 में वन्य जीव अभ्यारण का दर्जा दिया गया था. दर्जा मिलने तक इस जंगल में 14 बाघों और 90 बघेरों की उपस्थिति थी. अभयारण्य में 1985 से ही बाघों की संख्या में कमी आती गई. 1999 तक एक ही बाघ बचा था जो भी लुप्त हो जाने से अभयारण्य बाघ विहीन हो गया था. बाघों से सूने पड़े अभयारण्य को प्रदेश का चौथा टाइगर रिजर्व बनाया गया है. नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी की ओर से रणथंभोर से 6 बाघों को रामगढ़ में शिफ्ट करने की अनुमति दे दी गई है. जिसके तहत सबसे पहले दो बाघों को शिफ्ट करने का फैसला किया गया है.
अगले माह ही शिफ्ट हो सकते हैं बाघ
वन विभाग की सूत्रों की मानें तो अगले माह से बूंदी में रामगढ़ अभयारण्य के अंदर चलने के लिए ट्रैक का निर्माण शुरू हो जाएगा और बाघों को शिफ्ट कर दिया जाएगा. सूत्रों ने यह भी बताया कि अनुमति मिलने के बाद वन विभाग के अधिकारियों ने कुछ जंगली जानवरों को अभयारण्य में छोड़ना भी शुरू कर दिया है ताकि एक बड़ी प्रजाति का कुनबा बूंदी के रामगढ़ अभयारण्य में बन सके.
रणथंभोर में खड़ी हुई टूरिज्म इंडस्ट्री
आपको बता दें कि रणथंभोर में बाघों की वजह से सालाना करोड़ों रुपए की टूरिज्म इंडस्ट्री खड़ी हो गई है. साथ ही 10 हजार से ज्यादा लोगों को रोजगार मिल रहा है. छोटे-बड़े 300 होटल हैं और इनमें 2,000 से अधिक रूम है. 500 और नए रूम बनने जा रहे हैं. बड़े होटल का किराया एक से डेढ़ लाख रुपए तक है. 1 हजार से ज्यादा जिप्सी रजिस्टर हैं. लगातार पर्यटन को विस्तार मिल रहा है.
1999 के बाद हुए परिवर्तन
- 2007 से पिछले वर्ष तक तीन बाघ आए हैं, और तीनों ही मेहमान की तरह यहां से वापस लौट गए.
- 2007 में बाघ युवराज तो वापस लौटते समय लाखेरी के पास मेज नदी की कंदराओं में शिकारियों के हत्थे चढ़ गया था.
- 5 वर्ष बाद बाघ टी-62 आया तो कुछ माह तक रामगढ़ में समय बिताकर वापस लौट गया.
- 2017 में फिर टी-91 लगभग 1 वर्ष तक अभयारण्य में रहा, जिसके बाद अप्रैल माह में कोटा के मुकुंदरा टाइगर रिजर्व में सरकार द्वारा उसे शिफ्ट कर दिया गया.
यहां वन्य जीव की भरमार के कारण और 307 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले होने के कारण इसे विषधारी वन्यजीव अभयारण्य का दर्जा दिया गया था. अभयारण्य को 'बाघों का जच्चा घर' का दर्जा प्रदान करने के लिए प्रकृति का योगदान रहा है. रामगढ़ किले की पहाड़ियों के नीचे बनी लंबी सुरंग कभी बाघों की मांदे थी. जिनके पास जाने से लोगों की कंपकंपी छूटती थी. मांदे बाघों का प्रसिद्ध स्थल भी हुआ करती थीं.
इस तरह मिले बूंदी को बाघ
- गहलोत सरकार ने बजट घोषणा में बूंदी के इस रामगढ़ अभयारण्य को बाघ देने की बात कहीं.
- बाघ रिवीव के लिए बनाई गई कमेटी.
- रिपोर्ट सरकार को एनटीसीए द्वारा भेजी गई.
- रिपोर्ट में अभयारण्य को बाघ और अन्य जानवर के लिए पॉजिटिव बताया गया.
- सरकार ने एनटीसीए के माध्यम से लिया फैसला कि बूंदी को टाइगर दिया जाए.
- और इस तरह बूंदी का रामगढ़ अभयारण्य बना चौथा टाइगर रिजर्व.