बीकानेर. बुराई पर अच्छाई की जीत और भगवान राम द्वारा रावण का वध करने के उपलक्ष्य में विजयादशमी यानी कि दशहरा मनाया जाता है. दशहरे को विजयादशमी भी कहते हैं. दशहरे के दिन शस्त्र का पूजन भी होता है, लेकिन इसके पीछे का कारण क्या है इसको लेकर पांचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि शस्त्र पूजन का अभिप्राय और परंपरा रावण के वध के बाद ही शुरू हुई है. उदया तिथि के चलते 24 अक्टूबर को विजयदशमी मनाई जाएगी. सुबह 11 बजकर 42 मिनट से दोपहर 12 बजकर 27 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त रहेगा. फिर दोपहर 1 बजकर 58 मिनट से दोपहर 2 बजकर 43 मिनट तक विजय मुहूर्त रहेगा.
ये है दशहरे का अभिप्राय : पंडित किराडू ने बताया कि दशमी के दिन से भी दशहरे का अभिप्राय है. हर का मतलब होता है हरना और दश का मतलब दशमी तिथि. उन्होंने बताया कि काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार जैसे 10 अवगुण भी रावण में थे और उसके बाद वे नष्ट हो गए. इसके अलावा रावण के 10 सिर थे और उनको भगवान ने एक-एक कर हर मतलब खत्म कर दिया. इसलिए विजयादशमी को दशहरा भी कहते हैं. रावण पर विजय और दशमी का अर्थ तिथि से है, इसलिए इसे विजयादशमी भी कहते हैं.
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युद्ध के लिए मिले शस्त्र देवताओं को वापस लौटाए : पंडित किराडू ने बताया कि राम और रावण के बीच युद्ध लंबा चला और समस्त देवी देवताओं ने अपने विशेष अस्त्र और शस्त्र भगवान राम को रावण के वध के लिए दिए थे. जब रावण का वध हो गया तब भगवान श्रीराम ने इन शस्त्रों का पूजन कर वापस उन देवताओं को लौटाया था. इन शस्त्रों में देवी-देवताओं ऋषि-मुनियों की ओर से दिए किए गए शस्त्र शामिल थे और तभी से दशहरे पर शस्त्र पूजन की परंपरा चली आ रही है. वे कहते हैं कि विशेष अस्त्र और शस्त्रों से भगवान राम ने रावण का वध कर युद्ध में विजय प्राप्त की थी.
विजयादशमी पूजा विधि : दशहरा पर विजय मुहूर्त या अपराह्न काल में पूजा करना उत्तम माना गया है. इस दिन प्रात:काल स्नान के बाद नए या साफ वस्त्र पहने और श्रीराम, माता सीता और हनुमान जी की उपासना करें. जहां पूजा करनी है वहां गंगाजल छिड़कें और चंदन से लेप लगाकर अष्टदल चक्र बनाएं. इस दिन अपराजिता और शमी पेड़ की पूजा का विशेष महत्व है.