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Vijaya Ekadashi 2023: विजया एकादशी आज, इस विधि से करें व्रत चमक जाएगी आपकी किस्मत - Vijaya Ekadashi Shubh Muhurat

सनातन धर्म में पञ्चांग के मुताबिक हर 15 दिन में एक बार का एकादशी तिथि आती है. एक साल में कुल 24 एकादशी आती हैं और प्रत्येक एकादशी का अपना अलग महत्व होता है. फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी (Vijaya Ekadashi Shubh Muhurat) कहते हैं.

Vijaya Ekadashi 2023
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Published : Feb 16, 2023, 7:07 AM IST

बीकानेर. वैसे तो सनातन धर्म में एकादशी तिथि को मोक्षदायिनी तिथि कहा जाता है. लेकिन हर एकादशी का अपना महत्व है. फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहा जाता है. इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा आराधना करने का विधान है. वहीं गुरुवार को एकादशी की तिथि होने से इसका महत्व और बढ़ गया है क्योंकि गुरुवार को भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा का दिन माना जाता है. इस बार 16 और 17 फरवरी दोनों ही दिन एकादशी तिथि मनाई जाएगी. हालांकि, वैष्णव संप्रदाय से जुड़े लोग 17 फरवरी को एकादशी तिथि मनाएंगे. वहीं सामान्य तौर पर विजया एकादशी 16 फरवरी दिन गुरुवार को मनाई जाएगी.

नए कार्य के लिए शुभ
कहते हैं किसी भी नए और शुभ कार्य की शुरुआत के लिए विजया एकादशी तिथि का बहुत महत्व है. व्यापार, लेखन और मनवांछित फल की शुरुआत के लिए विजया एकादशी का दिन बहुत ही शुभ होता है. इस दिन शुरू किया गया काम भगवान विष्णु की आराधना करने से निर्विघ्न संपन्न होता है.

पढ़ें- Somvati Amavasya 2023: 20 फरवरी को सोमवती अमावस्या, इन उपायों से शुभ फल की होगी प्राप्ति

ये है मुहुर्त
अभिजीत मुहूर्त की बात करें तो दोपहर 12 बजकर 13 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 58 मिनट तक है. विजय मुहूर्त की बात करें तो दोपहर 02 बजकर 27 मिनट से लेकर दोपहर 03 बजकर 12 मिनट तक. गोधूलि मुहूर्त शाम 06 बजकर 09 मिनट से लेकर शाम 06 बजकर 35 मिनट तक.

दान दक्षिणा का महत्व
सनातन धर्म शास्त्रों में और पूजा आराधना और व्रत उपवास के बाद दान दक्षिणा देने का महत्व है. लेकिन यह कार्य अपनी स्वेच्छा से करना चाहिए. दान जबरन नहीं देना चाहिए. विजया एकादशी व्रत के साथ दान का महत्व है. दान को अपनी सामर्थ्य के अनुसार करना चाहिए. इस दिन जरूरतमंद को भोजन कराना भी श्रेष्ठ है.

पढ़ें- Aaj Ka Rashifal 16 February : कैसा बीतेगा आज का दिन,जानिए अपना आज का राशिफल

भगवान राम ने भी रखा था व्रत
पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के मुताबिक विजया एकादशी के दिन स्वयं भगवान राम ने भी अपनी सेना के साथ व्रत रखा था. कई पौराणिक कथाओं में इस बात का उल्लेख मिलता है कि कई राजाओं ने युद्ध के समय हार टालने के लिए विजय एकादशी का व्रत रखा और भगवान विष्णु की आराधना की. इसका प्रतिफल उन्हें युद्ध में जीत के रूप में मिला और इसीलिए इस दिन को विजय के रूप में प्रतिस्थापित किया जाता है.

बीकानेर. वैसे तो सनातन धर्म में एकादशी तिथि को मोक्षदायिनी तिथि कहा जाता है. लेकिन हर एकादशी का अपना महत्व है. फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहा जाता है. इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा आराधना करने का विधान है. वहीं गुरुवार को एकादशी की तिथि होने से इसका महत्व और बढ़ गया है क्योंकि गुरुवार को भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा का दिन माना जाता है. इस बार 16 और 17 फरवरी दोनों ही दिन एकादशी तिथि मनाई जाएगी. हालांकि, वैष्णव संप्रदाय से जुड़े लोग 17 फरवरी को एकादशी तिथि मनाएंगे. वहीं सामान्य तौर पर विजया एकादशी 16 फरवरी दिन गुरुवार को मनाई जाएगी.

नए कार्य के लिए शुभ
कहते हैं किसी भी नए और शुभ कार्य की शुरुआत के लिए विजया एकादशी तिथि का बहुत महत्व है. व्यापार, लेखन और मनवांछित फल की शुरुआत के लिए विजया एकादशी का दिन बहुत ही शुभ होता है. इस दिन शुरू किया गया काम भगवान विष्णु की आराधना करने से निर्विघ्न संपन्न होता है.

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ये है मुहुर्त
अभिजीत मुहूर्त की बात करें तो दोपहर 12 बजकर 13 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 58 मिनट तक है. विजय मुहूर्त की बात करें तो दोपहर 02 बजकर 27 मिनट से लेकर दोपहर 03 बजकर 12 मिनट तक. गोधूलि मुहूर्त शाम 06 बजकर 09 मिनट से लेकर शाम 06 बजकर 35 मिनट तक.

दान दक्षिणा का महत्व
सनातन धर्म शास्त्रों में और पूजा आराधना और व्रत उपवास के बाद दान दक्षिणा देने का महत्व है. लेकिन यह कार्य अपनी स्वेच्छा से करना चाहिए. दान जबरन नहीं देना चाहिए. विजया एकादशी व्रत के साथ दान का महत्व है. दान को अपनी सामर्थ्य के अनुसार करना चाहिए. इस दिन जरूरतमंद को भोजन कराना भी श्रेष्ठ है.

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भगवान राम ने भी रखा था व्रत
पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के मुताबिक विजया एकादशी के दिन स्वयं भगवान राम ने भी अपनी सेना के साथ व्रत रखा था. कई पौराणिक कथाओं में इस बात का उल्लेख मिलता है कि कई राजाओं ने युद्ध के समय हार टालने के लिए विजय एकादशी का व्रत रखा और भगवान विष्णु की आराधना की. इसका प्रतिफल उन्हें युद्ध में जीत के रूप में मिला और इसीलिए इस दिन को विजय के रूप में प्रतिस्थापित किया जाता है.

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