बीकानेर. कहते हैं कि सोम प्रदोष व्रत करने वाले भक्तों से भगवान भोलेनाथ बहुत ही प्रसन्न रहते हैं और उस पर भोलेनाथ की असीम कृपा बनी रहती है. इतना ही नहीं सोम प्रदोष व्रत से कुंडली में चंद्रमा की स्थिति कमजोर है तो वह मजबूत होती है. यदि पहले से मजबूत है तो और भी ज्यादा मजबूत हो जाती है. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है. सोमवार और प्रदोष का एक ही दिन होना सोम प्रदोष का संयोग का भी बहुत ही ज्यादा महत्व है. सोम प्रदोष व्रत का धार्मिक दृष्टि से भी बड़ा ही महत्व है.
गाय दान जितना महत्व : प्रदोष के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान-ध्यान, पूजा-अर्चना करनी चाहिए. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत का दिन होता है. इस दिन सुबह सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान-ध्यान, पूजा-अर्चना करनी चाहिए. दिनभर उपवास रखकर सायंकाल पुनः स्नान करके प्रदोष काल में भगवान शिवजी की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए. स्कन्दपुराण में वर्णित प्रदोष व्रत कथा को पढ़ना या सुनना चाहिए. प्रदोष व्रत से जीवन के समस्त दोषों का शमन अर्थात नाश होता है. साथ ही सुख सौभाग्य में भी वृद्धि होती है. प्रदोष व्रत का लाभ महिलाएं और पुरुष दोनों के लिए समान है. इस दिन व्रत रखने वाले जातक को दो गायों का दान करने के बराबर पुण्य मिलता है. पूरी निष्ठा के साथ सोम प्रदोष व्रत रखने वाले व्य्कति के जीवन के सारे कष्टों को भगवान शिव दूर कर देते हैं.
सोम प्रदोष का महत्व : पंचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि प्रदोष का व्रत सप्ताह के किसी न किसी वार में आता है और उस वार के नाम से ही प्रदोष का व्रत होता है. हर बार अलग अलग वार के हिसाब से होने वाले प्रदोष व्रत का अपना एक महत्व है. ऐसी मान्यता है कि जो कोई भी सोम प्रदोष व्रत को पूरे विधि-विधान के साथ करता है तो उसके जीवन से जुड़े सभी दोष, रोग, शत्रु स्वत: ही दूर हो जाते हैं और उससे उसके जीवन में सुख-संपत्ति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. सोम प्रदोष का व्रत करने वाले जातक पर शिव की कृपा हमेशा बरसती रहती है.
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पीपल की पूजा : जो व्यक्ति बार-बार प्रयत्नों के बावजूद सफलता प्राप्त न कर पा रहा हो अथवा सफलता-प्राप्ति के प्रति पूर्णतया निराश हो चुका हो, उसे प्रत्येक सोमवार को पीपल के वृक्ष के नीचे शाम के समय एक दीप जलाएं. फिर उस वृक्ष की परिक्रमा 5 बार करनी चाहिए. लगातार कुछ दिनों तक ऐसा करने वाले साधकों को उसके कार्यों में धीरे-धीरे सफलता मिलने लगती है.