बीकानेर. सनातन धर्म परंपरा में व्रत और त्योहारों का बहुत महत्व है. उपवास और व्रत करने से व्यक्ति मानसिक, शारीरिक, आध्यात्मिक शुद्धि, नैतिक बल और आनंद को प्राप्त करता है. व्रत परंपरा में प्रत्येक माह की एकादशी महत्वपूर्ण होती है, लेकिन निर्जला एकादशी सबसे महत्वपूर्ण एकादशी मानी जाती है. इसमें निर्जल रहकर उपवास करना होता है. हिंदू मान्यता के अनुसार निर्जला एकादशी पर व्रत करने से वर्ष की सभी 24 एकादशियों के समतुल्य पुण्य प्राप्त होता है. पांडव पुत्र भीम से जुड़ी होने के कारण इसे पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी या भीम एकादशी भी कहते हैं.
व्रत करने की समय अवधि : बीकानेर के ज्योतिर्विद डॉ. आलोक व्यास ने बताया कि निर्जला एकादशी को ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन मनाने की परंपरा रही है, जो कि सामान्यतः मई या जून माह में आती है. इस वर्ष निर्जला एकादशी 30 मई की दोपहर 1:07 बजे आरंभ होकर 31 मई की दोपहर 1:45 तक रहेगी, लेकिन सूर्योदय तिथि नियमानुसार 31 मई 2023 को निर्जला एकादशी मनाई जाएगी. निर्जला एकादशी व्रत का पारण समय (व्रत समाप्ति) 1 जून को (द्वादशी) को सुबह 5:24 से लेकर 8:10 तक रहेगा.
पौराणिक कथा महत्व : पौराणिक मान्यता के अनुसार भूख पर नियंत्रण न होने के कारण पांच पांडवों में भीम शेष पांडवों और द्रौपदी के भांति प्रत्येक माह एकादशी का व्रत नहीं कर पाता था. इस बात से व्यथित होकर भीम ने महर्षि वेद व्यास से इसका हल पूछा और तब महर्षि वेदव्यास ने भीम को ज्येष्ठ माह की शुक्ल एकादशी के दिन निर्जल व्रत करने को कहा. इस एकादशी के दिन निर्जल उपवास करने से वर्ष की शेष सभी एकादशी पर व्रत न करने पर भी बराबर का पुण्य प्राप्त होगा.
प्राकृतिक दृष्टिकोण से महत्व : पुरातन काल से ही सनातन परंपरा प्राकृतिक रूप से उपलब्ध संसाधनों और उनके समुचित देखभाल से जुड़ी रही है. निर्जला एकादशी वर्ष के मई या जून माह में आती है. उस समय पानी की उपलब्धता सीमित होने पर इस प्रकार का व्रत या उपवास जल के महत्व को दर्शाता है.
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व्रत परंपरा और दान-पुण्य : ज्योतिर्विद डॉ. आलोक व्यास के अनुसार निर्जला एकादशी के दिन उपासक एकादशी के सूर्योदय से द्वादशी के सूर्य उदय तक निर्जल रहकर उपवास करता है और द्वादशी के दिन पारण (व्रत समाप्ति) करता है. इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना की जाती है और उन्हें पीले वस्त्र पहना कर पीले चावल, पीले फल (केला), चरणामृत, तुलसीपत्ते इत्यादि भेंट कर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी के मंत्रों का जाप किया जाता है. राजस्थान के पश्चिमी अंचल में निर्जला एकादशी के दिन मटकी, पंखा, खरबूजा, मीठा द्रव्य, छतरी, आम, अन्न, वस्त्र, कलश इत्यादि के दान करने की सनातन परंपरा रही है. ऐसी मान्यता है कि इस दिन दान-पुण्य करने से उपासक पूरे वर्ष अन्य एकादशी के दिन अन्न ग्रहण करने की छूट प्राप्त कर लेता है.
ज्योतिषीय योग : इस वर्ष निर्जला एकादशी के दिन (31 मई 2023) बृहस्पति मेष राशि और अश्विन नक्षत्र पर और शनि कुंभ राशि और शतभिषा पर नक्षत्र है. बृहस्पति राहु की युति गुरु चांडाल योग बना रही है. उपरोक्त ज्योर्तिष्य योग पर धार्मिक क्रियाकलाप और दान-पुण्य शुभ ग्रहों की प्रबलता को बढ़ाता है.