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प्रवासी मजदूरों का छलका दर्द, कहा- भूखे मरने से अच्छा है हम अपने घर जाकर मरें

घर जाने की जद्दोजहद कर रहे प्रवासी मजदूर अपना दर्द सुनाते हुए रो पड़े. ये सभी मजदूर रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए बीकानेर जिला कलेक्ट्रेट परिसर पहुंचे थे. परिसर में मौजूद लोगों ने कहा कि, हमारे पास खाने का कोई इंतजाम नहीं है. यहां भूखे मरने से अच्छा है हम रास्ते में या फिर घर जाकर ही मरें.

Migrant laborers, प्रवासी मजदूर
कलेक्ट्रेट परिसर में रजिस्ट्रेशन के लिए पहुंचे मजदूर.
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Published : May 16, 2020, 7:23 PM IST

बीकानेर. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कोई भी भूखा ना सोए इसका दावा किया था, लेकिन अब इसकी पोल खोलती दिख रही है. वैसे तो कोरोना वायरस और लॉकडाउन 3.0 ने पूरे विश्व को हिलाकर रख दिया है, लेकिन प्रवासी मजदूर तो अपना दर्द भी ठीक से बताने की स्थिति में नहीं हैं. या फिर यूं कहें कि इनकी कोई सुनने वाला ही नहीं है.

कलेक्ट्रेट परिसर में रजिस्ट्रेशन के लिए पहुंचे मजदूर.

शायद यही वजह है कि, गरीब, मजबूर लोगों को कोरोना वायरस से कम अब भूख से मरने का डर ज्यादा सता रहा है. बीकानेर में काम की तलाश में आए प्रवासी मजदूरों का दर्द ईटीवी भारत से बात करते हुए छलक पड़ा.

Migrant laborers, प्रवासी मजदूर
कलेक्ट्रेट परिसर में रजिस्ट्रेशन के लिए पहुंचे मजदूर.

बात करते हुए एक युवक ने कहा कि, काम-धंधे बंद हो गए हैं. ठेकेदार पैसे भी नहीं दे रहे हैं. हालात ये हैं कि अब, भूखे मरने की नौबत आ गई है. अब हमें कोरोना का नहीं बल्कि भूख से मरने का डर सता रहा है. युवक ने कहा कि, भूख से मरने से अच्छा है कि, अपने घर में ही जाकर हम मरें. युवक ने कहा, हम कैसे भी अपने घर जाना चाहते हैं.

ये भी पढ़ें: राज्य में एक जिले से दूसरे जिले में जाने पर क्वॉरेंटाइन अनिवार्य नहीं: मुख्यमंत्री

ये सिर्फ किसी एक मजदूर और परिवार का दर्द नहीं है बल्कि, उन सभी प्रवासी मजदूरों का है जो लॉकडाउन के दौरान अपने राज्यों में घरों तक पहुंचना चाहते हैं. ये सभी मजदूर रजिस्ट्रेशन करवाने जिला कलेक्ट्रेट परिसर में आए थे. इन कामगारों का कहना है कि, कोरोना के कारण लॉकडाउन लगने से उनकी रोजी-रोटी का जुगाड़ छिन गया. अपने घर से यहां कुछ कमाने के लिए आए थे लेकिन अब लग रहा है कैसे घर पहुंचे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है.

बीकानेर. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कोई भी भूखा ना सोए इसका दावा किया था, लेकिन अब इसकी पोल खोलती दिख रही है. वैसे तो कोरोना वायरस और लॉकडाउन 3.0 ने पूरे विश्व को हिलाकर रख दिया है, लेकिन प्रवासी मजदूर तो अपना दर्द भी ठीक से बताने की स्थिति में नहीं हैं. या फिर यूं कहें कि इनकी कोई सुनने वाला ही नहीं है.

कलेक्ट्रेट परिसर में रजिस्ट्रेशन के लिए पहुंचे मजदूर.

शायद यही वजह है कि, गरीब, मजबूर लोगों को कोरोना वायरस से कम अब भूख से मरने का डर ज्यादा सता रहा है. बीकानेर में काम की तलाश में आए प्रवासी मजदूरों का दर्द ईटीवी भारत से बात करते हुए छलक पड़ा.

Migrant laborers, प्रवासी मजदूर
कलेक्ट्रेट परिसर में रजिस्ट्रेशन के लिए पहुंचे मजदूर.

बात करते हुए एक युवक ने कहा कि, काम-धंधे बंद हो गए हैं. ठेकेदार पैसे भी नहीं दे रहे हैं. हालात ये हैं कि अब, भूखे मरने की नौबत आ गई है. अब हमें कोरोना का नहीं बल्कि भूख से मरने का डर सता रहा है. युवक ने कहा कि, भूख से मरने से अच्छा है कि, अपने घर में ही जाकर हम मरें. युवक ने कहा, हम कैसे भी अपने घर जाना चाहते हैं.

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ये सिर्फ किसी एक मजदूर और परिवार का दर्द नहीं है बल्कि, उन सभी प्रवासी मजदूरों का है जो लॉकडाउन के दौरान अपने राज्यों में घरों तक पहुंचना चाहते हैं. ये सभी मजदूर रजिस्ट्रेशन करवाने जिला कलेक्ट्रेट परिसर में आए थे. इन कामगारों का कहना है कि, कोरोना के कारण लॉकडाउन लगने से उनकी रोजी-रोटी का जुगाड़ छिन गया. अपने घर से यहां कुछ कमाने के लिए आए थे लेकिन अब लग रहा है कैसे घर पहुंचे कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है.

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