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तेलंगाना की एक अनोखी आदिवासी बस्ती, 70 साल पहले दंपती ने रोटी, अचार खाकर इसे बसाया - REMOTE TRIBAL VILLAGE OF TELANGANA

उस परिवार के लिए यह एक खास गांव है. नलगोंडा में मूडू गुडीसेला थांडा जिसे एक अनोखी आदिवासी बस्ती के तौर पर जाना जाता है.

तेलंगाना की एक अनोखी आदिवासी बस्ती
तेलंगाना की एक अनोखी आदिवासी बस्ती (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 16, 2025, 5:34 PM IST

नलगोंडा: तेलंगाना के नलगोंडा जिले के मध्य में स्थित मूडू गुडीसेला थांडा एक सुदूर आदिवासी गांव है. यह अनोखी बस्ती, जिसका मतलब है 'तीन झोपड़ियों वाला गांव'. इस गांव को आज से 70 साल पहले नेनावत चंद्रू नाम के एक दूरदर्शी शख्स ने स्थापित किया था. वह अपनी पत्नी चांदनी के साथ जंगल में जीवन जीने के लिए गांधीनगर थांडा छोड़कर कर चले गए थे.

एक झोपड़ी से गांव तक का सफर
1955 में, चंद्रू और चांदनी प्रकृति की गोद में जंगलों और पहाड़ियों से घिरे इस जगह पर आकर बस गए. उन्होंने यहां ज्वार और बाजरा की खेती की. इस दौरान वे पूरी तरह से बारिश के पानी पर निर्भर रहे. आपको जानकर हैरानी होगी कि, दंपती रोटी, मिर्च और अचार जैसे साधारण भोजन खाकर सालों तक खुद को जीवित रखा.

चंद्रू का दृढ़ संकल्प और आत्मनिर्भरता आज एक संपन्न समुदाय की नींव बन गई है. उनके तीन बेटे थे, पूरिया, डूडा और गांस्या, जिन्होंने उसी क्षेत्र में खेती करके अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाया. समय के साथ, उनके बेटे ने शादी की और अपना घर बनाया. इसी के साथ गांव तीन स्थायी निवासों के समूह में बदल गया, जिससे इस बस्ती को इसका नाम मिला.

A Special Village for That Family
तेलंगाना की एक अनोखी आदिवासी बस्ती (A Special Village for That Family - Moodu Gudisela Thanda in Nalgonda: A Unique Tribal Settlement)

अंधकार से प्रकाश की ओर
मूडू गुडीसेला थांडा गांव में जीवन ने तब एक परिवर्तनकारी मोड़ लिया जब सीपीआई नेता गुलाम रसूल की नजर इस पर पड़ी. ग्रामीणों की बिजली तक पहुंच की कमी को देखते हुए, उन्होंने तत्कालीन सांसद धर्मभिक्षा के साथ मिलकर इलाके में बिजली की व्यवस्था को लेकर कड़ी मेहनत की. इस प्रक्रिया के दौरान, बस्ती का नाम आधिकारिक तौर पर "तीन झोपड़ियां थांडा" के रूप में दर्ज किया गया, जो आज भी कायम है.

कृषि पर निर्भर एक गांव
आज, मूडू गुडीसेला थांडा में लगभग 20 परिवार रहते हैं, जो सभी चंद्रू के वंश के वंशज हैं. एक ही वंश के लगभग 60 सदस्यों के साथ, गांव कृषि से दृढ़ता से जुड़ा हुआ है. आधुनिकीकरण के बावजूद, एक भी परिवार गांव छोड़कर नहीं गया, जो उनकी जमीन और जीवनशैली से उनके गहरे जुड़ाव को दर्शाता है.

स्वच्छ हवा और ज्वार की रोटी के साधारण आहार पर पलने वाले ग्रामीण अपने मजबूत स्वास्थ्य और दीर्घायु होने का श्रेय अपनी पारंपरिक जीवनशैली को देते हैं. उल्लेखनीय रूप से, चंद्रू के दो बेटे अभी भी जीवित हैं, जो गांव के समृद्ध इतिहास के जीवित गवाह के रूप में खड़े हैं.

A Special Village for That Family -
तेलंगाना की एक अनोखी आदिवासी बस्ती (A Special Village for That Family - Moodu Gudisela Thanda in Nalgonda: A Unique Tribal Settlement)

यह सिर्फ एक गांव नहीं है....
मूडू गुडीसेला थांडा सिर्फ एक गांव नहीं है. यह एक ऐसे परिवार की एकता और स्थायी भावना का प्रमाण है जिसने एक झोपड़ी को एक संपन्न बस्ती में बदल दिया. चंद्रू के दूसरे बेटे ने डूडा ने कहा, "पिताजी ने हमें सिखाया कि जमीन सिर्फ आजीविका नहीं है बल्कि हमारे परिवार की विरासत है. इसलिए हम यहां रहे और इसे संजोया. इतने सालों के बाद भी, हम एक परिवार की तरह रहते हैं जो उस मिट्टी से जुड़ा हुआ है जिस पर हमारे पिता को भरोसा था. इस जमीन ने हमें सब कुछ दिया है."

वहीं, गस्या, चंद्रू का सबसे छोटे बेटे ने कहा "हम पिता को अथक परिश्रम करते हुए देखते हुए बड़े हुए हैं. यह उनका सपना है जो इस गांव को जीवित रखता है, और हमें इसे आगे बढ़ाने पर गर्व है." हमारी ताकत एक साथ रहने में निहित है. तीन झोपड़ियां अब बड़ी हो गई हैं, लेकिन उन्होंने हममें जो एकता पैदा की है वह अब भी कायम है."

ये भी पढ़ें: तेलंगाना: विकाराबाद जिले में 1000 साल पुरानी जैन मूर्तियां खोजी गई

नलगोंडा: तेलंगाना के नलगोंडा जिले के मध्य में स्थित मूडू गुडीसेला थांडा एक सुदूर आदिवासी गांव है. यह अनोखी बस्ती, जिसका मतलब है 'तीन झोपड़ियों वाला गांव'. इस गांव को आज से 70 साल पहले नेनावत चंद्रू नाम के एक दूरदर्शी शख्स ने स्थापित किया था. वह अपनी पत्नी चांदनी के साथ जंगल में जीवन जीने के लिए गांधीनगर थांडा छोड़कर कर चले गए थे.

एक झोपड़ी से गांव तक का सफर
1955 में, चंद्रू और चांदनी प्रकृति की गोद में जंगलों और पहाड़ियों से घिरे इस जगह पर आकर बस गए. उन्होंने यहां ज्वार और बाजरा की खेती की. इस दौरान वे पूरी तरह से बारिश के पानी पर निर्भर रहे. आपको जानकर हैरानी होगी कि, दंपती रोटी, मिर्च और अचार जैसे साधारण भोजन खाकर सालों तक खुद को जीवित रखा.

चंद्रू का दृढ़ संकल्प और आत्मनिर्भरता आज एक संपन्न समुदाय की नींव बन गई है. उनके तीन बेटे थे, पूरिया, डूडा और गांस्या, जिन्होंने उसी क्षेत्र में खेती करके अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाया. समय के साथ, उनके बेटे ने शादी की और अपना घर बनाया. इसी के साथ गांव तीन स्थायी निवासों के समूह में बदल गया, जिससे इस बस्ती को इसका नाम मिला.

A Special Village for That Family
तेलंगाना की एक अनोखी आदिवासी बस्ती (A Special Village for That Family - Moodu Gudisela Thanda in Nalgonda: A Unique Tribal Settlement)

अंधकार से प्रकाश की ओर
मूडू गुडीसेला थांडा गांव में जीवन ने तब एक परिवर्तनकारी मोड़ लिया जब सीपीआई नेता गुलाम रसूल की नजर इस पर पड़ी. ग्रामीणों की बिजली तक पहुंच की कमी को देखते हुए, उन्होंने तत्कालीन सांसद धर्मभिक्षा के साथ मिलकर इलाके में बिजली की व्यवस्था को लेकर कड़ी मेहनत की. इस प्रक्रिया के दौरान, बस्ती का नाम आधिकारिक तौर पर "तीन झोपड़ियां थांडा" के रूप में दर्ज किया गया, जो आज भी कायम है.

कृषि पर निर्भर एक गांव
आज, मूडू गुडीसेला थांडा में लगभग 20 परिवार रहते हैं, जो सभी चंद्रू के वंश के वंशज हैं. एक ही वंश के लगभग 60 सदस्यों के साथ, गांव कृषि से दृढ़ता से जुड़ा हुआ है. आधुनिकीकरण के बावजूद, एक भी परिवार गांव छोड़कर नहीं गया, जो उनकी जमीन और जीवनशैली से उनके गहरे जुड़ाव को दर्शाता है.

स्वच्छ हवा और ज्वार की रोटी के साधारण आहार पर पलने वाले ग्रामीण अपने मजबूत स्वास्थ्य और दीर्घायु होने का श्रेय अपनी पारंपरिक जीवनशैली को देते हैं. उल्लेखनीय रूप से, चंद्रू के दो बेटे अभी भी जीवित हैं, जो गांव के समृद्ध इतिहास के जीवित गवाह के रूप में खड़े हैं.

A Special Village for That Family -
तेलंगाना की एक अनोखी आदिवासी बस्ती (A Special Village for That Family - Moodu Gudisela Thanda in Nalgonda: A Unique Tribal Settlement)

यह सिर्फ एक गांव नहीं है....
मूडू गुडीसेला थांडा सिर्फ एक गांव नहीं है. यह एक ऐसे परिवार की एकता और स्थायी भावना का प्रमाण है जिसने एक झोपड़ी को एक संपन्न बस्ती में बदल दिया. चंद्रू के दूसरे बेटे ने डूडा ने कहा, "पिताजी ने हमें सिखाया कि जमीन सिर्फ आजीविका नहीं है बल्कि हमारे परिवार की विरासत है. इसलिए हम यहां रहे और इसे संजोया. इतने सालों के बाद भी, हम एक परिवार की तरह रहते हैं जो उस मिट्टी से जुड़ा हुआ है जिस पर हमारे पिता को भरोसा था. इस जमीन ने हमें सब कुछ दिया है."

वहीं, गस्या, चंद्रू का सबसे छोटे बेटे ने कहा "हम पिता को अथक परिश्रम करते हुए देखते हुए बड़े हुए हैं. यह उनका सपना है जो इस गांव को जीवित रखता है, और हमें इसे आगे बढ़ाने पर गर्व है." हमारी ताकत एक साथ रहने में निहित है. तीन झोपड़ियां अब बड़ी हो गई हैं, लेकिन उन्होंने हममें जो एकता पैदा की है वह अब भी कायम है."

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