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बीकानेर में सागवान की लकड़ी से बनती है गौरा-ईसर की मूर्ति, बारीकी ऐसी की विदेशों में भी डिमांड - बीकानेर में लकड़ी की गणगौर

सुहागिन महिलाएं और कुंवारी लड़कियों के आस्था का पर्व गणगौर की शुरुआत हो चुकी है. इस पर्व पर बीकानेर की लकड़ी से बनी गौरा-ईसर की अपनी एक अलग पहचान है. इसकी डिमांड राजस्थान से लेकर देश और (Wooden Isar Gangaur in Bikaner) दुनिया में भी है.

Gangaur Festival in Rajasthan
लकड़ी के गौरा-ईसर
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Published : Mar 9, 2023, 7:54 PM IST

बीकानेर की खास गौरा-ईसर की मूर्ति

बीकानेर. सनातन धर्म में महिलाओं के लिए गणगौर पर्व को बेहद खास माना जाता है. गणगौर को मां गौरी यानी कि पार्वती और ईसर जी को भगवान शिव का स्वरूप माना जाता है. होलिका दहन के अगले दिन से गणगौर पूजन की शुरुआत होती है. ऐसे में गणगौर और ईसर की प्रतिमा की भी डिमांड बढ़ जाती है. बीकानेर में लकड़ी से तैयार की गई ईसर-गणगौर की मूर्ति की अपनी ही पहचान है. प्रतिमा ऐसी सजीव लगती है कि मानो गणगौर माता अब बोल उठेंगी.

हाथ से होता है बारीक काम : यहां बनने वाली ईसर और गणगौर की प्रतिमा पर काफी बारीकी से काम होता है. पूरी तरह से तैयार होने के बाद ऐसा लगता है कि प्रतिमा के स्वरूप में सामने खड़ी गणगौर अभी बोल उठेंगी. चेहरे पर सजीव भाव देखते ही बनते हैं. सागवान की लकड़ी से तैयार की जाने वाली ईसर-गणगौर की मांग बीकानेर के साथ ही देश और दुनिया में रहने वाले प्रवासी राजस्थानियों में भी रहती है. गणगौर का पर्व नजदीक आने पर इसकी डिमांड और बढ़ जाती है. हालांकि प्रवासी राजस्थानी बीकानेर आकर अपनी पसंद अनुसार चयन करके प्रतिमा ले जाते हैं. मुम्बई, मद्रास, कोलकाता, उड़ीसा, अहमदाबाद, सूरत जैसे महानगरोंं में बीकानेर के बड़ी संख्या में परिवार बसे हुए हैं, जिनके लिए आज भी बीकानेर की गणगौर पहली पसंद है.

Wooden Isar Gangaur in Bikaner
हाथों से तैयार की जाती हैं प्रतिमा

पढ़ें. Gangaur Puja in Jaipur : इस बार 16 की बजाए 18 दिन पूजी जाएंगी गणगौर, जानें क्या है विशेष

40 हजार से डेढ़ लाख लागत : गणगौर बनाने वाले कारीगर सांवरमल ने बताया कि गणगौर को बनाने में काफी मेहनत लगती है. वे 40 हजार से लेकर डेढ़ लाख रुपए तक की गणगौर बनाते हैं. इसके अलावा आदमकद गणगौर ऑर्डर पर तैयार की जाती है. वे कहते हैं कि यह तो केवल लकड़ी से बनी गणगौर की लागत है. वस्त्र, आभूषण और श्रृंगार का खर्च अलग होता है. इसके अलावा हर व्यक्ति अपनी श्रद्धा और बजट के अनुसार आभूषण तैयार करवाता है. कई लोग सोने के लाखों रुपए के आभूषण भी तैयार करवाते हैं.

पढ़ें. गणगौर घूमर महोत्सव में दिखा राजसी ठाठ बाट, क्षत्राणियों ने किया रैम्प वॉक

पूरे साल यही काम : बीकानेर में गिने-चुने लोग ही इस काम को करते हैं. पिछले 100 सालों से पांचवी पीढ़ी में इस काम को करने वाले सांवरमल और गिरधर बताते हैं कि उन्होंने अपने पूर्वजों से काम सीखा और अब अपने आने वाली पीढ़ी को भी इसमें तैयार कर रहे हैं. वे कहते हैं कि हमारा पूरा साल यही काम करने में निकल जाता है. एक गणगौर को बनाने में करीब 10 से 15 दिन लगते हैं. गणगौर और ईसर को तैयार होने में एक महीना लग जाता है. ईसर-गणगौर की प्रतिमा में पूरी तरह से हाथ से काम होता है. मशीन का कहीं पर भी उपयोग नहीं होता है.

चांदमल ढढ़ा की गणगौर : बीकानेर में रियासत काल से चांदमल ढढ़ा की गणगौर प्रसिद्ध है. गणगौर मेले के दौरान गणगौर को बाहर निकाला जाता है. इनके आभूषणों की कीमत करोड़ों रुपए में है. मेले के दौरान गणगौर की सुरक्षा में पुलिस पुलिस तैनात रहती है. मेले के बाद वापस इन आभूषणों को बैंक में रखा जाता है.

बीकानेर की खास गौरा-ईसर की मूर्ति

बीकानेर. सनातन धर्म में महिलाओं के लिए गणगौर पर्व को बेहद खास माना जाता है. गणगौर को मां गौरी यानी कि पार्वती और ईसर जी को भगवान शिव का स्वरूप माना जाता है. होलिका दहन के अगले दिन से गणगौर पूजन की शुरुआत होती है. ऐसे में गणगौर और ईसर की प्रतिमा की भी डिमांड बढ़ जाती है. बीकानेर में लकड़ी से तैयार की गई ईसर-गणगौर की मूर्ति की अपनी ही पहचान है. प्रतिमा ऐसी सजीव लगती है कि मानो गणगौर माता अब बोल उठेंगी.

हाथ से होता है बारीक काम : यहां बनने वाली ईसर और गणगौर की प्रतिमा पर काफी बारीकी से काम होता है. पूरी तरह से तैयार होने के बाद ऐसा लगता है कि प्रतिमा के स्वरूप में सामने खड़ी गणगौर अभी बोल उठेंगी. चेहरे पर सजीव भाव देखते ही बनते हैं. सागवान की लकड़ी से तैयार की जाने वाली ईसर-गणगौर की मांग बीकानेर के साथ ही देश और दुनिया में रहने वाले प्रवासी राजस्थानियों में भी रहती है. गणगौर का पर्व नजदीक आने पर इसकी डिमांड और बढ़ जाती है. हालांकि प्रवासी राजस्थानी बीकानेर आकर अपनी पसंद अनुसार चयन करके प्रतिमा ले जाते हैं. मुम्बई, मद्रास, कोलकाता, उड़ीसा, अहमदाबाद, सूरत जैसे महानगरोंं में बीकानेर के बड़ी संख्या में परिवार बसे हुए हैं, जिनके लिए आज भी बीकानेर की गणगौर पहली पसंद है.

Wooden Isar Gangaur in Bikaner
हाथों से तैयार की जाती हैं प्रतिमा

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40 हजार से डेढ़ लाख लागत : गणगौर बनाने वाले कारीगर सांवरमल ने बताया कि गणगौर को बनाने में काफी मेहनत लगती है. वे 40 हजार से लेकर डेढ़ लाख रुपए तक की गणगौर बनाते हैं. इसके अलावा आदमकद गणगौर ऑर्डर पर तैयार की जाती है. वे कहते हैं कि यह तो केवल लकड़ी से बनी गणगौर की लागत है. वस्त्र, आभूषण और श्रृंगार का खर्च अलग होता है. इसके अलावा हर व्यक्ति अपनी श्रद्धा और बजट के अनुसार आभूषण तैयार करवाता है. कई लोग सोने के लाखों रुपए के आभूषण भी तैयार करवाते हैं.

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पूरे साल यही काम : बीकानेर में गिने-चुने लोग ही इस काम को करते हैं. पिछले 100 सालों से पांचवी पीढ़ी में इस काम को करने वाले सांवरमल और गिरधर बताते हैं कि उन्होंने अपने पूर्वजों से काम सीखा और अब अपने आने वाली पीढ़ी को भी इसमें तैयार कर रहे हैं. वे कहते हैं कि हमारा पूरा साल यही काम करने में निकल जाता है. एक गणगौर को बनाने में करीब 10 से 15 दिन लगते हैं. गणगौर और ईसर को तैयार होने में एक महीना लग जाता है. ईसर-गणगौर की प्रतिमा में पूरी तरह से हाथ से काम होता है. मशीन का कहीं पर भी उपयोग नहीं होता है.

चांदमल ढढ़ा की गणगौर : बीकानेर में रियासत काल से चांदमल ढढ़ा की गणगौर प्रसिद्ध है. गणगौर मेले के दौरान गणगौर को बाहर निकाला जाता है. इनके आभूषणों की कीमत करोड़ों रुपए में है. मेले के दौरान गणगौर की सुरक्षा में पुलिस पुलिस तैनात रहती है. मेले के बाद वापस इन आभूषणों को बैंक में रखा जाता है.

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