बीकानेर. भाद्रपद कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को बड़ी या कजरी तीज का पर्व मनाया जाता है. आज के दिन सुहागन महिलाएं सोलह श्रृंगार कर अपने पति की दीर्घायु की कामना के लिए व्रत रखती हैं. साथ ही गेहूं, जौ, चना और चावल से बने सत्तू को खाकर व्रत खोलती हैं. दरअसल, सनातन धर्म में व्रत व तिथियों का विशेष महत्व है और वैदिक पंचाग के अनुसार आज कजरी तीज का पर्व है. कहते हैं कि इस व्रत को करने मात्र से ही सुहागन महिलाओं का सुहाग अखंड होता है और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
सुहागनों का सबसे बड़ा व्रत - विवाहित महिलाओं के लिए यह पूरे साल में सबसे बड़ा व्रत होता है. आज के दिन महिलाएं निराहार रहकर व्रत करती हैं तो कई महिलाएं निर्जला उपवास भी रखती हैं. आज के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा आराधना करने के साथ ही नीमड़ी की भी पूजा की जाती है. वहीं, चंद्र दर्शन के बाद अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है. साथ ही व्रत खोलते समय गेहूं, जौ, चना और चावल से बने सत्तू को ग्रहण किया जाता है.
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सोलह श्रृंगार का पर्व - पंचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि भाद्रपद कृष्ण तृतीया को तीज का त्योहार मनाया जाता है. आज के दिन सौभाग्यवती महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं और अपनी सास को बायना (पकवान बांटना) देते हुए अभिवादन करती हैं. काले मेघों की घटा में रात्रि में गीत गाती हैं. मान्यता है कि इस प्रकार के गायन से नीरस हृदय में भी सरसता भरती है.
ये है पौराणिक कथा - पञ्चांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि कजरी तीज को लेकर पौराणिक प्रसंगों की मानें तो एक समय विष्णु भगवान के समक्ष भगवान शंकर ने कज्जल सदृश काली के शरीर का उपहास किया था. इस उपहास से काली ने अपना शरीर त्याग कर सूर्य के समान दैदीप्यमान शरीर धारण कर भगवान शंकर की सहचरी बनी थी. उसी समय से भाद्रपद कृष्ण तृतीया को हरिकाली देवी की पूजा की जाती है. इनके पूजन से पापों से मुक्ति मिलती है और स्त्रियों को सुख व सौभाग्य की प्राप्ति होती है.