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मकर सक्रांति पर बीकानेर में घेवर की भारी डिमांड, बेटियों को की जाती है भेंट - ETVBharat Rajasthan news

बीकानेर में मकर सक्रांति (Makar Sankranti in Bikaner) पर घेवर की बिक्री खूब होती है. यहां बहन-बेटियों को सक्रांति पर घेवर देने का चलन है. वहीं आज लोगों ने खूब दान-पूण्य किया.

Makar Sankranti in Bikaner, Bikaner latest news
बीकानेर में घेवर की भारी डिमांड
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Published : Jan 14, 2022, 4:42 PM IST

बीकानेर. करीब 1 महीने तक मलमास के चलते वर्जित हुए शुभ कार्य मकर सक्रांति के साथ ही शुरू हो गया. मकर सक्रांति का हिंदू धर्म में बड़ा महत्त्व है. बीकानेर में भी मकर सक्रांति का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. उस दिन बीकानेर में दान पुण्य का दौर देखने को मिलता है.

मंदिरों में आने वाले श्रद्धालुओं ने दान-पुण्य की. वहीं बीकानेर में मकर सक्रांति के दिन घर की बेटियों को अलग-अलग वस्तुएं भेंट की जाती (Ghevar in Bikaner) है. इसके साथ ही मिठाई के रूप में घेवर देने की परंपरा भी (Ghevar gifted to girls Bikaner) है. वैसे तो केवल पूरे देश में अलग-अलग जगह पर घेवर बनता है लेकिन बीकानेर में बनने वाला की घेवर की मांग सबसे अधिक होती है. इसके अलावा भी बहुत मात्रा में घेवर बाहर भेजा जाता है.

बीकानेर में घेवर की भारी डिमांड

यह भी पढ़ें. Special: जयपुर में मकर संक्रांति का समृद्ध है इतिहास, पतंगबाजी के अलावा चटशाला और पंचांग पाठन परम्परा भी खास

सर्दी का सीजन शुरू होते ही बीकानेर में घेवर की अस्थाई दुकानें भी शुरू हो जाती (Ghevar Shops in Bikaner) है. मकर सक्रांति के दिन घेवर की बड़ी मात्रा में बिक्री होती है और उसको लेकर पहले ही तैयारी कर ली जाती है. मकर सक्रांति के दिन चीनी से बनी चाशनी का घोल मिलाकर घेवर की बिक्री होती है. बीकानेर में घेवर की छोटी-बड़ी 300 से 400 दुकान लगती है. जिनमें में 50 से ज्यादा स्थाई दुकानें भी शामिल है. बदलते समय के साथ सब अलग-अलग तरह के घेवर बीकानेर में बनाए जाते हैं. जिनमें रबड़ी और पनीर के घेवर भी शामिल हैं. हालांकि, प्रतिस्पर्धा के युग में अब घेवर अलग-अलग भाव में मिलने लग गया है. लेकिन शुद्ध देशी घी और गुणवत्ता युक्त घेवर 400 से 500 किलो की दर से मिलता है.

बीकानेर में मिठाई के बड़े कारोबारी जगमोहन जोशी कहते हैं कि घेवर बीकानेर में कई सालों से बनता जा रहा है. पूरे सीजन में करोड़ों रुपए का कारोबार घेवर से होता है और मकर सक्रांति के दिन इसकी बड़ी मात्रा में बिक्री होती है. उन्होंने बताया कि शादियों में भी घेवर मिठाई के रूप में प्रचलन में है. जोशी ने बताया कि इसका करोड़ों का कारोबार है. मकर सक्रांति के दिन बड़ी मात्रा में इसकी बिक्री बहन बेटियों को मिठाई देने की परंपरा से होती है.

बीकानेर. करीब 1 महीने तक मलमास के चलते वर्जित हुए शुभ कार्य मकर सक्रांति के साथ ही शुरू हो गया. मकर सक्रांति का हिंदू धर्म में बड़ा महत्त्व है. बीकानेर में भी मकर सक्रांति का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. उस दिन बीकानेर में दान पुण्य का दौर देखने को मिलता है.

मंदिरों में आने वाले श्रद्धालुओं ने दान-पुण्य की. वहीं बीकानेर में मकर सक्रांति के दिन घर की बेटियों को अलग-अलग वस्तुएं भेंट की जाती (Ghevar in Bikaner) है. इसके साथ ही मिठाई के रूप में घेवर देने की परंपरा भी (Ghevar gifted to girls Bikaner) है. वैसे तो केवल पूरे देश में अलग-अलग जगह पर घेवर बनता है लेकिन बीकानेर में बनने वाला की घेवर की मांग सबसे अधिक होती है. इसके अलावा भी बहुत मात्रा में घेवर बाहर भेजा जाता है.

बीकानेर में घेवर की भारी डिमांड

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सर्दी का सीजन शुरू होते ही बीकानेर में घेवर की अस्थाई दुकानें भी शुरू हो जाती (Ghevar Shops in Bikaner) है. मकर सक्रांति के दिन घेवर की बड़ी मात्रा में बिक्री होती है और उसको लेकर पहले ही तैयारी कर ली जाती है. मकर सक्रांति के दिन चीनी से बनी चाशनी का घोल मिलाकर घेवर की बिक्री होती है. बीकानेर में घेवर की छोटी-बड़ी 300 से 400 दुकान लगती है. जिनमें में 50 से ज्यादा स्थाई दुकानें भी शामिल है. बदलते समय के साथ सब अलग-अलग तरह के घेवर बीकानेर में बनाए जाते हैं. जिनमें रबड़ी और पनीर के घेवर भी शामिल हैं. हालांकि, प्रतिस्पर्धा के युग में अब घेवर अलग-अलग भाव में मिलने लग गया है. लेकिन शुद्ध देशी घी और गुणवत्ता युक्त घेवर 400 से 500 किलो की दर से मिलता है.

बीकानेर में मिठाई के बड़े कारोबारी जगमोहन जोशी कहते हैं कि घेवर बीकानेर में कई सालों से बनता जा रहा है. पूरे सीजन में करोड़ों रुपए का कारोबार घेवर से होता है और मकर सक्रांति के दिन इसकी बड़ी मात्रा में बिक्री होती है. उन्होंने बताया कि शादियों में भी घेवर मिठाई के रूप में प्रचलन में है. जोशी ने बताया कि इसका करोड़ों का कारोबार है. मकर सक्रांति के दिन बड़ी मात्रा में इसकी बिक्री बहन बेटियों को मिठाई देने की परंपरा से होती है.

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