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Special : कल निकलेगी दुनिया के सबसे महंगे आभूषणों से सजी गणगौर की सवारी

राजस्थान के बीकानेर में शुक्रवार को तीज पर दुनिया के सबसे महंगे आभूषणों से सजी गणगौर की सवारी निकलेगी. बुधवार को तिथि संशय के चलते अब कल और परसों गणगौर बाहर निकलेगी. देखिए ये रिपोर्ट...

History of Bikaner Gangaur
गणगौर की सवारी
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Published : Mar 23, 2023, 7:15 PM IST

बीकानेर. गणगौर पर्व होलिका दहन के दूसरे दिन से चैत्र शुक्ल तृतीया तक मनाया जाता है. भगवान शिव यानी गण और माता पार्वती यानी गौर के लिए मनाया जाता है. गणगौर पर्व में कुंवारी कन्या जीवन में मनपसंद वर पाने की कामना के साथ पूजन करती है. वहीं, विवाहित महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए करती हैं, लेकिन बीकानेर में एक ऐसी गणगौर भी हैं जो पुत्र प्राप्ति की कामना के साथ पूजी जाती हैं.

इस गणगौर के बारे में कहा जाता है कि यह दुनिया के सबसे महंगे आभूषणों से लदी गणगौर हैं. दरअसल, चैत्र शुक्ल तृतीया और चतुर्थी को गणगौर का मेला लगता हैै, लेकिन बात करें बीकानेर की तो यहां साल में केवल दो दिनों के लिए बाहर निकलने वाली एक ऐसी गणगौर हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह दुनिया भर में सबसे ज्यादा आभूषणों से लदी और पुत्र प्राप्ति की मनोकामना पूरी करने वाली गणगौर हैं. इसके पीछे भी एक कहानी है.

पुलिस के पहरे में निकलती है सवारी : रियासत काल के समय से बीकानेर के ढड्ढा चौक में चांदमल ढड्ढा की गणगौर एक अनूठी परंपरा के निर्वहन के साथ बाहर निकलती है. माता गवरजा हीरे चांदी सोने के महंगे जवाहरात को पहनती हैं. शाही गणगौर की निकलने वाली सवारी के दौरान होने वाले सुरक्षा इंतजाम रियासत काल से राजाओं के समय से होते रहे हैं, लेकिन चांदमल ढड्ढा की गणगौर में आज भी पुलिस की कड़ी सुरक्षा-व्यवस्था देखने को मिलती है. दरअसल, चैत्र शुक्ल तृतीया और चतुर्थी के दिन बाहर रहने वाली इस गणगौर के पहने गए करोड़ों रुपये के आभूषणों की सुरक्षा भी पुलिस करती है.

पढ़ें : गणगौर की सवारी को लूटने की है यहां अनूठी परंपरा, बंदूकों के साए में निकलती है सवारी

150 साल पुरानी परंपरा और कहानी : बीकानेर के देशनाेक के सेठ साहूकार उदयमल कोई पुत्र संतान नहीं थी और उस समय उदयमल ने अपनी पत्नी के साथ पुत्र प्राप्ति की कामना को लेकर राजपरिवार की गणगौर का पूजन किया. एक साल बाद जब उदयमल की पत्नी को पुत्र प्राप्ति हुई तो उसने उसका नाम चांदमल रखा. बाद में उदयमल और उनकी पत्नी ने आम लोगों को भी गणगौर पूजा का अवसर देने के साथ ही सार्वजनिक रूप से गणगौर का पूजन शुरू करवाया. क्योंकि आम आदमी उस समय तक गणगौर पूजा अपने घर पर उस राजसी ठाठ के साथ नहीं कर सकता था. यही गणगौर पूजन तब से चांदमल के नाम से प्रसिद्ध हो गया और वह गणगौर चांदमल ढड्ढा की गणगौर कहलाई. तब से शुरू हुई 150 साल पहले की परंपरा आज भी कायम है. उस वक्त गणगौर को पहनाए गए सोने जवाहरात आज भी पहनाए जाते हैं, जो कि आज करोड़ों रुपये की हैं और इनकी सुरक्षा में ही पुलिस तैनात रहती है.

पुत्र भाइया के साथ नजर आती हैं गणगौर : पुत्र कामना की मनोकामना को पूरा करने वाली चांदमल ढ़ढ़ा की गणगौर के आगे समूह में महिलाएं नृत्य करती नजर आती हैं. माता गवरजा के साथ पुत्र रूपी भाई अभी बैठे नजर आते हैं जो देखने में किसी सेठ साहूकार जैसे नजर आते हैं. माता गणगौर को देखने के लिए आने वाले लोग भी इनके आभूषणों को देखकर दंग रह जाते हैं. नाक में नथ, हाथ में सोने के कंगन, पायल, सिर पर टीका, कानों में झूमके, नौलखा हार, हीरों से जड़ित अंगूठियां सहित कई आभूषण पहनी होती है.

वापिस जमा होते हैं गहने : हर साल 2 दिन तक गणगौर के मौके पर बाहर निकलने वाली चांदमल ढड्ढा की गणगौर का मेला ढड्ढा चौक में ही भरता है. सुरक्षा व्यवस्था को लेकर तैनात हथियारबंद जवान 24 घंटे इनकी निगरानी करते हैं और 2 दिन के मेले के बाद फिर से माता गणगौर को कड़ी सुरक्षा के बीच वापस घर में ले जाया जाता है और इनके गहनों को बैंक में लॉकर में जमा कर दिया जाता है. सूरत और देश के अन्य जगहों पर प्रवास कर रहे चांदमल ढड्ढा के वंश के लोग भी मेले के दौरान बीकानेर आते हैं.

गणगौर की हवेली : ढड्ढा परिवार के नजदीकी और हर साल गणगौर मेले को लेकर तैयारियों में जुटे यशवंत कोठारी कहते हैं कि हम गहनों की मूल्य की बात नहीं करते. यह सबका नजरिया है, लेकिन हम तो यह कहते हैं कि यह गणगौर माता की पूजा है और यह सबकी मनोकामना पूरी करने वाली हैं. वे कहते हैं कि यह गणगौर पूरे साल जहां रहती हैं वो गणगौर हवेली है, क्योंकि और कोई यहां नहीं रहता. इसलिए इसको गणगौर हवेली कहते हैं.

जोधपुर और बीकानेर रियासत से ढड्ढा परिवार तक : बताया जाता है कि यह गणगौर जोधपुर राजपरिवार के पास थी. उसे युद्ध में जीतकर लाया गया और बाद में पुत्र प्राप्ति की कामना को लेकर सेठ उदयमल ने पूजा और बाद में राजपरिवार ने यह गणगौर उन्हें दी, जिसे आज 150 सालों से ढड्ढा परिवार के पास है.

यह हमारी आस्था से जुड़ी है : ढड्ढा परिवार के वंशज, खासतौर से मेले के लिए बीकानेर आए राजेंद्र और संतोष ढड्ढा कहते हैं कि बड़ा अच्छा लगता है, जब इस गणगौर को हमारे पूर्वजों के नाम से जोड़ा जाता है. उन्होंने कहा कि यह हमारी आस्था से जुड़ी है.

बीकानेर. गणगौर पर्व होलिका दहन के दूसरे दिन से चैत्र शुक्ल तृतीया तक मनाया जाता है. भगवान शिव यानी गण और माता पार्वती यानी गौर के लिए मनाया जाता है. गणगौर पर्व में कुंवारी कन्या जीवन में मनपसंद वर पाने की कामना के साथ पूजन करती है. वहीं, विवाहित महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए करती हैं, लेकिन बीकानेर में एक ऐसी गणगौर भी हैं जो पुत्र प्राप्ति की कामना के साथ पूजी जाती हैं.

इस गणगौर के बारे में कहा जाता है कि यह दुनिया के सबसे महंगे आभूषणों से लदी गणगौर हैं. दरअसल, चैत्र शुक्ल तृतीया और चतुर्थी को गणगौर का मेला लगता हैै, लेकिन बात करें बीकानेर की तो यहां साल में केवल दो दिनों के लिए बाहर निकलने वाली एक ऐसी गणगौर हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह दुनिया भर में सबसे ज्यादा आभूषणों से लदी और पुत्र प्राप्ति की मनोकामना पूरी करने वाली गणगौर हैं. इसके पीछे भी एक कहानी है.

पुलिस के पहरे में निकलती है सवारी : रियासत काल के समय से बीकानेर के ढड्ढा चौक में चांदमल ढड्ढा की गणगौर एक अनूठी परंपरा के निर्वहन के साथ बाहर निकलती है. माता गवरजा हीरे चांदी सोने के महंगे जवाहरात को पहनती हैं. शाही गणगौर की निकलने वाली सवारी के दौरान होने वाले सुरक्षा इंतजाम रियासत काल से राजाओं के समय से होते रहे हैं, लेकिन चांदमल ढड्ढा की गणगौर में आज भी पुलिस की कड़ी सुरक्षा-व्यवस्था देखने को मिलती है. दरअसल, चैत्र शुक्ल तृतीया और चतुर्थी के दिन बाहर रहने वाली इस गणगौर के पहने गए करोड़ों रुपये के आभूषणों की सुरक्षा भी पुलिस करती है.

पढ़ें : गणगौर की सवारी को लूटने की है यहां अनूठी परंपरा, बंदूकों के साए में निकलती है सवारी

150 साल पुरानी परंपरा और कहानी : बीकानेर के देशनाेक के सेठ साहूकार उदयमल कोई पुत्र संतान नहीं थी और उस समय उदयमल ने अपनी पत्नी के साथ पुत्र प्राप्ति की कामना को लेकर राजपरिवार की गणगौर का पूजन किया. एक साल बाद जब उदयमल की पत्नी को पुत्र प्राप्ति हुई तो उसने उसका नाम चांदमल रखा. बाद में उदयमल और उनकी पत्नी ने आम लोगों को भी गणगौर पूजा का अवसर देने के साथ ही सार्वजनिक रूप से गणगौर का पूजन शुरू करवाया. क्योंकि आम आदमी उस समय तक गणगौर पूजा अपने घर पर उस राजसी ठाठ के साथ नहीं कर सकता था. यही गणगौर पूजन तब से चांदमल के नाम से प्रसिद्ध हो गया और वह गणगौर चांदमल ढड्ढा की गणगौर कहलाई. तब से शुरू हुई 150 साल पहले की परंपरा आज भी कायम है. उस वक्त गणगौर को पहनाए गए सोने जवाहरात आज भी पहनाए जाते हैं, जो कि आज करोड़ों रुपये की हैं और इनकी सुरक्षा में ही पुलिस तैनात रहती है.

पुत्र भाइया के साथ नजर आती हैं गणगौर : पुत्र कामना की मनोकामना को पूरा करने वाली चांदमल ढ़ढ़ा की गणगौर के आगे समूह में महिलाएं नृत्य करती नजर आती हैं. माता गवरजा के साथ पुत्र रूपी भाई अभी बैठे नजर आते हैं जो देखने में किसी सेठ साहूकार जैसे नजर आते हैं. माता गणगौर को देखने के लिए आने वाले लोग भी इनके आभूषणों को देखकर दंग रह जाते हैं. नाक में नथ, हाथ में सोने के कंगन, पायल, सिर पर टीका, कानों में झूमके, नौलखा हार, हीरों से जड़ित अंगूठियां सहित कई आभूषण पहनी होती है.

वापिस जमा होते हैं गहने : हर साल 2 दिन तक गणगौर के मौके पर बाहर निकलने वाली चांदमल ढड्ढा की गणगौर का मेला ढड्ढा चौक में ही भरता है. सुरक्षा व्यवस्था को लेकर तैनात हथियारबंद जवान 24 घंटे इनकी निगरानी करते हैं और 2 दिन के मेले के बाद फिर से माता गणगौर को कड़ी सुरक्षा के बीच वापस घर में ले जाया जाता है और इनके गहनों को बैंक में लॉकर में जमा कर दिया जाता है. सूरत और देश के अन्य जगहों पर प्रवास कर रहे चांदमल ढड्ढा के वंश के लोग भी मेले के दौरान बीकानेर आते हैं.

गणगौर की हवेली : ढड्ढा परिवार के नजदीकी और हर साल गणगौर मेले को लेकर तैयारियों में जुटे यशवंत कोठारी कहते हैं कि हम गहनों की मूल्य की बात नहीं करते. यह सबका नजरिया है, लेकिन हम तो यह कहते हैं कि यह गणगौर माता की पूजा है और यह सबकी मनोकामना पूरी करने वाली हैं. वे कहते हैं कि यह गणगौर पूरे साल जहां रहती हैं वो गणगौर हवेली है, क्योंकि और कोई यहां नहीं रहता. इसलिए इसको गणगौर हवेली कहते हैं.

जोधपुर और बीकानेर रियासत से ढड्ढा परिवार तक : बताया जाता है कि यह गणगौर जोधपुर राजपरिवार के पास थी. उसे युद्ध में जीतकर लाया गया और बाद में पुत्र प्राप्ति की कामना को लेकर सेठ उदयमल ने पूजा और बाद में राजपरिवार ने यह गणगौर उन्हें दी, जिसे आज 150 सालों से ढड्ढा परिवार के पास है.

यह हमारी आस्था से जुड़ी है : ढड्ढा परिवार के वंशज, खासतौर से मेले के लिए बीकानेर आए राजेंद्र और संतोष ढड्ढा कहते हैं कि बड़ा अच्छा लगता है, जब इस गणगौर को हमारे पूर्वजों के नाम से जोड़ा जाता है. उन्होंने कहा कि यह हमारी आस्था से जुड़ी है.

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