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बीकानेर सीट पर जीत की हैट्रिक लगाने के इरादे से उतरेगी भाजपा...पर इतनी आसान नहीं है राह

पश्चिमी राजस्थान के सुदूर रेगिस्तानी इलाके में अपनी खास पहचान रखने वाले बीकानेर का नाम विश्व पटल पर है. रसगुल्लों की मिठास और नमकीन का तीखापन यहां दूर दूर से लोगों को खींच लाता है. हालांकि, यहां की राजनीति में भी कुछ ऐसा ही मिठास और तीखापन है.

बीकानेर सीट पर जीत की हैट्रिक लगाने के इरादे से उतरेगी भाजपा
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Published : Mar 12, 2019, 7:51 PM IST

बीकानेर. पश्चिमी राजस्थान के सुदूर रेगिस्तानी इलाके में अपनी खास पहचान रखने वाले बीकानेर का नाम विश्व पटल पर है. रसगुल्लों की मिठास और नमकीन का तीखापन यहां दूर दूर से लोगों को खींच लाता है. हालांकि, यहां की राजनीति में भी कुछ ऐसा ही मिठास और तीखापन है.


दुनिया में कहीं भी बात मीठे की हो तो बिना बीकानेरी रसगुल्ले उसकी कल्पना करना मुश्किल है और जब बात स्वाद के जायके की हो तो बीकानेरी नमकीन बरबस ही मुंह में पानी लाने के लिए पर्याप्त है. लेकिन बात चल रही है राजनीति की. यहां भी मीठा स्वाद और नमकीन का तड़का लगता नजर आ रहा है. क्योंकि बीकानेर में कभी किसी पार्टी को चुनाव परिणामों में मीठा खाने को मिला तो कभी नमकीन का मिर्च स्वाद भी चखने को मिला. साल 2019 का चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बीच है. लेकिन, कुछ मुद्दे स्थानीय स्तर पर भी होते हैं जो चुनावों में असर डालते हैं.

बीकानेर सीट पर जीत की हैट्रिक लगाने के इरादे से उतरेगी भाजपा


हालांकि, ऐसा पहली बार देखने को लग रहा है कि इस बार के चुनाव स्थानीय मुद्दों पर नहीं बल्कि देश के मुद्दों पर होंगे. बीकानेर हमेशा से ही हर क्षेत्र में अपनी अलग पहचान रखता है. बात राजनीति की हो तब भी कुछ अंदाज ऐसा ही है. बात करें बीकानेर लोकसभा सीट के इतिहास की तो साल 1952 में हुए पहले आम चुनाव से लगातार पांच चुनाव बीकानेर के महाराजा रहे डॉ करणी सिंह ने जीते. यह बीकानेर की लोगों की राज परिवार के प्रति एक श्रद्धा का ही परिणाम था कि बिना किसी झंडे और बैनर और पार्टी के सिंबल के ही डॉक्टर कर्णी सिंह ने लगातार पांच चुनाव बतौर निर्दलीय प्रत्याशी जीते.


अंतरराष्ट्रीय स्तर के ख्याति प्राप्त निशानेबाज रहे डॉ करणी सिंह ने जब तक चुनाव लड़ा हार का मुंह नहीं देखा और लगातार पांच चुनाव जीतने के बाद खुद स्वेच्छा से ही उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया और राजनीति को विराम दे दिया. इसके बाद लगातार हुए लोकसभा के चुनावों में 5 बार कांग्रेस, चार बार बीजेपी और एक बार जनता पार्टी के साथ ही एक बार सीपीएम ने भी बीकानेर में अपना परचम लहराया है.यह बीकानेर की ख्याति का ही परिणाम था कि यहां से पूर्व लोकसभा अध्यक्ष और कद्दावर कांग्रेसी नेता रहे बलराम जाखड़ ने भी बाहर से आकर चुनाव जीता तो वहीं, सिने अभिनेता धर्मेंद्र भी बीकानेर से भाजपा के बैनर तले सांसद रह चुके हैं. बात करें इन चुनावों की तो इस बार अर्जुन मेघवाल जीत की हैट्रिक लगाने के लिए मैदान में उतरने को तैयार हैं.


ब्यूरोक्रेसी में बतौर आईएएस सीधे राजनीति की पिच पर आए अर्जुन मेघवाल ने 2009 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत कर लोकसभा में पहुंचे. पहली बार कांग्रेस की आपसी फूट का फायदा उठाकर लोकसभा में पहुंचने में सफल रहे अर्जुन मेघवाल दूसरी बार 2014 में मोदी की लहर पर सवार होकर तकरीबन 300000 से भी अधिक वोटों से जीतकर लोकसभा में पहुंचे और इसके बाद मोदी की कैबिनेट में केंद्रीय राज्य मंत्री के तौर पर शामिल हुए.
साल 2009 के मुकाबले 2014 में अर्जुन मेघवाल ने अपने वोट प्रतिशत को बढ़ाते हुए कुल मतदान का 63% वोट हासिल किया और 2009 के मुकाबले 20% ज्यादा हासिल किए. हालांकि, इसमें मोदी की लहर का होना बड़ा कारण रहा और कांग्रेस का बाहरी प्रत्याशी के रूप में श्री गंगानगर से पूर्व सांसद शंकर पन्नू को बीकानेर से अर्जुन मेघवाल के सामने उतारना सबसे बड़ा कारण रहा.


वहीं, इस बार विधानसभा चुनाव में प्रदेश में कांग्रेस के सत्ता में आने और 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर उस पर फर्क पड़ने का तो इस बार बीजेपी के खाते में बीकानेर लोकसभा क्षेत्र की 8 विधानसभा सीटों में से 4 सीटें कब्जे में हैं. तीन सीटें कांग्रेस के कब्जे में है और एक सीपीएम के कब्जे में है. 2014 में 5 सीटें बीजेपी के पास थी तो दो कांग्रेस के पास और एक निर्दलीय के पास थी.ऐसे में इस बार मुकाबला बराबरी का है जो कि 8 में से 4 सीटें भाजपा के पास हैं और चार विपक्ष के पास. साल 2009 की तो कमोबेश आंकड़ा उसी के आसपास है जहां 2009 में 4 सीटें भाजपा के पास थी तीन कांग्रेस के पास और एक सीपीएम के पास. ऐसे में साफ है कि विधानसभा चुनाव के परिणाम लोकसभा चुनाव पर कुछ खास असर डालते हैं ऐसा नहीं है.


बीकानेर लोकसभा क्षेत्र का तकरीबन 23% वोट बैंक अनुसूचित जाति के रूप में है और बीकानेर लोकसभा सुरक्षित सीट होने के चलते पिछले दो बार से लगातार अर्जुन मेघवाल का चुनाव जीतना और मोदी की कैबिनेट में शामिल होकर मंत्री बनने के बाद एक बड़े कद के नेता के रूप में उभरना कहीं न कहीं उनकी प्लस प्वाइंट कही जा सकती है.लेकिन, इस बार कद्दावर नेता देवी सिंह भाटी के साथ ही पार्टी में ही निचले तबके पर अर्जुन मेघवाल का अंदर खाने में विरोध भी देखने को मिल रहा है. हालांकि, फौरी तौर पर खुद अर्जुन मेघवाल भी कहते हैं कि वे किसी के विरोध में नहीं है और पार्टी की विचारधारा से ही काम करते हैं. लेकिन, अंदर खाने में कुछ बातें हैं जो कहीं इशारा कर रही है कि अर्जुन मेघवाल के लिए राह इतनी आसान नहीं है.


हालांकि, जितनी मुश्किलें अर्जुन मेघवाल के सामने दिखाई दे रही है कहीं ना कहीं उतनी खुद कांग्रेस भी उनके लिए राह को आसान करती हुई नजर आती है. कारण भी साफ है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान की सत्ता में आई कांग्रेस बीकानेर में कहीं न कहीं गुटबाजी की शिकार है और इसी का असर रहा कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बीकानेर में तीन सीटों पर इसी के चलते मात खानी पड़ी. दर्शन, अर्जुन मेघवाल के सामने एक सशक्त उम्मीदवार को उतारने के नाम पर कांग्रेस में एक राय बनती नजर नहीं आ रही है और यही कारण है कि गुटों में बंटी कांग्रेस कहीं ना कहीं अर्जुन मेघवाल के लिए राह को आसान कर रही है.


अब देखने वाली बात है कि कांग्रेस एक होकर किस तरह से अर्जुन मेघवाल का मुकाबला कर पाती है या फिर अपनी जीत की हैट्रिक अर्जुन मेघवाल लगा पाते हैं. बीकानेर यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष अरुण व्यास कहते हैं कि 2014 में कांग्रेस की हार का सबसे बड़ा कारण विपक्ष और कांग्रेस सरकार को घोटालों की सरकार के रूप में प्रसारित करना रहा और कहीं ना कहीं कांग्रेस का माकूल जवाब नहीं दे पाई और यही कारण रहा कि आम जनता में कहीं ना कहीं कांग्रेस के लिए नकारात्मक छवि देखने को मिली और इसी के चलते बीकानेर में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा. लेकिन, इस बार 5 सालों में मोदी सरकार के झूठ और जुमले को जनता जान चुकी है और इस बार कांग्रेस के साथ जनता आएगी.
वहीं, भाजपा के आईटी सेल के प्रदेश संयोजक अविनाश जोशी कहते हैं कि आजादी के बाद अब तक एक सशक्त और मजबूत सरकार की जरूरत के रूप में पहली बार जनता को भाजपा और नरेंद्र मोदी के रूप में एक विकल्प मिला और जनता ने उस पर विश्वास जताया. यही कारण है कि 5 सालों में देश और दुनिया में भारत का नाम ऊंचा हुआ और अब जनता एक उम्मीद के साथ नरेंद्र मोदी की तरफ देख रही है. उन्होंने कहा की इस बार भी जनता का आशीर्वाद भाजपा और नरेंद्र मोदी को मिलेगा.

बीकानेर. पश्चिमी राजस्थान के सुदूर रेगिस्तानी इलाके में अपनी खास पहचान रखने वाले बीकानेर का नाम विश्व पटल पर है. रसगुल्लों की मिठास और नमकीन का तीखापन यहां दूर दूर से लोगों को खींच लाता है. हालांकि, यहां की राजनीति में भी कुछ ऐसा ही मिठास और तीखापन है.


दुनिया में कहीं भी बात मीठे की हो तो बिना बीकानेरी रसगुल्ले उसकी कल्पना करना मुश्किल है और जब बात स्वाद के जायके की हो तो बीकानेरी नमकीन बरबस ही मुंह में पानी लाने के लिए पर्याप्त है. लेकिन बात चल रही है राजनीति की. यहां भी मीठा स्वाद और नमकीन का तड़का लगता नजर आ रहा है. क्योंकि बीकानेर में कभी किसी पार्टी को चुनाव परिणामों में मीठा खाने को मिला तो कभी नमकीन का मिर्च स्वाद भी चखने को मिला. साल 2019 का चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बीच है. लेकिन, कुछ मुद्दे स्थानीय स्तर पर भी होते हैं जो चुनावों में असर डालते हैं.

बीकानेर सीट पर जीत की हैट्रिक लगाने के इरादे से उतरेगी भाजपा


हालांकि, ऐसा पहली बार देखने को लग रहा है कि इस बार के चुनाव स्थानीय मुद्दों पर नहीं बल्कि देश के मुद्दों पर होंगे. बीकानेर हमेशा से ही हर क्षेत्र में अपनी अलग पहचान रखता है. बात राजनीति की हो तब भी कुछ अंदाज ऐसा ही है. बात करें बीकानेर लोकसभा सीट के इतिहास की तो साल 1952 में हुए पहले आम चुनाव से लगातार पांच चुनाव बीकानेर के महाराजा रहे डॉ करणी सिंह ने जीते. यह बीकानेर की लोगों की राज परिवार के प्रति एक श्रद्धा का ही परिणाम था कि बिना किसी झंडे और बैनर और पार्टी के सिंबल के ही डॉक्टर कर्णी सिंह ने लगातार पांच चुनाव बतौर निर्दलीय प्रत्याशी जीते.


अंतरराष्ट्रीय स्तर के ख्याति प्राप्त निशानेबाज रहे डॉ करणी सिंह ने जब तक चुनाव लड़ा हार का मुंह नहीं देखा और लगातार पांच चुनाव जीतने के बाद खुद स्वेच्छा से ही उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया और राजनीति को विराम दे दिया. इसके बाद लगातार हुए लोकसभा के चुनावों में 5 बार कांग्रेस, चार बार बीजेपी और एक बार जनता पार्टी के साथ ही एक बार सीपीएम ने भी बीकानेर में अपना परचम लहराया है.यह बीकानेर की ख्याति का ही परिणाम था कि यहां से पूर्व लोकसभा अध्यक्ष और कद्दावर कांग्रेसी नेता रहे बलराम जाखड़ ने भी बाहर से आकर चुनाव जीता तो वहीं, सिने अभिनेता धर्मेंद्र भी बीकानेर से भाजपा के बैनर तले सांसद रह चुके हैं. बात करें इन चुनावों की तो इस बार अर्जुन मेघवाल जीत की हैट्रिक लगाने के लिए मैदान में उतरने को तैयार हैं.


ब्यूरोक्रेसी में बतौर आईएएस सीधे राजनीति की पिच पर आए अर्जुन मेघवाल ने 2009 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत कर लोकसभा में पहुंचे. पहली बार कांग्रेस की आपसी फूट का फायदा उठाकर लोकसभा में पहुंचने में सफल रहे अर्जुन मेघवाल दूसरी बार 2014 में मोदी की लहर पर सवार होकर तकरीबन 300000 से भी अधिक वोटों से जीतकर लोकसभा में पहुंचे और इसके बाद मोदी की कैबिनेट में केंद्रीय राज्य मंत्री के तौर पर शामिल हुए.
साल 2009 के मुकाबले 2014 में अर्जुन मेघवाल ने अपने वोट प्रतिशत को बढ़ाते हुए कुल मतदान का 63% वोट हासिल किया और 2009 के मुकाबले 20% ज्यादा हासिल किए. हालांकि, इसमें मोदी की लहर का होना बड़ा कारण रहा और कांग्रेस का बाहरी प्रत्याशी के रूप में श्री गंगानगर से पूर्व सांसद शंकर पन्नू को बीकानेर से अर्जुन मेघवाल के सामने उतारना सबसे बड़ा कारण रहा.


वहीं, इस बार विधानसभा चुनाव में प्रदेश में कांग्रेस के सत्ता में आने और 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर उस पर फर्क पड़ने का तो इस बार बीजेपी के खाते में बीकानेर लोकसभा क्षेत्र की 8 विधानसभा सीटों में से 4 सीटें कब्जे में हैं. तीन सीटें कांग्रेस के कब्जे में है और एक सीपीएम के कब्जे में है. 2014 में 5 सीटें बीजेपी के पास थी तो दो कांग्रेस के पास और एक निर्दलीय के पास थी.ऐसे में इस बार मुकाबला बराबरी का है जो कि 8 में से 4 सीटें भाजपा के पास हैं और चार विपक्ष के पास. साल 2009 की तो कमोबेश आंकड़ा उसी के आसपास है जहां 2009 में 4 सीटें भाजपा के पास थी तीन कांग्रेस के पास और एक सीपीएम के पास. ऐसे में साफ है कि विधानसभा चुनाव के परिणाम लोकसभा चुनाव पर कुछ खास असर डालते हैं ऐसा नहीं है.


बीकानेर लोकसभा क्षेत्र का तकरीबन 23% वोट बैंक अनुसूचित जाति के रूप में है और बीकानेर लोकसभा सुरक्षित सीट होने के चलते पिछले दो बार से लगातार अर्जुन मेघवाल का चुनाव जीतना और मोदी की कैबिनेट में शामिल होकर मंत्री बनने के बाद एक बड़े कद के नेता के रूप में उभरना कहीं न कहीं उनकी प्लस प्वाइंट कही जा सकती है.लेकिन, इस बार कद्दावर नेता देवी सिंह भाटी के साथ ही पार्टी में ही निचले तबके पर अर्जुन मेघवाल का अंदर खाने में विरोध भी देखने को मिल रहा है. हालांकि, फौरी तौर पर खुद अर्जुन मेघवाल भी कहते हैं कि वे किसी के विरोध में नहीं है और पार्टी की विचारधारा से ही काम करते हैं. लेकिन, अंदर खाने में कुछ बातें हैं जो कहीं इशारा कर रही है कि अर्जुन मेघवाल के लिए राह इतनी आसान नहीं है.


हालांकि, जितनी मुश्किलें अर्जुन मेघवाल के सामने दिखाई दे रही है कहीं ना कहीं उतनी खुद कांग्रेस भी उनके लिए राह को आसान करती हुई नजर आती है. कारण भी साफ है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान की सत्ता में आई कांग्रेस बीकानेर में कहीं न कहीं गुटबाजी की शिकार है और इसी का असर रहा कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बीकानेर में तीन सीटों पर इसी के चलते मात खानी पड़ी. दर्शन, अर्जुन मेघवाल के सामने एक सशक्त उम्मीदवार को उतारने के नाम पर कांग्रेस में एक राय बनती नजर नहीं आ रही है और यही कारण है कि गुटों में बंटी कांग्रेस कहीं ना कहीं अर्जुन मेघवाल के लिए राह को आसान कर रही है.


अब देखने वाली बात है कि कांग्रेस एक होकर किस तरह से अर्जुन मेघवाल का मुकाबला कर पाती है या फिर अपनी जीत की हैट्रिक अर्जुन मेघवाल लगा पाते हैं. बीकानेर यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष अरुण व्यास कहते हैं कि 2014 में कांग्रेस की हार का सबसे बड़ा कारण विपक्ष और कांग्रेस सरकार को घोटालों की सरकार के रूप में प्रसारित करना रहा और कहीं ना कहीं कांग्रेस का माकूल जवाब नहीं दे पाई और यही कारण रहा कि आम जनता में कहीं ना कहीं कांग्रेस के लिए नकारात्मक छवि देखने को मिली और इसी के चलते बीकानेर में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा. लेकिन, इस बार 5 सालों में मोदी सरकार के झूठ और जुमले को जनता जान चुकी है और इस बार कांग्रेस के साथ जनता आएगी.
वहीं, भाजपा के आईटी सेल के प्रदेश संयोजक अविनाश जोशी कहते हैं कि आजादी के बाद अब तक एक सशक्त और मजबूत सरकार की जरूरत के रूप में पहली बार जनता को भाजपा और नरेंद्र मोदी के रूप में एक विकल्प मिला और जनता ने उस पर विश्वास जताया. यही कारण है कि 5 सालों में देश और दुनिया में भारत का नाम ऊंचा हुआ और अब जनता एक उम्मीद के साथ नरेंद्र मोदी की तरफ देख रही है. उन्होंने कहा की इस बार भी जनता का आशीर्वाद भाजपा और नरेंद्र मोदी को मिलेगा.

Intro:बीकानेर पश्चिमी राजस्थान के सुदूर रेगिस्तानी इलाके में अपनी खास पहचान रखने वाले बीकानेर का नाम विश्व पटल पर है रसगुल्लों की मिठास और नमकीन का तीखापन यहां दूर दूर से लोगों को खींच कर ले आता है दुनिया में कहीं भी बात मीठे की हो तो बिना बीकानेरी रसगुल्ले उसकी कल्पना करना मुश्किल है और जब बात स्वाद के जायके की हो तो बीकानेरी नमकीन बरबस ही मुंह में पानी लाने के लिए पर्याप्त है लेकिन बात चल रही है राजनीति की। यहाँ भी मीठा स्वाद और नमकीन का तड़का लगता नजर आता है। क्योंकि बीकानेर में कभी किसी पार्टी को चुनाव परिणामों में मीठा खाने को मिला तो कभी नमकीन का मिर्च स्वाद भी चखने को मिला। वर्ष 2019 का चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बीच है लेकिन कुछ मुद्दे स्थानीय स्तर पर भी होते हैं जो चुनावों में असर डालते हैं लेकिन पहली बार ऐसा देखने को लग रहा है कि इस बार के चुनाव स्थानीय मुद्दों पर नहीं बल्कि देश के मुद्दों पर होंगे। बीकानेर हमेशा से ही हर क्षेत्र में अपनी अलग पहचान रखता है बात राजनीति की हो तब भी कुछ अंदाज ऐसा ही है बात करें बीकानेर लोकसभा सीट के इतिहास की तो सन 1952 में हुए पहले आम चुनाव से लगातार पांच चुनाव बीकानेर के महाराजा रहे डॉ करणी सिंह ने जीते यह बीकानेर की लोगों की राज परिवार के प्रति एक श्रद्धा का ही परिणाम था कि बिना किसी झंडे और बैनर और पार्टी के सिंबल के ही डॉक्टर कर्णी सिंह ने लगातार पांच चुनाव बतौर निर्दलीय प्रत्याशी जीते अंतरराष्ट्रीय स्तर के ख्याति प्राप्त निशानेबाज रहे डॉ करणी सिंह ने जब तक चुनाव लड़ा हार का मुंह नहीं देखा और लगातार पांच चुनाव जीतने के बाद खुद स्वेच्छा से ही उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया और राजनीति को विराम दे दिया। इसके बाद लगातार हुए लोकसभा के चुनावों में 5 बार कांग्रेस चार बार बीजेपी और एक बार जनता पार्टी के साथ ही एक बार सीपीएम ने भी बीकानेर में अपना परचम लहराया।


Body:यह बीकानेर की ख्याति का ही परिणाम था कि यहां से पूर्व लोकसभा अध्यक्ष और कद्दावर कांग्रेसी नेता रहे बलराम जाखड़ ने भी बाहर से आकर चुनाव जीता तो वही सिने अभिनेता धर्मेंद्र भी बीकानेर से भाजपा के बैनर तले सांसद रह चुके हैं। बात करें इन चुनावों की तो इस बार अर्जुन मेघवाल जीत की हैट्रिक लगाने के लिए मैदान में उतरने को तैयार है ब्यूरोक्रेसी में बतौर आईएएस सीधे राजनीति की पिच पर आए अर्जुन मेघवाल ने 2009 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत कर लोकसभा में पहुंचे। पहली बार कांग्रेस की आपसी फूट का फायदा उठाकर लोकसभा में पहुंचने में सफल रहे अर्जुन मेघवाल दूसरी बार 2014 में मोदी की लहर पर सवार होकर तकरीबन 300000 से भी अधिक वोटों से जीतकर लोक सभा में पहुंचे और इसके बाद मोदी की कैबिनेट में केंद्रीय राज्य मंत्री के तौर पर शामिल हुए। 2009 के मुकाबले 2014 में अर्जुन मेघवाल ने अपने वोट प्रतिशत को बढ़ाते हुए कुल मतदान का 63% वोट हासिल किए और 2009 के मुकाबले 20% ज्यादा हासिल किए हालांकि इसमें मोदी की लहर का होना बड़ा कारण रहा और कांग्रेस का बाहरी प्रत्याशी के रूप में श्री गंगानगर से पूर्व सांसद शंकर पन्नू को बीकानेर से अर्जुन मेघवाल के सामने उतारना सबसे बड़ा कारण रहा। बात करें इस बार विधानसभा चुनाव में प्रदेश में कांग्रेस के सत्ता में आने और 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर उस पर फर्क पड़ने का तो इस बार बीजेपी के खाते में बीकानेर लोकसभा क्षेत्र की 8 विधानसभा सीटों में से 4 सीटें कब्जे में है वहीं तीन सीटें कांग्रेस के कब्जे में है और एक सीपीएम के कब्जे में है। 2014 में 5 सीटें बीजेपी के पास थी तो दो कांग्रेस के पास और एक निर्दलीय के पास ऐसे में इस बार मुकाबला बराबरी का है जो कि 8 में से 4 सीटें भाजपा के पास है और चार विपक्ष के पास। 2009 की तो कमोबेश आंकड़ा उसी के आसपास है जहां 2009 में 4 सीटें भाजपा के पास थी तीन कांग्रेस के पास और एक सीपीएम के पास। ऐसे में साफ है कि विधानसभा चुनाव के परिणाम लोकसभा चुनाव पर कुछ खास असर डालते हैं ऐसा नहीं है।


Conclusion:बीकानेर लोकसभा क्षेत्र का तकरीबन 23% वोट बैंक अनुसूचित जाति के रूप में है और बीकानेर लोकसभा सुरक्षित सीट होने के चलते पिछले दो बार से लगातार अर्जुन मेघवाल का चुनाव जीतना और मोदी की कैबिनेट में शामिल होकर मंत्री बनने के बाद एक बड़े कद के नेता के रूप में उभरने कहीं न कहीं उनकी प्लस प्वाइंट कही जा सकती है लेकिन इस बार कद्दावर नेता देवी सिंह भाटी के साथ ही पार्टी में ही निचले तबके पर अर्जुन मेघवाल का अंदर खाने में विरोध भी देखने को मिल रहा है हालांकि फौरी तौर पर खुद अर्जुन मेघवाल भी कहते हैं कि वे किसी के विरोध में नहीं है और पार्टी की विचारधारा से ही काम करते हैं लेकिन अंदर खाने में कुछ बातें हैं जो कहीं इशारा कर रही है अर्जुन मेघवाल के लिए राह इतनी आसान नहीं है। हालांकि जितनी मुश्किलें अर्जुन मेघवाल के सामने दिखाई दे रही है कहीं ना कहीं उतनी खुद कांग्रेस भी उनके लिए राह को आसान करती हुई नजर आती है कारण भी साफ है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान की सत्ता में आई कांग्रेस बीकानेर में कहीं न कहीं गुटबाजी की शिकार है और इसी का असर रहा कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बीकानेर में तीन सीटों पर इसी के चलते मात खानी पड़ी। दर्शन अर्जुन मेघवाल के सामने एक सशक्त उम्मीदवार को उतारने के नाम पर कांग्रेस में एक राय बनती नजर नहीं आ रही है और यही कारण है कि गुटों में बंटी कांग्रेस कहीं ना कहीं अर्जुन मेघवाल के लिए राह को आसान कर रही है अब देखने वाली बात है कि कांग्रेस एक होकर किस तरह से अर्जुन मेघवाल का मुकाबला कर पाती है या फिर अपनी जीत की हैट्रिक अर्जुन मेघवाल लगा पाते हैं। बीकानेर यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष अरुण व्यास कहते हैं कि 2014 में कांग्रेस की हार का सबसे बड़ा कारण विपक्ष कांग्रेस सरकार को घोटालों की सरकार के रूप में प्रसारित करना रहा और कहीं ना कहीं कांग्रेस का माकूल जवाब नहीं दे पाई और यही कारण रहा कि आम जनता में कहीं ना कहीं कांग्रेस के लिए नकारात्मक छवि देखने को मिली और इसी के चलते बीकानेर में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा लेकिन इस बार 5 सालों में मोदी सरकार के झूठ और जुमले को जनता जान चुकी है और इस बार कांग्रेस के साथ जनता आएगी वहीं भाजपा के आईटी सेल के प्रदेश संयोजक अविनाश जोशी कहते हैं कि आजादी के बाद अब तक एक सशक्त और मजबूत सरकार की जरूरत के रूप में पहली बार जनता को भाजपा और नरेंद्र मोदी के रूप में एक विकल्प मिला और जनता ने उस पर विश्वास जताया और यही कारण है कि 5 सालों में देश और दुनिया में भारत का नाम ऊंचा हुआ और अब जनता एक उम्मीद के साथ नरेंद्र मोदी की तरफ देख रही है और इसी बार पर 2019 में भी जनता का आशीर्वाद भाजपा और नरेंद्र मोदी को मिलेगा।
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