बीकानेर. सनातन धर्म में अधिक मास का महत्व है. यह एक संयोग है कि इस बार अधिकमास सावन महीने में है जिसके चलते इस बार सावन महीना 2 महीने का हो गया है. सावन में अधिक मास होने का यह संयोग 19 साल बाद बना है. इस दुर्लभ योग को शुभ बताया जाता है. पञ्चांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि ज्योतिष और कालगणना पद्धति के बारे में पूरा विश्व भारत का ऋणी है. काल गणना के जो सिद्धान्त वैदिक आर्यो ने स्थिर किए थे वे आज भी विज्ञानसिद्ध एवं कसौटी पर खरे है. भारतीय काल गणना पद्धत्ति से ही आधार लेकर आज विश्व के दूसरे कलैण्डर बने हैं. दैनिक साहित्य के अनुशीलन से स्पष्ट है कि चान्द्र मास तथा सौरमास संबंधी निर्णय और अधिक मास की कल्पना अति प्राचीन है.
क्या है अधिकमास : पञ्चांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि ज्योतिष सिद्धान्त अनुसार पृथ्वी पर सौर वर्ष लगभग 365 दिन एक घंटा और 4 मिनट का तथा चन्द्र वर्ष 354 दिन 8 घंटा 48 मिनट 36 सैकेंड का होता है जिससे प्रति वर्ष लगभग 11 दिनों का अन्तर आ जाता है. परस्पर इस अन्तर में सामंजस्य लाने के लिए एक चन्द्र मास जो लगभग 292 दिन का होता है. लगभग 33 चन्द्रमासों के बाद जोड़ दिया जाता है. इसी का नाम अधिकम मास है जो मलमास, पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है.
ऐसे होती गणना, शुभकार्य की मनाही : ज्योतिष गणना के अनुसार जिस वर्ष जिस मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक कोई सूर्य संक्रान्ति न आती हो उसे अधिकमास कहा जाता है. स्थूल मान से एक अधिक मास से दूसरा अधिकमास 32 महीना 16 दिन और 4 घटी के अन्तर से ही आता है. वेदों में चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक मागशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन ये बारह मास ही मुख्य माने गए है किन्तु अधिक मास के रूप में तेरह महीनों को भी स्वीकृत किया गया है. ऐतरेय ब्राह्मण में त्रयोदश मास को निंध कहा है. धार्मिक कार्यों दिवाह, मुंडन, यज्ञोपवित, गृह प्रवेश, यज्ञ- प्रतिष्ठा आदि अनेक शुभ मांगलिक कार्य वर्जित रहते है परन्तु नित्यकार्य, पितृ श्राद्ध, नामकरण, संध्या वंदना आदि कर्म कर सकते है.
कब से कब तक है अधिकमास : सूर्य पुराण के अनुसार प्रत्येक अधिकमास का अलग फल होता है. इस बार श्रावण अधिक मास होगा जो 18 जुलाई से से 16 अगस्त तक रहेगा. यह श्रावणमास 19 साल बाद आया है. सूर्य पुराण पद्म पुराण में अधिकमास अत्यधिक महत्त्व का बतलाया है इसके मास के अधिपति स्वयं भगवान विष्णु है. इस मास में धार्मिक अनुष्ठान, गंगा स्नान आदि नदियों पर स्नान का विशेष महत्व है. इस बार श्रावण अधिक मास है जिसका धर्मशास्त्रों में अत्यधिक श्रेष्ठ फल लिखा है पुराणों के अनुसार श्रावण दो होने पर समस्त कामों की समृद्धि और सुभिक्ष होता है.