भीलवाड़ा. कंप्यूटर, मोबाइल व इंटरनेट के युग में भी भीलवाड़ा के जानकीलाल भांड पौराणिक बहरूपिया कला से देश-दुनिया में लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं. जहां जानकीलाल भांड विभिन्न तरह की वेशभूषा पहनकर प्रतिदिन लोगों क मनोरंजन कर परिवार का भरण पोषण करते हैं. लगभग 50 वर्ष से जानकीलाल अपने परिवार का इस कला से भरण-पोषण कर रहे हैं और भारत ही नहीं अपितु विश्व के आधा दर्जन देशों में विभिन्न तरह की वेशभूषा पहनकर अच्छी कला का प्रदर्शन करने के कारण कई खिताब मिले हैं. जहां जानकीलाल भांड वर्तमान में नए लड़कों को भी इस कला को सिखा रहे हैं.
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वहीं पौराणिक बेहरूपिया कला अभी भी जीवित
जहां देश में हर हाथ में मोबाइल है और मनोरंजन के काफी साधन हो चुके हैं, वहीं पौराणिक बहरूपिया कला अभी भी जीवित है. जिससे विभिन्न तरह की वेशभूषा पहनकर लोगों का मनोरंजन किया जाता है. ऐसे ही भीलवाड़ा के जानकीलाल भांड विभिन्न तरह की वेशभूषा पहनकर बहरूपिया बनते हैं, जो सामाजिक एवं धार्मिक आयोजन में भाग लेकर अपना परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं. यहां तक कि जानकीलाल ने समाज के अन्य युवाओं को भी इस कला से जोड़ने के लिए प्रयास कर रहे हैं और उनको भी इस कला को सिखा रहे हैं.
बेहरूपिया कला के लिए प्रसिद्ध जानकीलाल भांड
ईटीवी भारत की टीम ने भीलवाड़ा के प्रसिद्ध बहरूपिया कलाकार के घर पहुंची तो वहां बहरूपिया कलाकार युवाओं को सिखाने के साथ ही लोगों के मनोरंजन के लिए तैयार होते दिख रहे. जहां ईटीवी भारत ने भी अपनी आंखों से जानकी लाल की गाडोलिया लोहार की वेशभूषा देखकर एकदम तो यकीनन उसे महिला ही समझ बैठा, लेकिन बात करने पर ही जानकीलाल की पहचान हुई तो ईटीवी भारत की टीम भी अचंभित रह गई. यहां तक की जानकीलाल भांड का राज्य स्तरीय पाठ्य पुस्तकों में भी नाम अंकित है. जहां बेहरूपिया कला के लिए प्रसिद्ध बताया गया.
50 वर्ष से कर रहे लोगों का मनोरंजन
देश के प्रसिद्ध बहरूपिया कलाकार जानकीलाल भांड ईटीवी ने भारत से बात करते हुए बताया कि जब वो 16 -17 साल के थे, तब से इस कला के साथ जुड़े हुए हैं. 50 वर्ष से यह में वेशभूषा पहनकर लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं. वो गाडोलिया लुहार, कालबेलिया, पठान, ईरानी, फकीर, भगवान भोलेनाथ, माता पार्वती सहित विभिन्न स्वरूप की वेशभूषा पहनकर लोगों का मनोरंजन करते हैं. उन्होंने बताया कि इसकी शुरुआत सबसे पहले 50 वर्ष पहले चित्तौड़गढ़ से की थी. जहां पहले के समय उदयपुर महाराजा के वहां महलों में इस कला का प्रदर्शन करने जाते थे, जहां राज दरबार के सामने प्रदर्शन कर मनोरंजन कर उन्हें हंसाते थे और हमारे को नजराने के रूप में कुछ आर्थिक सहयोग मिलता था.
विदेशों में मंकी मैन का मिला खिताब
उसके बाद उदयपुर लोक कला मंडल, मुंबई, जोधपुर में खिताब मिला. दिल्ली में 1 माह का प्रोग्राम हुआ, जहां राजीव गांधी भी उस प्रोग्राम में आये थे. उन्होंने बतायाकि वो सबसे पहले 1986 में लंदन और न्यूयॉर्क दो जगह गए और मुझे वहां भी अवॉर्ड मिला. 1988 में जर्मन, रोम, बर्मिंघम और फिर लंदन गए थे. वहां उन्हें लोग मंकी मैन के नाम से जानने लगे. विदेश उन्होंने फकीर व बंदर का रोल अदा किया था. जहां लोगों को खूब हंसाने का काम किया.
वर्तमान कंप्यूटर, मोबाइल के युग में बहरूपिया कला लोग पसंद करते हैं. इस पर जानकी लाल ने कहा कि लोग बहुत पसंद करते हैं. हमारा उद्देश्य लोगों का मनोरंजन करना, आदमी को हंसाना हर तरह की लैंग्वेज व परिभाषा बोलना काम है और इस युग में भी लोग बेहरूपिया कला को जरूर देखते हैं. वहीं सरकार से सहायता के सवाल पर जानकीलाल ने कहा कि अभी तक कोई भी सहायता नहीं मिली, उन्होंने प्रशासनिक अधिकारी व राजनेताओं से भी मुलाकात की लेकिन इस कला को जीवित रखने के लिए कुछ भी नहीं किया गया.