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मुगल बादशाह शाहजहां भी थे ऐतिहासिक नाहर नृत्य के मुरीद, आज भी राम और राजा के सामने नृत्य पेश करने की है परंपरा

भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्बे में रंग तेरस का त्योहार दीपावली से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है. यहां शाम को नाहर नृत्य का आयोजन किया जाता है. इस नृत्य को मुगल बादशाह शाहजहां के मनोरंजन के लिए पेश किया गया था.

Bhilwara nahar dance
ऐतिहासिक नाहर नृत्य
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Published : Mar 19, 2023, 10:51 AM IST

ऐतिहासिक नाहर नृत्य

भीलवाड़ा. जिले के मांडल कस्बे में रंग तेरस का त्योहार का दीपावली से भी अधिक महत्व रखता है. पूरे देश भर में सिर्फ यहीं पर शाम को नाहर नृत्य का आयोजन होता है. यह एक ऐसा नृत्य है जो मुगल बादशाह शाहजहां के मनोरंजन के लिए 410 साल पहले शुरू किया गया था. वह परंपरा आज भी अनवरत जारी है. इस नृत्य की विशेषता है कि यह साल में केवल एक बार इसे राम और राजा के सामने प्रस्तुत किया जाता है.

राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्बे में मुग़ल बादशाह शाहजहां के मनोरंजन के लिए किया गया नाहर (शेर) नृत्य प्रतिवर्ष होली के बाद रंग तेरस के दिन अर्थात तेरहवें दिन की शाम को होने वाला नाहर नृत्य अब मांडल कस्बे का प्रमुख त्योहार बन गया है. केवल राम और राजा के सम्मुख ही पेश किया जानेवाला नाहर नृत्य देश में अपनी तरह का अनूठा नृत्य है. पारम्परिक वाद्य यत्रो के धुनों के बीच पुरूष अपने शरीर पर रुई लपेट कर शेर का स्वांग रच नृत्य करते हैं.

नाहर नृत्य करते कलाकार
नाहर नृत्य करते कलाकार

पढ़ें करौली में राज्य स्तरीय लक्खी मेला आज से शुरू, कैलादेवी के दर्शन को उमड़ रही श्रद्धालुओं की भीड़

चार सौ नौ साल पहले वर्ष 1614 मे भीलवाड़ा जिले के मांडल गांव में मेवाड़ महाराणा अमर सिंह से संधि करने व उदयपुर जाते समय मुग़ल बादशाह शाहजहा ने मांडल में रुके थे. उस समय उनके मनोरंजन के लिए शुरू किये गए नृत्य की विरासत को आज भी लोग संभाले हुए है. यह नृत्य वर्ष में एक बार वह भी केवल राम और राजा के सम्मुख ही प्रस्तुत किया जाता है.

राजस्थान लोक कला केंद्र मांडल के अध्यक्ष रमेश बूलिया कहते हैं की यह नाहर नृत्य समारोह नरसिंह अवतार का रूप है. 1614 ईस्वी में मुगल बादशाह शाहजहां के समय से चला आ रहा है. शाहजहां जब मेवाड़ छोड़कर वापस दिल्ली जा रहे थे उस समय मांडल गांव वालों ने अपने नरसिंह अवतार का प्रदर्शन कर शाहजहां को मंत्रमुग्ध कर दिया था. इस बार हम 410वां नाहर नृत्य करने जा रहे हैं. आज के दिन को लोग त्योहार के रूप में मनाएंगे. यह त्योहार मांडल कस्बे के लिए दीपावली से भी बड़ा त्योहार है.

नाहर नृत्य का आनंद लेते दर्शक
नाहर नृत्य का आनंद लेते दर्शक

आज के दिन हमारी बहन, बेटियां व दामाद सभी गांव आते हैं. यह त्योहार आपसी भाईचारे की एक बहुत बड़ी मिसाल है. आज सुबह से ही लोग रंग खेलते हैं जहा दिन मे बेगम और बादशाह की सवारी निकली जाती है यह नृत्य केवल राम और राजा के सामने ही होता है. नाहर बनाने के लिए कलाकारों पर रुई का चोला पहनाकर शेर के जैसे कानों पर दो सिंग लगाए जाते हैं. हर बार चार कलाकार नाहर बनते हैं.

नाहर नृत्य करने वाले कलाकार जितेन्द्र कुमार मांटोलिया कहते हैं मैं बरसों से शरीर पर रुई लपेटकर शेर का स्वांग वाला नाहर नृत्य करता आ रहा हूं. हम बरसों पुरानी परंपरा को निभा रहे हैं. हमारे शरीर पर 4 किलो रुई लपेटी जाती है सिंग लगा कर पूरा नरसिंह का अवतार बनाया जाता है. पहले हमारे दादाजी फिर पिताजी अब वर्तमान में मैं भी इस परंपरा को निभा रहा हूं. मांडल ही नहीं राजस्थान में भीलवाड़ा जिले के हर व्यक्ति को इस त्योहार बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है. वर्तमान मे भी बिना किसी सरकारी सहायता के 400 साल से भी पुराने मांडल के नाहर नृत्य की इस अनूठी परंपरा को अब भी सहेजने की जरूरत है.

ऐतिहासिक नाहर नृत्य

भीलवाड़ा. जिले के मांडल कस्बे में रंग तेरस का त्योहार का दीपावली से भी अधिक महत्व रखता है. पूरे देश भर में सिर्फ यहीं पर शाम को नाहर नृत्य का आयोजन होता है. यह एक ऐसा नृत्य है जो मुगल बादशाह शाहजहां के मनोरंजन के लिए 410 साल पहले शुरू किया गया था. वह परंपरा आज भी अनवरत जारी है. इस नृत्य की विशेषता है कि यह साल में केवल एक बार इसे राम और राजा के सामने प्रस्तुत किया जाता है.

राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के मांडल कस्बे में मुग़ल बादशाह शाहजहां के मनोरंजन के लिए किया गया नाहर (शेर) नृत्य प्रतिवर्ष होली के बाद रंग तेरस के दिन अर्थात तेरहवें दिन की शाम को होने वाला नाहर नृत्य अब मांडल कस्बे का प्रमुख त्योहार बन गया है. केवल राम और राजा के सम्मुख ही पेश किया जानेवाला नाहर नृत्य देश में अपनी तरह का अनूठा नृत्य है. पारम्परिक वाद्य यत्रो के धुनों के बीच पुरूष अपने शरीर पर रुई लपेट कर शेर का स्वांग रच नृत्य करते हैं.

नाहर नृत्य करते कलाकार
नाहर नृत्य करते कलाकार

पढ़ें करौली में राज्य स्तरीय लक्खी मेला आज से शुरू, कैलादेवी के दर्शन को उमड़ रही श्रद्धालुओं की भीड़

चार सौ नौ साल पहले वर्ष 1614 मे भीलवाड़ा जिले के मांडल गांव में मेवाड़ महाराणा अमर सिंह से संधि करने व उदयपुर जाते समय मुग़ल बादशाह शाहजहा ने मांडल में रुके थे. उस समय उनके मनोरंजन के लिए शुरू किये गए नृत्य की विरासत को आज भी लोग संभाले हुए है. यह नृत्य वर्ष में एक बार वह भी केवल राम और राजा के सम्मुख ही प्रस्तुत किया जाता है.

राजस्थान लोक कला केंद्र मांडल के अध्यक्ष रमेश बूलिया कहते हैं की यह नाहर नृत्य समारोह नरसिंह अवतार का रूप है. 1614 ईस्वी में मुगल बादशाह शाहजहां के समय से चला आ रहा है. शाहजहां जब मेवाड़ छोड़कर वापस दिल्ली जा रहे थे उस समय मांडल गांव वालों ने अपने नरसिंह अवतार का प्रदर्शन कर शाहजहां को मंत्रमुग्ध कर दिया था. इस बार हम 410वां नाहर नृत्य करने जा रहे हैं. आज के दिन को लोग त्योहार के रूप में मनाएंगे. यह त्योहार मांडल कस्बे के लिए दीपावली से भी बड़ा त्योहार है.

नाहर नृत्य का आनंद लेते दर्शक
नाहर नृत्य का आनंद लेते दर्शक

आज के दिन हमारी बहन, बेटियां व दामाद सभी गांव आते हैं. यह त्योहार आपसी भाईचारे की एक बहुत बड़ी मिसाल है. आज सुबह से ही लोग रंग खेलते हैं जहा दिन मे बेगम और बादशाह की सवारी निकली जाती है यह नृत्य केवल राम और राजा के सामने ही होता है. नाहर बनाने के लिए कलाकारों पर रुई का चोला पहनाकर शेर के जैसे कानों पर दो सिंग लगाए जाते हैं. हर बार चार कलाकार नाहर बनते हैं.

नाहर नृत्य करने वाले कलाकार जितेन्द्र कुमार मांटोलिया कहते हैं मैं बरसों से शरीर पर रुई लपेटकर शेर का स्वांग वाला नाहर नृत्य करता आ रहा हूं. हम बरसों पुरानी परंपरा को निभा रहे हैं. हमारे शरीर पर 4 किलो रुई लपेटी जाती है सिंग लगा कर पूरा नरसिंह का अवतार बनाया जाता है. पहले हमारे दादाजी फिर पिताजी अब वर्तमान में मैं भी इस परंपरा को निभा रहा हूं. मांडल ही नहीं राजस्थान में भीलवाड़ा जिले के हर व्यक्ति को इस त्योहार बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है. वर्तमान मे भी बिना किसी सरकारी सहायता के 400 साल से भी पुराने मांडल के नाहर नृत्य की इस अनूठी परंपरा को अब भी सहेजने की जरूरत है.

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