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दो बूंद स्वर्ण प्राशन बदल रही बच्चों की जिंदगी, इस नक्षत्र में दवाई पिलाने से दिखता है कई गुना ज्यादा प्रभाव

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Published : Nov 26, 2022, 7:42 PM IST

किसी बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास सामान्य रूप से (Swarn Prashan proving to be boon for Children) नहीं हुआ, तो किसी की नेत्र ज्योति कमजोर थी. वहीं, किसी बच्चे को तमाम बीमारियों ने घेर रखा था. लेकिन स्वर्ण प्राशन की दो-दो बूंद की खुराक ने कुछ ही माह में ऐसे सैकड़ों बच्चों का जीवन बदल दिया. आइए जानते हैं इस खास दवा और इसके सेवन की खास विधि के बारे में...

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Swarn Prashan proving to be boon for Children

भरतपुर. किसी भी बिमारी से जूझ रहे बच्चों के लिए डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय जोधपुर की ओर से निर्मित स्वर्ण प्राशन दवा रामबाण साबित हो रही है. विश्वविद्यालय अब तक हजारों बच्चों को स्वर्ण प्राशन की दवा पिला चुका है. भरतपुर में आयोजित आरोग्य मेले (Arogya Mela in Bharatpur) में भी तीन दिन में 800 से अधिक बच्चों को स्वर्ण प्राशन दवा पिलाई जा चुकी है, जिसके दो बूंद से कई जिंदगियां बदल चुकी हैं.

क्या है स्वर्ण प्राशन ? : आयुर्वेद विश्वविद्यालय के बाल रोग विभाग के सहायक प्रो. डॉ दिनेश कुमार राय ने बताया कि भारतीय संस्कृति में कई प्रकार के संस्कार होते हैं. इनमें से सुवर्णप्राशन (स्वर्ण प्राशन) भी एक संस्कार है. प्रोफेसर रमेश कुमार ने बताया कि आयुर्वेद विश्वविद्यालय के बाल रोग विभाग ने स्वर्ण, घी, शहद और अन्य औषधियों से एक स्वर्ण प्राशन दवा तैयार की है. यह दवा बच्चों की मेधा शक्ति, पाचन शक्ति और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली दवा है.

दो बूंद स्वर्ण प्राशन बदल रही बच्चों की जिंदगी

पुष्य नक्षत्र में सेवन कराने का महत्व : प्रोफेसर दिनेश कुमार राय ने बताया कि (Swarn Prashan by Sarvepalli Radhakrishnan Hospital) इस दवा का सेवन जन्म से 16 वर्ष तक के बच्चों के लिए कराया जा सकता है. यदि इस दवा का सेवन प्रतिमाह पुष्य नक्षत्र में कराया जाए, तो इसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है. पुष्य नक्षत्र को स्वस्थ का नक्षत्र माना जाता है. इसका काश्यप संहिता में भी वर्णन किया गया है. प्रोफेसर दिनेश कुमार राय ने बताया कि ऐसे कई बच्चों को इस दवा से लाभ मिला है, जो कई बीमारियों से ग्रसित थे या फिर जिनका मानसिक और शारीरिक विकास सही नहीं हुआ था.

पढ़ें. जोधपुर में स्वर्ण प्राशन के तहत बच्चों को पिलाई गई दवाइयां

जोधपुर एम्स में ओपीडी : प्रोफेसर दिनेश कुमार राय ने बताया कि आयुर्वेद विश्वविद्यालय (Swarn Prashan proving to be boon for Children) की ओर से बीते वर्षों में हजारों बच्चों को स्वर्ण प्राशन का सेवन कराया जा चुका है. राजस्थान में लगने वाले आरोग्य मेले में भी सैकड़ों बच्चों को यह दवा पिलाई जाती है. भरतपुर के आरोग्य मेले में तीन दिन में करीब 800 से अधिक बच्चों को स्वर्ण प्राशन पिला चुके हैं. इतना ही नहीं जोधपुर एम्स के आउटडोर में भी बच्चों को यह दवा उपलब्ध कराई जाती है.

ऐसे चमत्कारिक परिणाम : (Swarn Prashan For various Disease)

केस : 1
रुद्रांश नाम के बच्चे को जन्म के समय मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी की वजह से शारीरिक और बौद्धिक मन्दता उत्पन्न हो गई. जानकारी मिलने पर बच्चे को राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय जोधपुर में स्वर्ण प्राशन दवा का सेवन कराया गया. दवा के नियमित रूप से सेवन कराया गया और 3 माह के अंदर ही बच्चे के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में चमत्कारिक बदलाव देखे गए. अब बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ और चंचल है. बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास भी सामन्य व सहज रूप से हो रहा है.

केस : 2
शिक्षक आलोक परिहार के 10 वर्षीय बच्चे अक्षय की आंखों की रोशनी कमजोर थी. उसको चश्मा लगवाना पड़ा. लेकिन अक्षक को स्वर्ण प्राशन की पहली खुराक के बाद ही अच्छे परिणाम नजर आए. एक माह बाद जब दूसरी खुराक पिलवाने गए तो उसकी नेत्र दृष्टि सामान्य हो गई और चश्मा हट गया. अब वो बिना चश्मे के सामान्य जीवन जी रहा है.

भरतपुर. किसी भी बिमारी से जूझ रहे बच्चों के लिए डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय जोधपुर की ओर से निर्मित स्वर्ण प्राशन दवा रामबाण साबित हो रही है. विश्वविद्यालय अब तक हजारों बच्चों को स्वर्ण प्राशन की दवा पिला चुका है. भरतपुर में आयोजित आरोग्य मेले (Arogya Mela in Bharatpur) में भी तीन दिन में 800 से अधिक बच्चों को स्वर्ण प्राशन दवा पिलाई जा चुकी है, जिसके दो बूंद से कई जिंदगियां बदल चुकी हैं.

क्या है स्वर्ण प्राशन ? : आयुर्वेद विश्वविद्यालय के बाल रोग विभाग के सहायक प्रो. डॉ दिनेश कुमार राय ने बताया कि भारतीय संस्कृति में कई प्रकार के संस्कार होते हैं. इनमें से सुवर्णप्राशन (स्वर्ण प्राशन) भी एक संस्कार है. प्रोफेसर रमेश कुमार ने बताया कि आयुर्वेद विश्वविद्यालय के बाल रोग विभाग ने स्वर्ण, घी, शहद और अन्य औषधियों से एक स्वर्ण प्राशन दवा तैयार की है. यह दवा बच्चों की मेधा शक्ति, पाचन शक्ति और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली दवा है.

दो बूंद स्वर्ण प्राशन बदल रही बच्चों की जिंदगी

पुष्य नक्षत्र में सेवन कराने का महत्व : प्रोफेसर दिनेश कुमार राय ने बताया कि (Swarn Prashan by Sarvepalli Radhakrishnan Hospital) इस दवा का सेवन जन्म से 16 वर्ष तक के बच्चों के लिए कराया जा सकता है. यदि इस दवा का सेवन प्रतिमाह पुष्य नक्षत्र में कराया जाए, तो इसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है. पुष्य नक्षत्र को स्वस्थ का नक्षत्र माना जाता है. इसका काश्यप संहिता में भी वर्णन किया गया है. प्रोफेसर दिनेश कुमार राय ने बताया कि ऐसे कई बच्चों को इस दवा से लाभ मिला है, जो कई बीमारियों से ग्रसित थे या फिर जिनका मानसिक और शारीरिक विकास सही नहीं हुआ था.

पढ़ें. जोधपुर में स्वर्ण प्राशन के तहत बच्चों को पिलाई गई दवाइयां

जोधपुर एम्स में ओपीडी : प्रोफेसर दिनेश कुमार राय ने बताया कि आयुर्वेद विश्वविद्यालय (Swarn Prashan proving to be boon for Children) की ओर से बीते वर्षों में हजारों बच्चों को स्वर्ण प्राशन का सेवन कराया जा चुका है. राजस्थान में लगने वाले आरोग्य मेले में भी सैकड़ों बच्चों को यह दवा पिलाई जाती है. भरतपुर के आरोग्य मेले में तीन दिन में करीब 800 से अधिक बच्चों को स्वर्ण प्राशन पिला चुके हैं. इतना ही नहीं जोधपुर एम्स के आउटडोर में भी बच्चों को यह दवा उपलब्ध कराई जाती है.

ऐसे चमत्कारिक परिणाम : (Swarn Prashan For various Disease)

केस : 1
रुद्रांश नाम के बच्चे को जन्म के समय मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी की वजह से शारीरिक और बौद्धिक मन्दता उत्पन्न हो गई. जानकारी मिलने पर बच्चे को राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय जोधपुर में स्वर्ण प्राशन दवा का सेवन कराया गया. दवा के नियमित रूप से सेवन कराया गया और 3 माह के अंदर ही बच्चे के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में चमत्कारिक बदलाव देखे गए. अब बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ और चंचल है. बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास भी सामन्य व सहज रूप से हो रहा है.

केस : 2
शिक्षक आलोक परिहार के 10 वर्षीय बच्चे अक्षय की आंखों की रोशनी कमजोर थी. उसको चश्मा लगवाना पड़ा. लेकिन अक्षक को स्वर्ण प्राशन की पहली खुराक के बाद ही अच्छे परिणाम नजर आए. एक माह बाद जब दूसरी खुराक पिलवाने गए तो उसकी नेत्र दृष्टि सामान्य हो गई और चश्मा हट गया. अब वो बिना चश्मे के सामान्य जीवन जी रहा है.

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