भरतपुर. आज हम आपको एक ऐसी कहानी दिखाने जा रहे हैं जिसको जानने सुनने और देखने के बाद आपका हकीकत से सामना होगा. अगर हम इसे कहानी नहीं हकीकत कहे तो बेहतर होगा. ये कहानी गीता की है. शादी के बाद पूरा परिवार खुश था. पति के साथ गीता अपनी जिंदगी जी रही थी लेकिन नियति को शायद ये मंजूर नहीं था. पति की मौत हो गई. पूरा परिवार मानों बिखर गया. जिंदगी आगे कैसे चलेगी कुछ सहारा नहीं था.
गीता के सामने सवाल था कि आखिर अब वो अपने तीन बच्चों को कैसे पाले. कैसे शिक्षा दे, कैसे खाने का इंतजाम करे और कैसे उनकी जिंदगी संवारे. एक 14 साल की बेटी दूसरा 12 साल का बेटा और सबसे छोटा 8 साल का विक्रम इन तीनों बच्चों के सहारा अब सिर्फ मां गीता है.
कभी कभी नियति का चक्र ऐसा घूमता है कि इंसान का जीवन संघर्ष और परेशानियों (Life struggles and troubles) से घिर जाता है. चार साल पहले नियति ने पति तो छीन लिया लेकिन गीता ने ठाना की वो अपने बच्चों के लिए लड़ेगी. लेकिन सवाल था कि आखिर करे तो क्या करे. गीता के दिमाग में आया क्यूं ना गोल-गप्पे का ठेला लगाना शुरू किया जाए.
फिर क्या था एक ठेला लिया गया और गीता ने शुरू कर दिया लोगों को गोल-गप्पे खिलाना. हालात बेहतर होने लगे थे. लेकिन जिंदगी में एक और सदमा लेकर कोरोना वायरस आ गया. लॉकडाउन लगा और गोल-गप्पे की दुकान बंद हो गई.
गीता झाड़ू-पोंछा करके कर रही गुजारा-
जो सेविंग्स थी वो भी खत्म होने लगी. फिर हालात पहले ही जैसे होने लगे लेकिन फिर भी गीता ने हार नहीं मानी. काम मिलना मुश्किल था लोग अपने घर फिर काम कराने के लिए नहीं बुला रहे थे. मुश्किल से कुछ घरों में गीता ने झाड़ू पोंछा करने का काम शुरू किया.
इसके साथ ही सब्जी भी गली गली बेचने लगी. वक्त कठिन था पहले घर घर जाकर झाडू पोंछा करना और फिर सब्जी बेचने के बाद गीता थक जाती लेकिन हार नहीं मानती. हालांकि इस दौरान नाबालिक बेटा भी कुछ मदद करता है लेकिन वो काफी नहीं होता.
हैरान करने वाली बात ये है कि लॉकडाउन के दौरान सरकारें भी मदद का दावा करती रही लेकिन गीता को ऐसी कोई भी मदद नहीं मिली जिससे वो अपने बच्चों के खातिर दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर सके.
फंदे से झूलती मिली भाई की लाश-
गीता कहती हैं इस दौरान मेरे भाई ने मदद की. कभी कभार वो आता उससे जो हो सकता था वो मदद करता था लेकिन भगवान ने उसे भी हमसे छीन लिया. एक दिन हमें जानकारी मिली की भाई की फंदे से झुलती हुई लाश मिली है. गीता को लगता है कि उनके भाई ने खुदकुशी नहीं बल्की किसी ने हत्या की है और फिर फंदे से लटका दिया.
फिलहाल, जैसे तैसे जिंदगी चल रही है लेकिन गीता को अपने बच्चों के लिए चिंता है. बड़ी बेटी 14 साल की हो चुकी है और 8वीं कक्षा में पढ़ती है. छोटा बेटा 12 साल का बेटा है और तीसरा बेटा 8 साल का है.
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गीता कहती है कि उन्हें किसी तरह की कोई सरकारी मदद नहीं मिली है. अगर कुछ मदद मिलती है तो बच्चों के लिए अच्छा होगा. स्थानीय प्रशासन को हालांकि अभी तक कोई फिक्र नहीं है. शायद यही वजह है कि इस परिवार तक कोई मदद नहीं पहुंची है.