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Bharatpur Foundation day: मुगलों से लूटे खजाने से किया था अजेय लोहागढ़ का निर्माण, महाराजा सूरजमल ने ऐसे खोजा था दबा हुआ खजाना

1743 ई. में महाराजा सूरजमल ने लोहागढ़ दुर्ग की नींव रखी थी. इस दुर्ग के निर्माण के लिए राजा चूरामन ने जो खजाना मुगलों से लूटा था, उसका इस्तेमाल किया गया.

Lohagarh Fort story: Know how and when this historic Bharatpur fort was built
मुगलों से लूटे खजाने से किया था अजेय लोहागढ़ का निर्माण, महाराजा सूरजमल ने ऐसे खोजा था दबा हुआ खजाना
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Published : Feb 17, 2023, 11:41 PM IST

Updated : Feb 18, 2023, 9:49 PM IST

मुगलों से लूटे खजाने से किया था अजेय लोहागढ़ का निर्माण

भरतपुर. महाराजा सूरजमल ने 1733 ई. में भरतपुर गढ़ी पर आक्रमण कर राजा खेमकरण से जीत लिया था. 1743 ई. में लोहागढ़ दुर्ग की नींव रखी गई. लोहागढ़ के निर्माण से पूर्व महाराजा सूरजमल के पास इतना धन नहीं था कि वो लोहागढ़ जैसे मजबूत और अजेय दुर्ग का निर्माण कर सकें. महाराजा सूरजमल और उनके पिता महाराजा बदन सिंह ने लोहागढ़ दुर्ग के निर्माण के लिए एक ऐसे खजाने को खोज निकाला, जिसे राजा चूरामन ने मुगलों से लूटा था. इसी खजाने से 8 साल में अजेय लोहागढ़ दुर्ग का निर्माण हो सका था.

किले के निर्माण के लिए नहीं था धन: इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने बताया कि 1733 में राजकुमार सूरजमल ने राजा खेमकरण से भरतपुर गढ़ी को जीत लिया. उस स्थान को पूरी तरह से समतल मैदान बना दिया. राजकुमार सूरजमल और महाराजा बदन सिंह एक ऐसे सुरक्षित किले के निर्माण की योजना बना रहे थे, जो पूरी तरह से मुगलों और अन्य आक्रमणकारियों से सुरक्षित हो. इसके लिए उन्हें भरतपुर गढ़ी वाला स्थान पूरी तरह उपयुक्त लगा. सबसे बड़ा संकट ये था कि भरतपुर गढ़ी तो जीत ली थी, लेकिन राजकुमार सूरजमल और उनके पिता महाराजा बदन सिंह के पास इतना धन नहीं था जिससे किले का निर्माण किया जा सके.

पढ़ें: लोहागढ़ खुद सुनाएगा अपने स्वर्णिम इतिहास की कहानी, जानिए कैसे...

खजाने का सबूत: इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने बताया कि महाराजा बदन सिंह के चाचा चूरामन उस समय मुगलों के काफिले और खजाने को लूटा करते थे. लूटे हुए धन को वो अलग-अलग जगह पर जमीन के नीचे दबा देते और वहां पर खजाने की रखवाली के लिए एक समाज के गांव बसा देते. उन्हें बीजक (एक प्रकार का राजसी पत्र) भी प्रदान किए जाते थे, जो कि खजाने का सबूत होता था.

पढ़ें: महाराजा सूरजमल के सामने मुगलों और अंग्रेजों ने भी टेके थे घुटने, भरतपुर के लोहागढ़ पर कब्जा करना दुश्मनों के लिए रह गया ख्वाब

चूरामन का जीता विश्वास: महाराजा बदन सिंह ने चूरामन के जीवन के अंतिम समय में उनका विश्वास जीत लिया था. चूरामन ने मरने से पहले महाराजा बदन सिंह को अपने गढ़े हुए खजाने की जानकारी दी थी. उसके बाद राजकुमार सूरजमल ने उन गांवों को तलाश कर खजाने की रखवाली कर रहे लोगों को मनाया और दबे हुए खजाने को हासिल कर 1743 ई. में बसंत पंचमी के दिन लोहागढ़ की नींव रखी..

एक नजर में लोहागढ़:

  1. 8 साल में हुआ किले का निर्माण
  2. हर दिन 13 हजार श्रमिक करते थे निर्माण
  3. निर्माण सामग्री लाने के लिए 1500 गाड़ियां, 1000 ऊंट गाड़ियां, 500 घोड़ा गाड़ी और 500 खच्चर हर दिन लगे रहते थे
  4. किले के चारों तरफ 200 फीट चौड़ी व 30 फीट गहरी है सुजान गंगा नहर
  5. 100 फीट ऊंची हैं किले की दीवार
  6. किले में चारों तरफ सुरक्षा के लिहाज से तैयार किए गए 10 दरवाजे, किले में प्रवेश के लिए सिर्फ 2 दरवाजे
  7. सुजान गंगा नहर में हर वक्त रहता था पानी, जिससे दुश्मन की सेना नहीं कर पाती थी आसानी से हमला
  8. दुश्मन के हमले के समय मोती झील और कौंधनी बांध से छोड़ दिया जाता था पानी.

मुगलों से लूटे खजाने से किया था अजेय लोहागढ़ का निर्माण

भरतपुर. महाराजा सूरजमल ने 1733 ई. में भरतपुर गढ़ी पर आक्रमण कर राजा खेमकरण से जीत लिया था. 1743 ई. में लोहागढ़ दुर्ग की नींव रखी गई. लोहागढ़ के निर्माण से पूर्व महाराजा सूरजमल के पास इतना धन नहीं था कि वो लोहागढ़ जैसे मजबूत और अजेय दुर्ग का निर्माण कर सकें. महाराजा सूरजमल और उनके पिता महाराजा बदन सिंह ने लोहागढ़ दुर्ग के निर्माण के लिए एक ऐसे खजाने को खोज निकाला, जिसे राजा चूरामन ने मुगलों से लूटा था. इसी खजाने से 8 साल में अजेय लोहागढ़ दुर्ग का निर्माण हो सका था.

किले के निर्माण के लिए नहीं था धन: इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने बताया कि 1733 में राजकुमार सूरजमल ने राजा खेमकरण से भरतपुर गढ़ी को जीत लिया. उस स्थान को पूरी तरह से समतल मैदान बना दिया. राजकुमार सूरजमल और महाराजा बदन सिंह एक ऐसे सुरक्षित किले के निर्माण की योजना बना रहे थे, जो पूरी तरह से मुगलों और अन्य आक्रमणकारियों से सुरक्षित हो. इसके लिए उन्हें भरतपुर गढ़ी वाला स्थान पूरी तरह उपयुक्त लगा. सबसे बड़ा संकट ये था कि भरतपुर गढ़ी तो जीत ली थी, लेकिन राजकुमार सूरजमल और उनके पिता महाराजा बदन सिंह के पास इतना धन नहीं था जिससे किले का निर्माण किया जा सके.

पढ़ें: लोहागढ़ खुद सुनाएगा अपने स्वर्णिम इतिहास की कहानी, जानिए कैसे...

खजाने का सबूत: इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने बताया कि महाराजा बदन सिंह के चाचा चूरामन उस समय मुगलों के काफिले और खजाने को लूटा करते थे. लूटे हुए धन को वो अलग-अलग जगह पर जमीन के नीचे दबा देते और वहां पर खजाने की रखवाली के लिए एक समाज के गांव बसा देते. उन्हें बीजक (एक प्रकार का राजसी पत्र) भी प्रदान किए जाते थे, जो कि खजाने का सबूत होता था.

पढ़ें: महाराजा सूरजमल के सामने मुगलों और अंग्रेजों ने भी टेके थे घुटने, भरतपुर के लोहागढ़ पर कब्जा करना दुश्मनों के लिए रह गया ख्वाब

चूरामन का जीता विश्वास: महाराजा बदन सिंह ने चूरामन के जीवन के अंतिम समय में उनका विश्वास जीत लिया था. चूरामन ने मरने से पहले महाराजा बदन सिंह को अपने गढ़े हुए खजाने की जानकारी दी थी. उसके बाद राजकुमार सूरजमल ने उन गांवों को तलाश कर खजाने की रखवाली कर रहे लोगों को मनाया और दबे हुए खजाने को हासिल कर 1743 ई. में बसंत पंचमी के दिन लोहागढ़ की नींव रखी..

एक नजर में लोहागढ़:

  1. 8 साल में हुआ किले का निर्माण
  2. हर दिन 13 हजार श्रमिक करते थे निर्माण
  3. निर्माण सामग्री लाने के लिए 1500 गाड़ियां, 1000 ऊंट गाड़ियां, 500 घोड़ा गाड़ी और 500 खच्चर हर दिन लगे रहते थे
  4. किले के चारों तरफ 200 फीट चौड़ी व 30 फीट गहरी है सुजान गंगा नहर
  5. 100 फीट ऊंची हैं किले की दीवार
  6. किले में चारों तरफ सुरक्षा के लिहाज से तैयार किए गए 10 दरवाजे, किले में प्रवेश के लिए सिर्फ 2 दरवाजे
  7. सुजान गंगा नहर में हर वक्त रहता था पानी, जिससे दुश्मन की सेना नहीं कर पाती थी आसानी से हमला
  8. दुश्मन के हमले के समय मोती झील और कौंधनी बांध से छोड़ दिया जाता था पानी.
Last Updated : Feb 18, 2023, 9:49 PM IST
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