भरतपुर. कहते हैं राजनीति में सब कुछ संभव है. आजादी के बाद से ही भरतपुर की राजनीति में दबदबा रखने वाले पूर्व राजपरिवार का भी एक दौर ऐसा आया, जब एक के बाद एक तीन राजाओं को एक सामान्य से परिवार के नेता से शिकस्त खानी पड़ी. बड़ी बात तो यह है कि इस सामान्य परिवार के नेता को महाराजा बृजेंद्र सिंह ने ही समर्थन कर चुनाव जितवाया था. फिर एक वक्त ऐसा आया कि महाराज बृजेंद्र सिंह को इसी नेता से हारना पड़ा. आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले बाबू राजबहादुर कई बार सांसद रहे और केंद्र में मंत्री भी रहे.
पहले चुनाव में करना पड़ा था हार का सामना : वरिष्ठ पत्रकार राकेश वशिष्ठ ने बताया कि बाबू राजबहादुर एक बहुत ही सामान्य परिवार से थे. आजादी की लड़ाई के दौरान वो जेल भी गए थे. बाबू राजबहादुर की राजनीतिक शुरुआत साल 1952 में हुई. पहले चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.
इसे भी पढ़ें - Rajasthan assembly Election 2023 : कांग्रेस की 2018 अगेन थ्योरी! 76 उम्मीदवारों में से 65 चेहरे रिपीट, इनमें मंत्री और विधायक भी शामिल
1957 में जीते लोकसभा चुनाव : साल 1957 में कांग्रेस की तरफ से राजबहादुर फिर से लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरे. मुकाबला भरतपुर के पूर्व राजपरिवार के गिर्राज शरण सिंह से था, जिन्हें राजा बच्चू सिंह के रूप में पहचाना जाता था. उन दिनों राजा बच्चू सिंह की लोकप्रियता चरम पर थी. ऐसे में बाबू राजबहादुर ने जैसे तैसे महाराजा बृजेंद्र सिंह को अपने समर्थन के लिए तैयार कर लिया. इस चुनाव में महाराज बृजेंद्र सिंह ने अपने सगे छोटे भाई राजा बच्चू सिंह के खिलाफ चुनाव मैदान में बाबू राजबहादुर का समर्थन किया. मुकाबला कांटे का हुआ और बाबू राजबहादुर 2886 मतों से जीत गए.
1962 में 11,891 मतों से जीते चुनाव : साल 1962 के लोकसभा सभा चुनाव में फिर से बाबू राजबहादुर कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे और इस बार मुकाबला पूर्व राजपरिवार के ही सदस्य राजा मानसिंह से था. इस चुनाव में भी बाबू राजबहादुर को 11,891 मतों से जीत मिली और राजपरिवार के एक और सदस्य का हार का मुंह देखना पड़ा.
इसे भी पढ़ें - Rajasthan assembly Election 2023 : इस विधानसभा सीट पर आधी आबादी तय करती है हार-जीत, यह है कारण
महाराज बृजेंद्र सिंह से हारे चुनाव : इसके बाद 1967 का लोकसभा चुनाव बहुत ही महत्वपूर्ण रहा, क्योंकि इस चुनाव में खुद पूर्व राजपरिवार के सदस्य महाराज बृजेंद्र सिंह, बाबू राजबहादुर के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरे थे. यह चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि महाराज बृजेंद्र सिंह ने ही 1957 के चुनाव में बाबू राजबहादुर का समर्थन किया था और अब वो खुद उनके खिलाफ मैदान में उतरे थे. चुनाव काफी रोचक रहा. मुकाबले में महाराज बृजेंद्र सिंह ने बाबू राजबहादुर को 95 हजार वोटों से हरा दिया.
वहीं, 1971 के लोकसभा चुनाव में फिर से बाबू राजबहादुर और महाराज बृजेंद्र सिंह आमने-सामने थे. इस बार के चुनाव में बाबू राजबहादुर को एक बार फिर से सफलता मिली और पूर्व राजपरिवार के सदस्य महाराज बृजेंद्र सिंह को 67 हजार मतों से उन्होंने चुनाव हरा दिया. एक सामान्य से परिवार के नेता बाबू राजबहादुर को करीब 20 साल के राजनीतिक करियर में राजपरिवार के दो सदस्यों से जहां हार का सामना करना पड़ा तो वहीं पूर्व राजपरिवार के तीन अलग-अलग सदस्यों को उन्होंने पराजित भी किया गया था.