भरतपुर. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को पक्षियों का स्वर्ग कहा जाता. यहां की आबोहवा, यहां मिलने वाले भोजन आदि की वजह से हर वर्ष सर्दियों में सकड़ों प्रजातियों के पक्षी कई अलग-अलग देशों से यहां पहुंचते हैं. ऐसी ही एक छोटी व प्यारी चिड़िया है, जिसे रूबी थ्रोट के नाम से जाना जाता है. करीब 14 सेंटीमीटर की ये चिड़िया घना तक पहुंचने के लिए 10 हजार किलोमीटर का सफर तय करती है. आइए जानते हैं इस खास चिड़िया के बारे में
ये है रूबी थ्रोट - रूबी थ्रोट मूलतः साइबेरिया में पाए जाने वाला पक्षी है. इसका आकार मुश्किल से 14 से 16 सेंटीमीटर का होता है. नर रूबी थ्रोट के गले पर लाल रंग के निशान की वजह से ही इसे रूबी थ्रोट नाम से जाना जाता है. इसकी आंख के पास नीला धब्बा, शरीर भूरा. जबकि मादा रूबी थ्रोट भूरे रंग की होती है और इसकी आंख के ऊपर सफेद रंग का धब्बा होता है. मादा रूबी थ्रोट नर की तुलना में कम सुंदर होती है और इसकी साइज 14 से 16 सेंटीमीटर तक होती है.
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घना पहुंचती हैं केवल दो-तीन रूबी थ्रोट - घना के रेंजर जतन सिंह ने बताया कि रूबी थ्रोट रेयर पक्षियों में से एक है. ये सर्दियों के मौसम में घना में देखने को मिलती है. लेकिन यहां मुश्किल से दो से तीन ही पहुंचती है. ये पक्षी साइबेरिया से करीब 10 हजार किलोमीटर का सफर तय कर के भरतपुर पहुंचती है. वहीं, भारत के हिमालयी क्षेत्रों में ये अच्छी संख्या में देखे जाते हैं.
इसलिए आते हैं घना - रेंजर जतन सिंह ने बताया कि सामान्य तौर पर इस पक्षी की आहार नमी वाले क्षेत्रों में पाने जाने वाले कीड़े, मकोड़े होते हैं. घना वेटलैंड है और यहां पर इस पक्षी को भरपूर भोजन मिलता है. ये झाड़ियों में छुपकर रहने वाले पक्षी हैं. आम तौर पर जब ये पक्षी बोलते हैं तो इनकी सुरीली आवाज से इसकी मौजूदगी के बारे में पता चलता है.
गौरतलब है कि केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी अभ्यारण्य में सर्दियों के मौसम में सैकड़ों प्रजातियों के हजारों पक्षी प्रवास करते हैं. इन्हें देखने के लिए लाखों की संख्या में पर्यटक यहां आते हैं. हालांकि, आज से करीब 20 वर्ष पूर्व तक यहां साइबेरियन सारस भी आते थे, जिनकी वजह से घना को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली.