बाड़मेर. पश्चिमी राजस्थान में हजारों वर्षों से माटी के कान्हा के निर्माण और फिर गाजे बाजे के साथ उसके विसर्जन की परंपरा रही है. अब भी यह परंपरा उसी तरह निभाई जा रही है. जिले की शहरी और ग्रामीण इलाकों में कृष्ण जन्माष्टमी को देर रात 12 बजे तालाब की माटी से कान्हा की मूर्ति का निर्माण शुरू किया. जिसकी दूसरे दिन यानी रविवार को पूजन के बाद उसका विसर्जन किया गया. महिलाएं गाजे-बाजे के साथ जसदेर धाम पहुंची. यहां महिलाओं ने विभिन्न भजनों की प्रस्तुति आदि भजनों के बाद कान्हा की मूर्ति का विसर्जन किया गया.
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कृष्ण जन्माष्टमी के बाद महिलाओं ने मिट्टी से बनाए कृष्ण का विधि विधान से पूजन कर प्रसाद चढ़ाया. दूसरे दिन रविवार को महिलाएं गीत गाती हुई मूर्तियों को सर पर रखे जसदेव धाम पहुंची. महिलाओं ने मूर्तियों का यहां फिर से पूजन कर कृष्ण के जयकारे लगाए और उसके बाद तालाब में मूर्तियों का विसर्जन किया.