सिवाना(बाड़मेर). इतिहास के पन्नों में झांक कर देखे तो मारवाड़ के अरावली पर्वतीय श्रृंखला में सिवाना दुर्ग अपने आप में विशेष महत्व रखता है. सिवाना दुर्ग को बने हुए 1000 वर्ष पूरे हो गए. जिसके चलते हर साल की तरह इस साल सिवाना उत्सव धूमधाम से मनाया गया. जिसमें सिवाना दुर्ग पर ध्वजा फहरा कर इसके शौर्य को याद किया गया.
1000 वर्ष पूराना इतिहास
अरावली पर्वतमाला के पहाड़ों पर स्थित प्राचीन दुर्ग का निर्माण राजा भोज के पुत्र वीर नारायण परमार ने दसवीं शताब्दी ई. में करवाया था. वहीं कालांतर में यह किला जालौर के सोनगरा चौहान और अलाउद्दीन खिलजी के अधिकार में रहा. वहीं सन् 1538 ई. में राव मालदेव ने इस दुर्ग पर अपना अधिकार कर इसकी सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ और विकसित किया. दुर्ग के चारों ओर भव्य परकोटे का निर्माण करवाया.
राव मालदेव से लेकर उनके पुत्र रायमल को दिया किला
मुगल आधिपत्य में आने के बाद अकबर ने इस किले को राव मालदेव से लेकर उनके पुत्र रायमल को दे दिया था. रायमल के पुत्र कल्याणदास कल्ला की वीरता और पराक्रम से सिवाना को गौरव और प्रसिद्धि मिली. अकबर के कल्ला राठौड़ से नाराज होने पर उसने जोधपुर के राजा उदय सिंह को सिवाना पर अधिकार करने के लिए भेज दिया. युद्ध में कल्ला राठौड़ वीरगति को प्राप्त हो गए और उनकी पत्नी हाड़ी रानी ने दुर्ग में ललनाओं के साथ जौहर कर लिया था.
मजबूत सुदृढ़ किला"गढ़ सिवाना"
पौष शुक्ल पक्ष की अष्टमी पर सिवाना दुर्ग स्थापना दिवस मनाया जाता है. रेगिस्तान के इलाकों में जोधपुर दुर्ग के बाद एक सक्षम और मजबूत सुदृढ़ किला "गढ़ सिवाना" ही माना जाता है.
इतिहास से जुड़े मुख्य बिंदु
- वीर नारायण परमार सिवाना दुर्ग के प्रथम शासक थे.
- तेरहवीं शताब्दी में चौहान शासकों ने आक्रमण कर अधिकार जमाया था.
- अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया राजा शीतल देव के भाई सोम व सातल वीरगति को प्राप्त हुए.
- संवत 1401 से 1595 राठौड़ काल दौरान राव मल्लिनाथ व जैतमाल का अधिकार रहा.
- संवत 1594 में जोधपुर नरेश राव मालदेव ने अपना अधिकार जमाया और राव रायमल को दुर्ग प्राप्त हुआ, लेकिन विवादों के चलते इस पर राव चंद्रसेन ने अधिकार किया.
- रावकल्ला दुर्ग के शासक बने. रावकल्ला राठौड़ ने बादशाह अकबर की फौज के साथ बड़ी वीरता से लड़ाई लड़ी. इतिहास की किताबों के अनुसार राव कला राठौड़ ने बादशाह की फौज को गाजर-मूली की तरह काट डाला. वहीं लड़ते-लड़ते वीर गति को प्राप्त हुए.
- संवत 1743 के बाद महाराजा अजीत सिंह ने पुन: राज्य प्राप्ति से लेकर आजादी प्राप्त होने तक सिवाना दुर्ग जोधपुर के शासकों के अधीन रहा.
सिवाना उत्सव
बताया जाता है कि सिवाना के संस्थापक वीर नारायण परमार व शिवनारायण परमार थे, जो दोनों सगे भाई और राजा भोज के पुत्र थे. इन्होंने 1077 में सिवाना की स्थापना की थी और वीर नारायण परमार के प्रथम शासक बने थे. इसलिए सिवाना क्षेत्र के ग्रामीण पौष शुक्ल पक्ष की अष्टमी सिवाना उत्सव के रूप में मनाते हैं. इसे लेकर आज बुधवार को सिवाना दुर्ग पर ध्वजा फहरा कर इसके शौर्य को याद किया गया. वहीं उत्सव को लेकर विभिन्न प्रकार की खेलकूद प्रतियोगिताओं का आयोजन भी हुआ.