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सिवाना में हुआ होलिका दहन, धार्मिक अनुष्ठान का भी आयोजन

बाड़मेर के सिवाना में होलिका दहन किया गया, जिसमें समस्त गांववासी शामिल हुए. होलिका दहन को लेकर ग्रामीणों में भारी उत्साह देखने को मिला. वहीं ग्रामीणों में होलिका दहन के बाद धार्मिक अनुष्ठान करने की परंपरा है.

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Published : Mar 9, 2020, 11:30 PM IST

बाड़मेर न्यूज, barmer news
गांवों में परंपरागत होलिका दहन

सिवाना (बाड़मेर). सिवाना क्षेत्र में आज रंगों का त्योहार होली बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है. वहीं गांवो में परंपरागत और धार्मिक संस्कारों के साथ आज होलिका दहन किया गया, होलिका दहन को लेकर बड़ी संख्या में ग्रामीण होली का स्थल पर ढोल-नगाड़ों के साथ फागुन के गीत गाते पहुंचे.

गांवों में परंपरागत होलिका दहन

होलिका दहन के इस अवसर पर गीत गाती घूमर लेती महिलाएं, मस्ती भरे फागुन के गीत गाती एक-दूसरे को फागुन की बधाई देती नजर आयी, वहीं होलिका दहन को लेकर ग्रामीणों में भारी उत्साह देखने को मिला.

ग्रामीण क्षेत्र में होली से जुड़ी पौराणिक परंपरा

ग्रामीण क्षेत्रों में होलिका दहन के दौरान आज भी एक अनूठी परंपरा है, जिसे धार्मिक अनुष्ठान भी कहा जाता है. दहन के दौरान होलिका इस धार्मिक अनुष्ठान को संपन्न करके आने वाले समय के सगुण लिये जाते हैं.

माना जाता है कि प्राचीन समय से ही इस प्रकार के धार्मिक और परंपरागत तरीके से समय की स्थिति को जानने के लिये किया जाता था. यह एक अनोखा पौराणिक तरीका है. इस परंपरा के अनुसार होलिका दहन के दौरान होलिका स्थल पर गांव् के पुरोहित (ब्राह्मण) द्वारा मंत्र उच्चारण और धार्मिक संस्कारों और विधि विधान के द्वारा कलश में सात अनाज को डाल करके उस घड़े को होलिका दहन स्थल पर गड्ढा खोदकर को स्थापित किया जाता है.

पढ़ें- Holi की खरीददारी पर Corona का असर, धीमी गति से हो रही पिचकारियों की बिक्री

इस उपरांत होलिका दहन पर अंगारे और अग्नि की तपती गर्मी से उस घड़े में रखा अनाज पक जाता है फिर दूसरे दिन उस कलश को बाहर निकालकर गांव की आम सभा में उस कलश को खोला जाता है और अनाज पके हुए दानों के अनुसार यह अनुमान लगाया जाता है कि आने वाला समय कैसा रहेगा सुकाल होगा अकाल इस स्थिति को जानने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है जो अपने आप में एक अनोखी परंपरा है.

सिवाना (बाड़मेर). सिवाना क्षेत्र में आज रंगों का त्योहार होली बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है. वहीं गांवो में परंपरागत और धार्मिक संस्कारों के साथ आज होलिका दहन किया गया, होलिका दहन को लेकर बड़ी संख्या में ग्रामीण होली का स्थल पर ढोल-नगाड़ों के साथ फागुन के गीत गाते पहुंचे.

गांवों में परंपरागत होलिका दहन

होलिका दहन के इस अवसर पर गीत गाती घूमर लेती महिलाएं, मस्ती भरे फागुन के गीत गाती एक-दूसरे को फागुन की बधाई देती नजर आयी, वहीं होलिका दहन को लेकर ग्रामीणों में भारी उत्साह देखने को मिला.

ग्रामीण क्षेत्र में होली से जुड़ी पौराणिक परंपरा

ग्रामीण क्षेत्रों में होलिका दहन के दौरान आज भी एक अनूठी परंपरा है, जिसे धार्मिक अनुष्ठान भी कहा जाता है. दहन के दौरान होलिका इस धार्मिक अनुष्ठान को संपन्न करके आने वाले समय के सगुण लिये जाते हैं.

माना जाता है कि प्राचीन समय से ही इस प्रकार के धार्मिक और परंपरागत तरीके से समय की स्थिति को जानने के लिये किया जाता था. यह एक अनोखा पौराणिक तरीका है. इस परंपरा के अनुसार होलिका दहन के दौरान होलिका स्थल पर गांव् के पुरोहित (ब्राह्मण) द्वारा मंत्र उच्चारण और धार्मिक संस्कारों और विधि विधान के द्वारा कलश में सात अनाज को डाल करके उस घड़े को होलिका दहन स्थल पर गड्ढा खोदकर को स्थापित किया जाता है.

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इस उपरांत होलिका दहन पर अंगारे और अग्नि की तपती गर्मी से उस घड़े में रखा अनाज पक जाता है फिर दूसरे दिन उस कलश को बाहर निकालकर गांव की आम सभा में उस कलश को खोला जाता है और अनाज पके हुए दानों के अनुसार यह अनुमान लगाया जाता है कि आने वाला समय कैसा रहेगा सुकाल होगा अकाल इस स्थिति को जानने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है जो अपने आप में एक अनोखी परंपरा है.

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