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...जब वसुंधरा और जसवंत हो गए थे आमने-सामने

देश के वरिष्ठ भाजपा नेताओं में शुमार जसवंत सिंह जसोल का रविवार को 82 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है. कद्दावर नेता जसवंत सिंह की कई यादें हैं, जो देश और प्रदेश की राजनीति में हमेशा जहन में ताजा रहेगी. जानिए जसवंत सिंह के आखिरी चुनाव की पूरी कहानी जब बीजेपी में वसुंधरा और जसवंत आमने-सामने हो गए थे.

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जसवंत सिंह जसोल के आखिरी चुनाव की पूरी कहानी
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Published : Sep 27, 2020, 7:15 PM IST

बाड़मेर. देश के वरिष्ठ भाजपा नेताओं में शुमार वाजपेयी सरकार में वित्त, रक्षा और विदेश मंत्री जैसे महत्वपूर्ण विभागों को संभालने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह का रविवार को 82 वर्ष की उम्र में निधन हो गयाय कद्दावर नेता जसवंत सिंह की कई यादें हैं, जो देश और प्रदेश की राजनीति में हमेशा जहन में ताजा रहेगी. राजस्थान की सियासत में जसवंत सिंह को लेकर कई ऐसी घटनाएं हुईं, जिनकी स्मृतियां ही अब शेष हैं.

जसवंत सिंह जसोल के आखिरी चुनाव की पूरी कहानी

सेना में मेजर पद से इस्तीफा देकर राजनीति के मैदान में आए जसवंत सिंह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के करीबी मित्र थे और राजनीति में उन्हें अटल जी के 'हनुमान' के नाम से भी जाना जाता था. जसवंत सिंह राजनीतिक करियर में शीर्ष पर भी रहे और अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेताओं के साथ उनकी मित्रता भी जग जाहिर थी. लेकिन अपने राजनीतिक करियर में कई उतार-चढ़ाव के दौर से भी उन्हें गुजरना पड़ा और विवादों से भी उनका चोली दामन का साथ रहा.

वसुंधरा-जसवंत आमने सामने

पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने आखिरी चुनाव लड़ने की इच्छा 2014 में बीजेपी पार्टी आलाकमान के सामने रखी. इस दौरान उन्होंने बताया था कि वह अपना आखिरी चुनाव अपने घर यानी बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा क्षेत्र से लड़ना चाहते हैं. इस बात को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने आलाकमान के सामने आपत्ति दर्ज करवाई और इसी बात को लेकर बीजेपी और जसवंत सिंह आमने-सामने हो गए थे.

पढ़ें- पूर्व रक्षा मंत्री जसवंत सिंह का निधन, राष्ट्रपति व पीएम मोदी ने जताया शोक

जसवंत सिंह जसोल लगातार बीजेपी में लोकसभा और राज्यसभा से कई बार सांसद चुने गए थे और आखिरी बार 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें पश्चिम बंगाल के दार्जीलिंग सीट से चुनाव लड़ाया. यहां से वे भारी मतों से अपना चुनाव जीते थे. इसके बाद 2014 में जब जसवंत सिंह ने पार्टी आलाकमान से यह बात कही कि वह आखरी चुनाव अपने घर से लड़ना चाहते हैं तो विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गई.

वसुंधरा राजे की दो टूक

इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने पार्टी आलाकमान के सामने दो टूक शब्दों में कह दिया था कि अगर जसवंत सिंह राजस्थान के बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ते हैं तो वह पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा भी दे सकती हैं. इसके बाद उसी समय लोकसभा चुनाव में वसुंधरा राजे ने राजस्थान के कद्दावर जाट नेता कर्नल सोनाराम चौधरी को कांग्रेस छोड़कर बीजेपी की सदस्यता दिलाई. इसके बाद सोनाराम चौधरी ने बीजेपी के टिकट पर बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और उसी के बाद जसवंत सिंह ने निश्चय कर लिया था कि वह भी चुनाव लड़ेंगे.

जसवंत समर्थकों ने बनाई थी स्वाभिमान सेना

इसके बाद जसवंत सिंह ने घोषणा की कि वे चुनाव निर्दलीय लड़ेंगे औप उसके बाद बाड़मेर-जैसलमेर जसवंत समर्थकों ने स्वाभिमान सेना बनाई और निर्दलीय ताल ठोक दी. इसके बाद बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट पर जसवंत सिंह और बीजेपी प्रत्याशी कर्नल सोनाराम चौधरी के बीच मुकाबला था. कांग्रेस इस चुनाव में तीसरे नंबर पर चली गई थी.

पढ़ें- स्मृति शेष : 2001 में सर्वश्रेष्ठ सांसद चुने गए जसवंत सिंह ने दिया था यादगार भाषण

बता दें, उस समय मोदी लहर चल रही थी, लेकिन इसके बावजूद भी जसवंत सिंह ने इसी लोकसभा सीट से 4 लाख से ज्यादा मत हासिल किए थे और 85 हजार वोटों से हार गए थे. इसके बाद जसवंत सिंह जसोल कभी वापस बाड़मेर नहीं लौटे.

बाड़मेर. देश के वरिष्ठ भाजपा नेताओं में शुमार वाजपेयी सरकार में वित्त, रक्षा और विदेश मंत्री जैसे महत्वपूर्ण विभागों को संभालने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह का रविवार को 82 वर्ष की उम्र में निधन हो गयाय कद्दावर नेता जसवंत सिंह की कई यादें हैं, जो देश और प्रदेश की राजनीति में हमेशा जहन में ताजा रहेगी. राजस्थान की सियासत में जसवंत सिंह को लेकर कई ऐसी घटनाएं हुईं, जिनकी स्मृतियां ही अब शेष हैं.

जसवंत सिंह जसोल के आखिरी चुनाव की पूरी कहानी

सेना में मेजर पद से इस्तीफा देकर राजनीति के मैदान में आए जसवंत सिंह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के करीबी मित्र थे और राजनीति में उन्हें अटल जी के 'हनुमान' के नाम से भी जाना जाता था. जसवंत सिंह राजनीतिक करियर में शीर्ष पर भी रहे और अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेताओं के साथ उनकी मित्रता भी जग जाहिर थी. लेकिन अपने राजनीतिक करियर में कई उतार-चढ़ाव के दौर से भी उन्हें गुजरना पड़ा और विवादों से भी उनका चोली दामन का साथ रहा.

वसुंधरा-जसवंत आमने सामने

पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने आखिरी चुनाव लड़ने की इच्छा 2014 में बीजेपी पार्टी आलाकमान के सामने रखी. इस दौरान उन्होंने बताया था कि वह अपना आखिरी चुनाव अपने घर यानी बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा क्षेत्र से लड़ना चाहते हैं. इस बात को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने आलाकमान के सामने आपत्ति दर्ज करवाई और इसी बात को लेकर बीजेपी और जसवंत सिंह आमने-सामने हो गए थे.

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जसवंत सिंह जसोल लगातार बीजेपी में लोकसभा और राज्यसभा से कई बार सांसद चुने गए थे और आखिरी बार 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें पश्चिम बंगाल के दार्जीलिंग सीट से चुनाव लड़ाया. यहां से वे भारी मतों से अपना चुनाव जीते थे. इसके बाद 2014 में जब जसवंत सिंह ने पार्टी आलाकमान से यह बात कही कि वह आखरी चुनाव अपने घर से लड़ना चाहते हैं तो विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गई.

वसुंधरा राजे की दो टूक

इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने पार्टी आलाकमान के सामने दो टूक शब्दों में कह दिया था कि अगर जसवंत सिंह राजस्थान के बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ते हैं तो वह पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा भी दे सकती हैं. इसके बाद उसी समय लोकसभा चुनाव में वसुंधरा राजे ने राजस्थान के कद्दावर जाट नेता कर्नल सोनाराम चौधरी को कांग्रेस छोड़कर बीजेपी की सदस्यता दिलाई. इसके बाद सोनाराम चौधरी ने बीजेपी के टिकट पर बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और उसी के बाद जसवंत सिंह ने निश्चय कर लिया था कि वह भी चुनाव लड़ेंगे.

जसवंत समर्थकों ने बनाई थी स्वाभिमान सेना

इसके बाद जसवंत सिंह ने घोषणा की कि वे चुनाव निर्दलीय लड़ेंगे औप उसके बाद बाड़मेर-जैसलमेर जसवंत समर्थकों ने स्वाभिमान सेना बनाई और निर्दलीय ताल ठोक दी. इसके बाद बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट पर जसवंत सिंह और बीजेपी प्रत्याशी कर्नल सोनाराम चौधरी के बीच मुकाबला था. कांग्रेस इस चुनाव में तीसरे नंबर पर चली गई थी.

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बता दें, उस समय मोदी लहर चल रही थी, लेकिन इसके बावजूद भी जसवंत सिंह ने इसी लोकसभा सीट से 4 लाख से ज्यादा मत हासिल किए थे और 85 हजार वोटों से हार गए थे. इसके बाद जसवंत सिंह जसोल कभी वापस बाड़मेर नहीं लौटे.

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