बालोतरा (बाड़मेर). गणेश चतुर्थी को लेकर उपखण्ड क्षेत्र में तैयारियां जोरों पर चल रही है. घरों पर विघ्न विनाशक को विराजमान करने के लिए लोग उत्साहित हैं. गणेश पंडाल सजाने, शोभायात्रा का आयोजन करने की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा चुका है. बाजार भगवान गणेश की मूर्तियों से सजा हुआ है. इस बार भक्तों के विशेष अनुरोध पर ईको फ्रेंडली मूर्तियां तैयार की गई हैं.
बता दें कि मूर्ति कलाकारों की ओर से गणेश के विभिन्न रूपों को बनाया गया है. जिसमें बाल गणेश से लेकर शिव रूप शामिल हैं. धीरे-धीरे ग्राहक भी मूर्तियों की खरीदारी के लिए बाजारों का रुख कर रहे हैं. बाजारों में बिकने के लिए तैयार गणपति विभिन्न रूपों में हैं. भगवान गणेश कि शंख, डमरू, मोर के सिंहासन के साथ-साथ आधे शिव के रूप में बनी गणपति की मूर्तियां लोगों को लुभा रही हैं. ये मूर्तियां आधे फुट से पांच फीट तक के साइज में उपलब्ध हैं.
मूर्तिकार बताते हैं कि बड़ी मूर्तियों को रंगने में तीन से चार दिन का समय भी लग जाता है. पूरी तरह तैयार होने के बाद एक प्रतिमा की कीमत आकर के अनुसार 100 रुपये से 20 हजार रुपये तक होता है. वहीं बड़ी मूर्तियों की तुलना में छोटी मूर्तियों की अधिक बिक्री होती है. पिछले दो-तीन वर्षो से पर्यावरण और जल संरक्षण के प्रति लोगों की जागरुकता बढ़ी है. जिससे पीओपी की प्रतिमाओं के बजाए मिट्टी सहित प्राकृतिक वस्तुओं से बनी प्रतिमाएं लोग अधिक पसंद कर रहे हैं.
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भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुआ था. इस वजह से हर वर्ष गणेश चतुर्थी इस तिथि को ही मनाई जाती है. गणेश चतुर्थी को लेकर जैसलमेर में तैयार गजानन की प्रतिमाओं से बाजार सज गए हैं. देश भर में धूमधाम से मनाए जाने वाले गणेश महोत्सव की तैयारियां शुरू हो गई हैं. बाजारों में विभिन्न रंगों से रंगी हुई गणेश प्रतिमाएं नजर आने लगी हैं.
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इस बार तिरंगे और आर्मी ड्रेस के रंग में रंगी गणेश प्रतिमाएं भी देखने को मिलीं. मूर्ति कारीगर ने बताया कि इस बार लोगों को आर्मी ड्रेस के रंग की मूर्तियां खूब पसंद आ रही हैं, लोग खरीद भी रहे हैं. 50 रुपये से लेकर 9 हजार रुपये की कीमत तक की मूर्तियां उपलब्ध हैं. वहीं कारीगरों का ये भी कहना है कि इस बार बारिश लगातार होने से कम लोग ही मूर्ति खरीद रहे हैं। ऐसे में मूर्तियों के बाजार में भी मंदी छाई हुई है. जहां पहले 10 मूर्तियां बिठाई जाती थी, वहां अबकी बार दो मूर्तियां ही बिठाई जा रही है. ऐसे में मूर्तियों के खरीददार कम आ रहे हैं.