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बारांः घुटनों तक डूबा देश का 'भविष्य'...कहीं फिसल ना जाए

बारां में बारिश अच्छी हुई और होनी भी चाहिए. लेकिन प्रशासन का शिथिल रवैया स्कूल जाते हुए बच्चों के लिए खतरा बनता जा रहा है. बारिश के बाद दरिया बने इस रास्ते से गुजरकर हर रोज मासूम स्कूल पहुंच रहे है.

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Published : Sep 20, 2019, 3:49 PM IST

Updated : Sep 20, 2019, 4:43 PM IST

झारखंड (बारां). बरसाती मौसम में नाले, नदियां उफान पर आना आम बात है. हर बार ऐसा होता भी है, जब भी बारिश अच्छी होती है. लेकिन देश का 'भविष्य', जब इसी बहते पानी के बीच से गुजरता है तो उसके फिसल जाने का डर भी वाजिब है. यह 'भविष्य' कोई और नहीं देश के वो बच्चे है जो सुबह-सुबह कंधों पर बस्ता टांग निकल जाते है, स्कूल की ओर.

घुटनों तक डूबा देश का 'भविष्य'

जी हां, बारां जिले के अटरू उपखंड मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर झारखंड गांव का नजारा कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है. जहां हर रोज स्कूल जाने के लिए बच्चों को अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ रही है. गांव में बरसात हुई, करीब हर दफा होती है. लेकिन नया यहीं रहता है कि सभी को लगता है कि इस बार कोई रास्ता जरूर निकलेगा. खैर, रास्ता वो ही रहता है बहते पानी वाला.

बच्चों के परिजन यह तो जानते है कि बच्चों को स्कूल भेजना जरूरी है. लेकिन अब उन्होंने यह भी जान लिया है कि बच्चों की सलामती के लिए उनके साथ स्कूल जाना भी उतना ही जरूरी है. परिजन हर रोज कमर तक बहते पानी के रास्ते को पार कर बच्चों को स्कूल छोड़ आते है. लेकिन उम्मीद देखिएं हर बार प्रशासन से लगी रहती है कि वह इस बार जरूर कुछ करेगा. हां, प्रशासन करता भी है, केवल मूकदर्शक बनने का काम.

पढ़ें: बसपा विधायकों को कोई पद दिया तो, यह साबित हो जाएगा कि कुछ ले-देकर शामिल किया : कटारिया

ग्रामीणों का कहना है कि बारिश के दिनों में एक ओर बालूखाल और दूसरी ओर भूपसी नदी से गांव घिर जाता है. रेवेन्यू विलेज न होने के कारण इस गांव को प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से भी नहीं जोड़ा गया. ऐसें में लोग नदी को पार करके ही आते जाते है. ग्राम पंचायत से लेकर मुख्यमंत्री तक सड़क बनाने की मांग कर चुकें है लेकिन इस गांव की कोई सुध नहीं ली गई है.

जिस देश में नेताओं के स्टेच्यू बनने के लिए करोड़ों के बजट पास होते है, और बनते भी है. वहां बच्चों के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था देना सरकार के लिए कोई बड़ी बात नहीं. क्या करें ! हमें तो अतीत पर ही ध्यान देना ज्यादा अच्छा लगता हैं. बाकी 'भविष्य' तो आप भविष्य पर ही छोड़ दीजिए.

झारखंड (बारां). बरसाती मौसम में नाले, नदियां उफान पर आना आम बात है. हर बार ऐसा होता भी है, जब भी बारिश अच्छी होती है. लेकिन देश का 'भविष्य', जब इसी बहते पानी के बीच से गुजरता है तो उसके फिसल जाने का डर भी वाजिब है. यह 'भविष्य' कोई और नहीं देश के वो बच्चे है जो सुबह-सुबह कंधों पर बस्ता टांग निकल जाते है, स्कूल की ओर.

घुटनों तक डूबा देश का 'भविष्य'

जी हां, बारां जिले के अटरू उपखंड मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर झारखंड गांव का नजारा कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है. जहां हर रोज स्कूल जाने के लिए बच्चों को अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ रही है. गांव में बरसात हुई, करीब हर दफा होती है. लेकिन नया यहीं रहता है कि सभी को लगता है कि इस बार कोई रास्ता जरूर निकलेगा. खैर, रास्ता वो ही रहता है बहते पानी वाला.

बच्चों के परिजन यह तो जानते है कि बच्चों को स्कूल भेजना जरूरी है. लेकिन अब उन्होंने यह भी जान लिया है कि बच्चों की सलामती के लिए उनके साथ स्कूल जाना भी उतना ही जरूरी है. परिजन हर रोज कमर तक बहते पानी के रास्ते को पार कर बच्चों को स्कूल छोड़ आते है. लेकिन उम्मीद देखिएं हर बार प्रशासन से लगी रहती है कि वह इस बार जरूर कुछ करेगा. हां, प्रशासन करता भी है, केवल मूकदर्शक बनने का काम.

पढ़ें: बसपा विधायकों को कोई पद दिया तो, यह साबित हो जाएगा कि कुछ ले-देकर शामिल किया : कटारिया

ग्रामीणों का कहना है कि बारिश के दिनों में एक ओर बालूखाल और दूसरी ओर भूपसी नदी से गांव घिर जाता है. रेवेन्यू विलेज न होने के कारण इस गांव को प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से भी नहीं जोड़ा गया. ऐसें में लोग नदी को पार करके ही आते जाते है. ग्राम पंचायत से लेकर मुख्यमंत्री तक सड़क बनाने की मांग कर चुकें है लेकिन इस गांव की कोई सुध नहीं ली गई है.

जिस देश में नेताओं के स्टेच्यू बनने के लिए करोड़ों के बजट पास होते है, और बनते भी है. वहां बच्चों के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था देना सरकार के लिए कोई बड़ी बात नहीं. क्या करें ! हमें तो अतीत पर ही ध्यान देना ज्यादा अच्छा लगता हैं. बाकी 'भविष्य' तो आप भविष्य पर ही छोड़ दीजिए.

Intro:बारां जिले में आजादी के 72 साल बाद भी स्कूली बच्चों को जान जोखिम में डाल कर नदी पार कर स्कूल जाने पर मजबूर होना पड़ रहा है ।वही अभिभावक भी छोटे बच्चों को कंधे पर बैठाकर नदी पार कर बच्चों को स्कूल भेजने में मजबूर है ।Body:

बारां जिलें में आजादी के 72 बर्ष बाद भी लोगो को मलभूत सुविधाऐं नही मिल रही ओर गांव जाने के लिए सडक ओर पुलिया तक नही बनी है । ऐसे में रोज लोगो को नदी में बहते पानी में जान जोखिम में डालकर आना जाना पडता है ।ओर बच्चों को भी रोज पढाई के लिए संघर्ष करना पडता है ।

अटरू उपखंड मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर खानपुर मार्ग पर स्थित झाड़खंड गांव के छोटे छोटे बच्चों को बारिश के दिनों में काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है ।

ग्रामीणों का कहना है कि बारिश के दिनों में एक ओर बालूखाल ओर दूसरी ओर भूपसी नदी से गांव घिर जाता है। रेवेन्यू विलेज न होने के कारण इस गांव को प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से भी नही जोड़ा गया। ऐसें में लोग नदी को पार करके ही आते आते है । वही बच्चें स्कूल जानें के लिए रोज संघर्ष करते हैConclusion: ग्रामीणों का कहना है कि ग्राम पंचातय से लेकर मुख्यमंत्री तक सडक बनाने की मांग कर चुकें है लेकिन इस गांव की कोई सुध नही ली गयी है । ऐसे में इस गांव के लोग नारकीय जीवन जीने को मजबूर है।
बाइट- ग्रामीण
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Last Updated : Sep 20, 2019, 4:43 PM IST
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