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स्पेशल स्टोरी : दो कमरों में चल रहे दो स्कूल, हर क्लास एक दूसरे की पूरक, एडजस्टमेंट ही बन गई तकदीर

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Published : Dec 22, 2019, 3:29 PM IST

राजस्थान सरकार बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए नए-नए प्रयास कर रही है और इसी के तहत लाखों रुपए छात्रों पर खर्च किए जा रहे हैं. लेकिन इसके अलावा कईं सरकारी स्कूल ऐसे हैं, जिनकी हालत खासी खराब है. ईटीवी भारत सरकारी स्कूलों की हकीकत जानने के लिए इनका मुआयना कर रहा है.

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बांसवाड़ा के स्कूल में एडजस्टमेंट ही बन गया तकदीर

बांसवाड़ा. जिले में एक ऐसा स्कूल है, जो दो कमरों में चल रहा है. यहीं नहीं इस स्कूल में एक और स्कूल के बच्चे पढ़ने आ गए हैं. जिनका स्कूल भवन क्षतिग्रस्त हो गया था. आपको बात दें कि यह सिलसिला पिछले 6-7 सालों से जारी है. बारिश के दौरान यहां की स्थिति और भी बदतर हो जाती है. जिससे छात्रों को असुविधा के साथ-साथ पढ़ाई से भी दो-चार होना पड़ रहा है.

बांसवाड़ा के स्कूल में एडजस्टमेंट ही बन गया तकदीर

जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर खोरा पाड़ा स्कूल का भवन क्षतिग्रस्त होने से खोरा पाड़ा के साथ ही कुंडला खुर्द स्कूली बच्चे भी मुश्किल में आ गए. मेजबान स्कूल के दो कमरों में से एक मेहमान स्कूल को दे दिया गया. नतीजा यह निकला कि दोनों स्कूल पिछले छह-सात साल से एक के कमरे में चल रहे हैं.

बारिश के दौरान स्थिति बदतर

बारिश के दौरान स्थिति और भी बदतर हो जाती है जब सारे बच्चों को एक ही कमरे में पढ़ाने के अलावा शिक्षकों के सामने अन्य कोई विकल्प शेष नहीं रहता. सबसे बड़े दुर्भाग्य की बात यह है कि ब्लैक बोर्ड तो इन बच्चों के लिए काम ही नहीं आता क्योंकि सारे बच्चों का बोर्ड की और एक साथ बैठाना संभव नहीं है.

भवन हुआ क्षतिग्रस्त

खोड़ा पाड़ा प्राथमिक विद्यालय का भवन कुछ वर्षों पहले क्षतिग्रस्त हो गया. डैमेज घोषित करने के बाद इस विद्यालय को करीब 500 मीटर दूर स्थित कुंडला खुर्द गांव के स्कूल भवन में शिफ्ट कर दिया गया. जबकि पहले से ही स्कूल भवन में दो कमरे ही है. कुल मिलाकर 6-7 साल से दोनों ही स्कूल एक के कमरे में चल रहे हैं.

इस मेहमान नवाजी के फेर में कुंडला खुर्द स्कूल के बच्चे मुश्किल में नजर आ रहे हैं. दोनों के बीच बरामदा है जहां दो-दो क्लास को एक साथ बैठा कर पढ़ाया जाता है. लेकिन बारिश में स्थिति और भी बदतर हो जाती है, जब एक से पांचवीं तक के सारे बच्चों को एक-एक कमरे में बैठाना मजबूरी बन जाता है.

101 बच्चों का स्कूल

खोरा पाड़ा स्कूल में 46 बच्चे हैं. वहीं कुंडला खुर्द में 55 बच्चे लिस्टेड हैं. ईटीवी भारत द्वारा चलाए जा रहे अभियान के अंतर्गत टीम जब स्कूल पहुंची तो वहां के हालात देखकर सन्न रह गई. हर क्लास एडजस्टमेंट में चल रही थी. एक से पांचवीं तक के सारे बच्चे एक साथ अध्ययन कर रहे थे.

बोर्ड तो नाम का

हालांकि दोनों ही स्कूलों में दो-दो अध्यापक हैं लेकिन दोनों स्कूलों में एक-एक टीचर अमूमन सरकारी कामकाज से बाहर ही रहते हैं. ऐसी स्थिति में सारा भार एक-एक शिक्षक पर आ जाता है. पांच कक्षाओं को एक साथ नहीं संभाला जा सकता ऐसे में हर क्लास को ग्रुप में बैठकर उनके चेहरे अलग-अलग दिशाओं में करवा दिए जाते हैं. दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि टीचर एक ही क्लास को पढ़ा सकता है ऐसे में जिन बच्चों की क्लास नहीं लग रही है उनका ध्यान भी टीचर्स पर लगा रहता है. ऐसे में कुल मिलाकर हर बच्चे के लिए एक से लगाकर पांचवी तक की पढ़ाई करना एक प्रकार से मजबूरी बन चुका है.

पढ़ेंः जयपुर: नई माता मंदिर में पौषबड़ा महोत्सव, सजी विशेष झांकी

भवन निर्माण के लिए शिक्षा विभाग थमा रहा केवल आश्वासन

पता चला है कि खोरा पाड़ा स्कूल के लिए इसी स्कूल परिसर में गांव का कोई भामाशाह जमीन देने को तैयार है, लेकिन पिछले कई वर्षों से भवन निर्माण के लिए शिक्षा विभाग केवल आश्वासन ही थमा रहा है. इस कारण यहा भवन नहीं बन रहा है और दोनों स्कूल के बच्चे एक एक कमरे में पढ़ने को विवश हैं.

यह भी पढे़ं : रहस्य: इस मंदिर में सांप के काटे लोग बिना इलाज के हो जाते हैं ठीक, देखें ये खास रिपोर्ट

इस संबंध में चौथी क्लास के छात्र जितेंद्र से बातचीत करनी चाही तो उसने यह जरूर बताया कि अमूमन बाहर बरामदे में बैठकर पढ़ना उनकी मजबूरी बन चुका है लेकिन क्या क्या परेशानी आ रही है अपने टीचर्स की ओर देखकर अपने दर्द को बाहर नहीं निकाल पाया. स्कूल टीचर्स का कहना था कि हमारा काम पढ़ाना है और हम पूरी मेहनत से अपना काम कर रहे हैं. सरकार जहां हमे काम करने को बोलेगी हम वहीं पर अपना काम करेंगे लेकिन उन्होंने कैमरे के सामने आने से स्पष्ट इनकार कर दिया.

वहीं स्कूल के निरीक्षण के लिए पहुंची पंचायत प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी नीलिमा सैमसंग का कहना था कि खोरा पड़ा स्कूल के डैमेज होने के बाद से ही उस स्कूल को कुंडला खुर्द गांव में स्थित स्कूल में संचालित किया जा रहा है. हालांकि हमें बच्चों को होने वाली तकलीफों का पता है और इस बारे में विभाग को भी अवगत करा रखा है, जब भी बजट आवंटित होगा हम भवन निर्माण का काम शुरू कर पाएंगे. अब देखना होगा कि कब तक इन बच्चों को सुविधाएं मिल पाएंगी और वह पढ़ाई में अपना मन लगा पाएंगे.

बांसवाड़ा. जिले में एक ऐसा स्कूल है, जो दो कमरों में चल रहा है. यहीं नहीं इस स्कूल में एक और स्कूल के बच्चे पढ़ने आ गए हैं. जिनका स्कूल भवन क्षतिग्रस्त हो गया था. आपको बात दें कि यह सिलसिला पिछले 6-7 सालों से जारी है. बारिश के दौरान यहां की स्थिति और भी बदतर हो जाती है. जिससे छात्रों को असुविधा के साथ-साथ पढ़ाई से भी दो-चार होना पड़ रहा है.

बांसवाड़ा के स्कूल में एडजस्टमेंट ही बन गया तकदीर

जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर खोरा पाड़ा स्कूल का भवन क्षतिग्रस्त होने से खोरा पाड़ा के साथ ही कुंडला खुर्द स्कूली बच्चे भी मुश्किल में आ गए. मेजबान स्कूल के दो कमरों में से एक मेहमान स्कूल को दे दिया गया. नतीजा यह निकला कि दोनों स्कूल पिछले छह-सात साल से एक के कमरे में चल रहे हैं.

बारिश के दौरान स्थिति बदतर

बारिश के दौरान स्थिति और भी बदतर हो जाती है जब सारे बच्चों को एक ही कमरे में पढ़ाने के अलावा शिक्षकों के सामने अन्य कोई विकल्प शेष नहीं रहता. सबसे बड़े दुर्भाग्य की बात यह है कि ब्लैक बोर्ड तो इन बच्चों के लिए काम ही नहीं आता क्योंकि सारे बच्चों का बोर्ड की और एक साथ बैठाना संभव नहीं है.

भवन हुआ क्षतिग्रस्त

खोड़ा पाड़ा प्राथमिक विद्यालय का भवन कुछ वर्षों पहले क्षतिग्रस्त हो गया. डैमेज घोषित करने के बाद इस विद्यालय को करीब 500 मीटर दूर स्थित कुंडला खुर्द गांव के स्कूल भवन में शिफ्ट कर दिया गया. जबकि पहले से ही स्कूल भवन में दो कमरे ही है. कुल मिलाकर 6-7 साल से दोनों ही स्कूल एक के कमरे में चल रहे हैं.

इस मेहमान नवाजी के फेर में कुंडला खुर्द स्कूल के बच्चे मुश्किल में नजर आ रहे हैं. दोनों के बीच बरामदा है जहां दो-दो क्लास को एक साथ बैठा कर पढ़ाया जाता है. लेकिन बारिश में स्थिति और भी बदतर हो जाती है, जब एक से पांचवीं तक के सारे बच्चों को एक-एक कमरे में बैठाना मजबूरी बन जाता है.

101 बच्चों का स्कूल

खोरा पाड़ा स्कूल में 46 बच्चे हैं. वहीं कुंडला खुर्द में 55 बच्चे लिस्टेड हैं. ईटीवी भारत द्वारा चलाए जा रहे अभियान के अंतर्गत टीम जब स्कूल पहुंची तो वहां के हालात देखकर सन्न रह गई. हर क्लास एडजस्टमेंट में चल रही थी. एक से पांचवीं तक के सारे बच्चे एक साथ अध्ययन कर रहे थे.

बोर्ड तो नाम का

हालांकि दोनों ही स्कूलों में दो-दो अध्यापक हैं लेकिन दोनों स्कूलों में एक-एक टीचर अमूमन सरकारी कामकाज से बाहर ही रहते हैं. ऐसी स्थिति में सारा भार एक-एक शिक्षक पर आ जाता है. पांच कक्षाओं को एक साथ नहीं संभाला जा सकता ऐसे में हर क्लास को ग्रुप में बैठकर उनके चेहरे अलग-अलग दिशाओं में करवा दिए जाते हैं. दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि टीचर एक ही क्लास को पढ़ा सकता है ऐसे में जिन बच्चों की क्लास नहीं लग रही है उनका ध्यान भी टीचर्स पर लगा रहता है. ऐसे में कुल मिलाकर हर बच्चे के लिए एक से लगाकर पांचवी तक की पढ़ाई करना एक प्रकार से मजबूरी बन चुका है.

पढ़ेंः जयपुर: नई माता मंदिर में पौषबड़ा महोत्सव, सजी विशेष झांकी

भवन निर्माण के लिए शिक्षा विभाग थमा रहा केवल आश्वासन

पता चला है कि खोरा पाड़ा स्कूल के लिए इसी स्कूल परिसर में गांव का कोई भामाशाह जमीन देने को तैयार है, लेकिन पिछले कई वर्षों से भवन निर्माण के लिए शिक्षा विभाग केवल आश्वासन ही थमा रहा है. इस कारण यहा भवन नहीं बन रहा है और दोनों स्कूल के बच्चे एक एक कमरे में पढ़ने को विवश हैं.

यह भी पढे़ं : रहस्य: इस मंदिर में सांप के काटे लोग बिना इलाज के हो जाते हैं ठीक, देखें ये खास रिपोर्ट

इस संबंध में चौथी क्लास के छात्र जितेंद्र से बातचीत करनी चाही तो उसने यह जरूर बताया कि अमूमन बाहर बरामदे में बैठकर पढ़ना उनकी मजबूरी बन चुका है लेकिन क्या क्या परेशानी आ रही है अपने टीचर्स की ओर देखकर अपने दर्द को बाहर नहीं निकाल पाया. स्कूल टीचर्स का कहना था कि हमारा काम पढ़ाना है और हम पूरी मेहनत से अपना काम कर रहे हैं. सरकार जहां हमे काम करने को बोलेगी हम वहीं पर अपना काम करेंगे लेकिन उन्होंने कैमरे के सामने आने से स्पष्ट इनकार कर दिया.

वहीं स्कूल के निरीक्षण के लिए पहुंची पंचायत प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी नीलिमा सैमसंग का कहना था कि खोरा पड़ा स्कूल के डैमेज होने के बाद से ही उस स्कूल को कुंडला खुर्द गांव में स्थित स्कूल में संचालित किया जा रहा है. हालांकि हमें बच्चों को होने वाली तकलीफों का पता है और इस बारे में विभाग को भी अवगत करा रखा है, जब भी बजट आवंटित होगा हम भवन निर्माण का काम शुरू कर पाएंगे. अब देखना होगा कि कब तक इन बच्चों को सुविधाएं मिल पाएंगी और वह पढ़ाई में अपना मन लगा पाएंगे.

Intro:बांसवाड़ा। जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर खोरा पाड़ा स्कूल का भवन क्षतिग्रस्त क्या हुआ खोरा पाड़ा के साथ ही कुंडला खुर्द स्कूली बच्चे भी मुश्किल में आ गए। मेजबान स्कूल के दो कमरों में से एक मेहमान स्कूल को दे दिया गया। नतीजा यह निकला कि दोनों स्कूल पिछले छह-सात साल से एक के कमरे में चल रहे हैं। बारिश के दौरान स्थिति और भी बदतर हो जाती है जब सारे बच्चों को एक ही कमरे में पढ़ाने के अलावा शिक्षकों के सामने अन्य कोई विकल्प शेष नहीं रहता। सबसे बड़े दुर्भाग्य की बात यह है कि ब्लैक बोर्ड तो इन बच्चों के लिए काम ही नहीं आता क्योंकि सारे छात्र छात्राओं को बोर्ड की और एक साथ बैठाना संभव नहीं है। बच्चों को जब भी पढ़ा जाता है हर क्लास को एक दूसरे की दिशा पूरक बनाने के अलाव पूरक रखने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है।


Body:खोड़ा पाड़ा प्राथमिक विद्यालय का भवन कुछ वर्षों पहले क्षतिग्रस्त हो गया। डैमेज घोषित करने के बाद इस विद्यालय को करीब 500 मीटर दूर स्थित कुंडला खुर्द गांव के स्कूल भवन में शिफ्ट कर दिया गया जबकि पहले से ही स्कूल भवन मैं दो कमरे ही है। कुल मिलाकर 6-7 साल से दोनों ही स्कूल एक के कमरे में चल रहे हैं।
बारिश में बरामदे का विकल्प भी खत्म

इस मेहमान नवाजी के फेर में कुंडला खुर्द स्कूल के बच्चे मुश्किल में नजर आ रहे हैं। दोनों के बीच बरामदा है जहां दो-दो क्लास को एक साथ बैठा कर पढ़ाया जाता है। लेकिन बारिश में स्थिति और भी बदतर हो जाती है जब एक से पांचवीं तक के सारे बच्चों को एक एक कमरे में बैठाना मजबूरी बन जाता है। खोरा पाड़ा स्कूल में 46 बच्चे हैं वही कुंडला खुर्द में 55 बच्चे लिस्टेड है। ईटीवी भारत द्वारा चलाए जा रहे अभियान के अंतर्गत टीम जब स्कूल पहुंची तो वहां के हालात देखकर सन्न रह गई। हर क्लास एडजस्टमेंट में चल रही थी। एक से पांचवीं तक के सारे बच्चे एक साथ अध्ययन कर रहे थे।

बोर्ड तो नाम का

हालांकि दोनों ही स्कूलों में दो दो अध्यापक है लेकिन दोनों स्कूलों में एक एक टीचर अमूमन सरकारी कामकाज से बाहर ही रहते हैं ऐसी स्थिति में सारा भार एक एक शिक्षक पर आ जाता है। पांच कक्षाओं को एक साथ नहीं संभाला जा सकता ऐसे में हर क्लास को ग्रुप में बैठकर उनके चेहरे अलग-अलग दिशाओं में करवा दिए जाते हैं। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि टीचर एक ही क्लास को पढ़ा सकता है ऐसे में जिन बच्चों की क्लास नहीं लग रही है उनका ध्यान भी टीचर्स पर लगा रहता है। ऐसे में कुल मिलाकर हर बच्चे के लिए एक से लगाकर पांचवी तक की पढ़ाई करना एक प्रकार से मजबूरी बन चुका है।


Conclusion:पता चला है कि खोरा पाड़ा स्कूल के लिए इसी स्कूल परिसर में गांव का कोई भामाशाह जमीन देने को तैयार है लेकिन पिछले कई वर्षों से भवन निर्माण के लिए शिक्षा विभाग केवल आश्वासन ही थमा रहा है। इस कारण यहां भवन नहीं बन रहा है और दोनों स्कूल के बच्चे एक के कमरे में पढ़ने को विवश है। इस संबंध में चौथी क्लास के छात्र जितेंद्र से बातचीत करनी चाही तो उसने यह जरूर बताया कि अमूमन बाहर बरामदे में बैठकर पढ़ना उनकी मजबूरी बन चुका है लेकिन क्या क्या परेशानी आ रही है अपने टीचर्स की ओर देखकर अपने दर्द को बाहर नहीं निकाल पाया। स्कूल टीचर्स का कहना था कि हमारा काम पढ़ाना है और हम पूरी मेहनत से अपना काम कर रहे हैं। सरकार जहां बैठाकर हम वहीं पर अपना काम करेंगे लेकिन उन्होंने कैमरे के सामने आने से स्पष्ट इनकार कर दिया। वही स्कूल के निरीक्षण के लिए पहुंची पंचायत प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी नीलिमा सैमसंग का कहना था कि खोरा पड़ा स्कूल के डैमेज होने के बाद से ही उस स्कूल को कुंडला खुर्द गांव में स्थित स्कूल में संचालित किया जा रहा है। हालांकि हमें बच्चों को होने वाली तकलीफों का पता है और इस बारे में विभाग को भी अवगत करा रखा है। जब भी बजट आवंटित होगा हम भवन निर्माण का काम शुरू कर पाएंगे।

बाइट....... जितेंद्र कुमार छात्र
........ नीलिमा सैमसंग पंचायत प्रारंभिक शिक्षा अधिकारी
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