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Special: इस बार मध्यप्रदेश और राजस्थान के लोग नहीं उठा पाएंगे बांसवाड़ा के देसी आम का लुत्फ!

प्रकृति ने आदिवासी बहुल बांसवाड़ा जिले को अनूठे नैसर्गिक सौंदर्य के बूते प्रदेश और देश में एक अलग पहचान दिलाई है. यहां बड़ी मात्रा में आम की पैदावार होती है, जिनकी मिठास से राजस्थान ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश और गुजरात भी वाकिफ है. लेकिन इस बार आम की पैदावार में भारी कमी हुई है. जिसके चलते बांसवाड़ा के देसी आम का स्वाद अन्य शहरों के लोग शायद ही चख पाएंगे. देखिए ये स्पेशल रिपोर्ट...

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बांसवाड़ा में आम की पैदावार में भारी कमी
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Published : Jun 7, 2020, 3:14 PM IST

बांसवाड़ा. गर्मी के मौसम के साथ ही आम का मौसम भी आ गया है. जिसका लोग लुत्फ उठा रहे हैं. लेकिन इस साल बांसवाड़ा में भी फलों के राजा 'आम' की पैदावार में भी कमी हुई है. वैसे तो आम के पेड़ हर दूसरे साल फल देते हैं, लेकिन इस बार जलवायु परिवर्तन का भी पैदावार पर भारी असर पड़ा है. नतीजा यह निकला कि यहां के आम की पैदावार 60 से लेकर 70% तक रह गई. जिससे इस बार बांसवाड़ा के देसी आम की मिठास आमजन से दूर रहने की संभावना है.

बांसवाड़ा में आम की पैदावार में भारी कमी

प्रदेश में बांसवाड़ा एक ऐसा जिला है जहां पर आम के बगीचे होने के साथ-साथ आदिवासी वर्ग के खेतों में भी बड़े पैमाने पर आम के पेड़ देखे जा सकते हैं. खासकर बांसवाड़ा और घाटोल उपखंड में उन्नत किस्म के साथ-साथ देसी किस्म के हजारों पेड़ हैं. कृषि अनुसंधान केंद्र के अनुसार जिले में 46 किस्म के आम हैं. जिनमें से 20 देसी वैरायटी हैं. अनुसंधान केंद्र के आंकड़े बताते हैं कि जिले में एक-एक बीघा क्षेत्रफल के 150 बगीचे हैं. जहां पर उन्नत किस्म के आम की पैदावारी की जा रही है. देसी किस्म की बात करें तो इसका कोई बगीचा तो नहीं है, लेकिन घर से लेकर खेत तक किसानों ने हजारों की संख्या में पेड़ लगा रखे हैं.

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देश- प्रदेश में मशहूर बांसवाड़ा का आम

क्या हैं आंकड़े

केंद्र के आंकड़ों के अनुसार जिलेभर में देसी और उन्नत किस्म के आम को मिलाकर कुल 3480 हेक्टेयर में आम की उपज ली जा रही है. इनमें से लगभग 60 प्रतिशत पेड़ देसी किस्म के हैं.

यह भी पढ़ें- जेल में खेल: अलवर कारागार में सजा नहीं मौज काट रहे कैदी!, देखिए भ्रष्टाचार पर बड़ा खुलासा

घाटोल सबसे टॉप पर

अब यदि आम की पैदावार पर नजर डाले तो सबसे टॉप पर घाटोल उपखंड आता है, जहां बगीचों के साथ-साथ खेत खलिहान में भी हजारों पेड़ देखे जा सकते हैं. यहां से कैरी से लेकर आम तक जयपुर, अजमेर, भीलवाड़ा, उदयपुर के अलावा मध्य प्रदेश के मंदसौर, नीमच, रतलाम, इंदौर, के साथ गुजरात के संतरामपुर, दाहोद, हिम्मतनगर शहरों तक सप्लाई किए जाते हैं. देसी आमों की इन स्थानों पर खासी डिमांड रहती है.

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देसी आम के बगीचे की एक तस्वीर

पैदावार में भारी गिरावट

इस बार घाटोल सहित जिलेभर में देसी आम की पैदावार में भारी गिरावट देखी गई है. देसी आम 1 साल छोड़कर दूसरे साल फल देते हैं, लेकिन इस बार फूल तो काफी आए परंतु फल बनने से पहले ही झड़ गए. गिने-चुने पेड़ों पर ही आम नजर आ रहे हैं. पैदावार में गिरावट को लेकर किसान भी चिंतित है. किसानों का मानना है कि अधिक बारिश से वातावरण में नमी बनी रहती है. ऐसी स्थिति में भी फूल के झड़ने की संभावना अधिक रहती है.

यह भी पढ़ें- SPECIAL : अलवर देख रहा विकास की राह, एक साल में नहीं हुआ कोई विशेष काम

किसान रूपलाल के अनुसार हर दूसरे साल आम आते हैं लेकिन इस बार ना जाने क्या कारण रहा कि फल आने से पहले ही फूल झड़ गए. वहीं किसान दीपेश कुमार ने बताया कि इस बार उत्पादन बहुत कम हुआ है. हर साल यहां से प्रतिदिन 8 से 10 पिकअप आम बाहर भेजा जाता था, लेकिन इस बार चार-पांच पिकअप ही भेजे जा रहे हैं. पैदावारी में गिरावट के कारण भाव में भी उछाल है.

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बांसवाड़ा में पाए जाते है 46 किस्म के आम

वहीं कृषि अनुसंधान केंद्र बांसवाड़ा के जोनल डायरेक्टर डॉ. पीके रोकडिया के अनुसार देसी आम की पैदावार में सबसे अधिक गिरावट आई है. इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ किसानों द्वारा समय पर पेड़ों की सार संभाल नहीं करना है. ऐसे में कहा जा सकता है कि इस बार लोग बांसवाड़ा के आम का सवाद ज्यादा नहीं चख पाएंगे.

बांसवाड़ा. गर्मी के मौसम के साथ ही आम का मौसम भी आ गया है. जिसका लोग लुत्फ उठा रहे हैं. लेकिन इस साल बांसवाड़ा में भी फलों के राजा 'आम' की पैदावार में भी कमी हुई है. वैसे तो आम के पेड़ हर दूसरे साल फल देते हैं, लेकिन इस बार जलवायु परिवर्तन का भी पैदावार पर भारी असर पड़ा है. नतीजा यह निकला कि यहां के आम की पैदावार 60 से लेकर 70% तक रह गई. जिससे इस बार बांसवाड़ा के देसी आम की मिठास आमजन से दूर रहने की संभावना है.

बांसवाड़ा में आम की पैदावार में भारी कमी

प्रदेश में बांसवाड़ा एक ऐसा जिला है जहां पर आम के बगीचे होने के साथ-साथ आदिवासी वर्ग के खेतों में भी बड़े पैमाने पर आम के पेड़ देखे जा सकते हैं. खासकर बांसवाड़ा और घाटोल उपखंड में उन्नत किस्म के साथ-साथ देसी किस्म के हजारों पेड़ हैं. कृषि अनुसंधान केंद्र के अनुसार जिले में 46 किस्म के आम हैं. जिनमें से 20 देसी वैरायटी हैं. अनुसंधान केंद्र के आंकड़े बताते हैं कि जिले में एक-एक बीघा क्षेत्रफल के 150 बगीचे हैं. जहां पर उन्नत किस्म के आम की पैदावारी की जा रही है. देसी किस्म की बात करें तो इसका कोई बगीचा तो नहीं है, लेकिन घर से लेकर खेत तक किसानों ने हजारों की संख्या में पेड़ लगा रखे हैं.

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देश- प्रदेश में मशहूर बांसवाड़ा का आम

क्या हैं आंकड़े

केंद्र के आंकड़ों के अनुसार जिलेभर में देसी और उन्नत किस्म के आम को मिलाकर कुल 3480 हेक्टेयर में आम की उपज ली जा रही है. इनमें से लगभग 60 प्रतिशत पेड़ देसी किस्म के हैं.

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घाटोल सबसे टॉप पर

अब यदि आम की पैदावार पर नजर डाले तो सबसे टॉप पर घाटोल उपखंड आता है, जहां बगीचों के साथ-साथ खेत खलिहान में भी हजारों पेड़ देखे जा सकते हैं. यहां से कैरी से लेकर आम तक जयपुर, अजमेर, भीलवाड़ा, उदयपुर के अलावा मध्य प्रदेश के मंदसौर, नीमच, रतलाम, इंदौर, के साथ गुजरात के संतरामपुर, दाहोद, हिम्मतनगर शहरों तक सप्लाई किए जाते हैं. देसी आमों की इन स्थानों पर खासी डिमांड रहती है.

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देसी आम के बगीचे की एक तस्वीर

पैदावार में भारी गिरावट

इस बार घाटोल सहित जिलेभर में देसी आम की पैदावार में भारी गिरावट देखी गई है. देसी आम 1 साल छोड़कर दूसरे साल फल देते हैं, लेकिन इस बार फूल तो काफी आए परंतु फल बनने से पहले ही झड़ गए. गिने-चुने पेड़ों पर ही आम नजर आ रहे हैं. पैदावार में गिरावट को लेकर किसान भी चिंतित है. किसानों का मानना है कि अधिक बारिश से वातावरण में नमी बनी रहती है. ऐसी स्थिति में भी फूल के झड़ने की संभावना अधिक रहती है.

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किसान रूपलाल के अनुसार हर दूसरे साल आम आते हैं लेकिन इस बार ना जाने क्या कारण रहा कि फल आने से पहले ही फूल झड़ गए. वहीं किसान दीपेश कुमार ने बताया कि इस बार उत्पादन बहुत कम हुआ है. हर साल यहां से प्रतिदिन 8 से 10 पिकअप आम बाहर भेजा जाता था, लेकिन इस बार चार-पांच पिकअप ही भेजे जा रहे हैं. पैदावारी में गिरावट के कारण भाव में भी उछाल है.

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बांसवाड़ा में पाए जाते है 46 किस्म के आम

वहीं कृषि अनुसंधान केंद्र बांसवाड़ा के जोनल डायरेक्टर डॉ. पीके रोकडिया के अनुसार देसी आम की पैदावार में सबसे अधिक गिरावट आई है. इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ किसानों द्वारा समय पर पेड़ों की सार संभाल नहीं करना है. ऐसे में कहा जा सकता है कि इस बार लोग बांसवाड़ा के आम का सवाद ज्यादा नहीं चख पाएंगे.

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