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ईटीवी भारत पर छलका प्रवासियों का दर्द, फैक्ट्री मालिक ने काम से निकाला, 500 किमी पैदल चलकर पहुंचे बांसवाड़ा

कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने बिना किसी को सूचित किए अचानक से लॉकडाउन की घोषणा कर दी. इस लॉकडाउन के दौरान जो जहां था, उसे वहीं रहने का आदेश दे दिया गया. ऐसे में बांसवाड़ा के शेल्टर होम में भी रह रहे कुछ लोगों को भी अब लॉकडाउन खत्म होने और अपनों से मिलने का इंतजार है.

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बांसवाड़ा के इस शेल्टर होम में रह लोगों ने की ईटीवी भारत से बातचीत
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Published : Apr 12, 2020, 9:20 PM IST

Updated : Apr 13, 2020, 1:22 PM IST

बांसवाड़ा. कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए लॉकडाउन के बाद भी प्रदेश के बाहर से बड़ी संख्या में लोगों के आने से संक्रमण तेजी से फैल सकता था. करीब 1 सप्ताह बाद केंद्र सरकार की गाइडलाइन के अनुसार प्रदेश के साथ-साथ जिलों की सीमाओं को लॉक कर दिया गया. जो जहां तक पहुंचे, उन्हें वहीं पर रोक लिया गया.

बांसवाड़ा जिले में भी डूंगरपुर जयपुर और रतलाम मार्ग पर इंटर डिस्ट्रिक्ट बॉर्डर पर बड़ी संख्या में लोगों को रोका गया. जयपुर राजमार्ग स्थित प्रतापगढ़ बॉर्डर पर करीब डेढ़ सौ से अधिक लोगों को कैंप लगाकर ठहराया गया. इन लोगों में उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के डेढ़ दर्जन लोग भी शामिल हैं. ईटीवी भारत की टीम बॉर्डर पर पहुंची और इटावा के इन लोगों की दर्द भरी दास्तां से रूबरू हुई.

बांसवाड़ा के इस शेल्टर होम में रह लोगों ने की ईटीवी भारत से बातचीत

सता रही अपनों की चिंता

जनजाति विभाग के एक हॉस्टल में ठहराए गए यह लोग अंगुलियों पर दिन गिनते नजर आए. हालांकि उन्हें खाने-पीने सहित ठहराव को लेकर किसी प्रकार की शिकायत नहीं थी. लेकिन अपनों से दूरी उन्हें कचोट रही थी. सभी अपने अपने बेड पर सूरज धरने का इंतजार कर रहे थे, क्योंकि रात तो जैसे-तैसे निकल जाती. लेकिन दिन निकालना उनके लिए भारी साबित हो रहा था.

यह भी पढ़ें- SPECIAL: आखिर क्यों रामगंज में लागू नहीं हो पा रहा 'भीलवाड़ा मॉडल'?

यहां रह रहे भूरे के अनुसार राजकोट में जिस फैक्ट्री में काम करते थे. अचानक उसे बंद कर दिया गया. घर में जो था वह कुछ दिन तो चल गया. लेकिन जब सामान खत्म होने लगा, तो घर पहुंचना ही बेहतर दिखा.

500 किमी का पैदल तय किया सफर

जेब में जो थोड़ा बहुत पैसा था उसे लेकर अपने साथियों सहित राजकोट से पैदल ही निकल पड़े. उन्होंने बताया कि हम लोग रास्ते में एक आध घंटा सोने के बाद लगातार रात दिन चलते रहे. करीब 500 किलोमीटर का सफर पैदल तय करने के बाद उम्मीद जागी कि शायद अब उन्हें आगे के लिए कोई गाड़ी घोड़ा मिल जाएगा. लेकिन पीपलखूंट के पास उन्हें पुलिस ने रोक लिया.

अमित कुमार के अनुसार वे लोग एक ही फैक्ट्री में काम करते थे और अचानक फैक्ट्री संचालक द्वारा उन्हें का काम पर नहीं आने की बात कही, तो उनके होश उड़ गए. उसके बाद उन्होंने वहां से निकलना ही ठीक समझा और साथियों के साथ वहां से निकल गए. हमारा यहां पर एक-एक दिन निकालना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि बीच में अटके हैं. हम बस 2 दिन का और इंतजार कर रहे हैं.

यह भी पढ़ें- SPECIAL: शेल्टर होम्स में प्रसूताओं का भी रखा जा रहा है विशेष ध्यान

8 साल के बच्चे के साथ पैदल पहुंची मां

14 अप्रैल को लॉकडाउन खत्म होने के साथ ही हम लोग निकल जाएंगे. अपने 8 साल के बच्चे के साथ अनीता ने बताया कि रास्ते में पैदल चलते चलते हमें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. जेब में ज्यादा राशि भी नहीं थी. ऐसे में बिस्किट खा-खाकर हमने रास्ता तय किया. हमें यहां पर 14 दिन के लिए रोका गया है. उसके बाद प्रशासन द्वारा हमें अपने घर छोड़ने की बात कही जा रही है.

हॉस्टल अधीक्षक नंदकिशोर निनामा के अनुसार हम इन लोगों के खाने-पीने और ठहराव का उचित प्रबंध कर रहे हैं. हमारा प्रयास है कि इन्हें किसी भी प्रकार की कोई तकलीफ नहीं आए. फिलहाल सभी को उम्मीद है कि 14 अप्रैल को लॉकडाउन खुलने के बाद वे अपने घर पहुंच जाएंगे.

बांसवाड़ा. कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए लॉकडाउन के बाद भी प्रदेश के बाहर से बड़ी संख्या में लोगों के आने से संक्रमण तेजी से फैल सकता था. करीब 1 सप्ताह बाद केंद्र सरकार की गाइडलाइन के अनुसार प्रदेश के साथ-साथ जिलों की सीमाओं को लॉक कर दिया गया. जो जहां तक पहुंचे, उन्हें वहीं पर रोक लिया गया.

बांसवाड़ा जिले में भी डूंगरपुर जयपुर और रतलाम मार्ग पर इंटर डिस्ट्रिक्ट बॉर्डर पर बड़ी संख्या में लोगों को रोका गया. जयपुर राजमार्ग स्थित प्रतापगढ़ बॉर्डर पर करीब डेढ़ सौ से अधिक लोगों को कैंप लगाकर ठहराया गया. इन लोगों में उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के डेढ़ दर्जन लोग भी शामिल हैं. ईटीवी भारत की टीम बॉर्डर पर पहुंची और इटावा के इन लोगों की दर्द भरी दास्तां से रूबरू हुई.

बांसवाड़ा के इस शेल्टर होम में रह लोगों ने की ईटीवी भारत से बातचीत

सता रही अपनों की चिंता

जनजाति विभाग के एक हॉस्टल में ठहराए गए यह लोग अंगुलियों पर दिन गिनते नजर आए. हालांकि उन्हें खाने-पीने सहित ठहराव को लेकर किसी प्रकार की शिकायत नहीं थी. लेकिन अपनों से दूरी उन्हें कचोट रही थी. सभी अपने अपने बेड पर सूरज धरने का इंतजार कर रहे थे, क्योंकि रात तो जैसे-तैसे निकल जाती. लेकिन दिन निकालना उनके लिए भारी साबित हो रहा था.

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यहां रह रहे भूरे के अनुसार राजकोट में जिस फैक्ट्री में काम करते थे. अचानक उसे बंद कर दिया गया. घर में जो था वह कुछ दिन तो चल गया. लेकिन जब सामान खत्म होने लगा, तो घर पहुंचना ही बेहतर दिखा.

500 किमी का पैदल तय किया सफर

जेब में जो थोड़ा बहुत पैसा था उसे लेकर अपने साथियों सहित राजकोट से पैदल ही निकल पड़े. उन्होंने बताया कि हम लोग रास्ते में एक आध घंटा सोने के बाद लगातार रात दिन चलते रहे. करीब 500 किलोमीटर का सफर पैदल तय करने के बाद उम्मीद जागी कि शायद अब उन्हें आगे के लिए कोई गाड़ी घोड़ा मिल जाएगा. लेकिन पीपलखूंट के पास उन्हें पुलिस ने रोक लिया.

अमित कुमार के अनुसार वे लोग एक ही फैक्ट्री में काम करते थे और अचानक फैक्ट्री संचालक द्वारा उन्हें का काम पर नहीं आने की बात कही, तो उनके होश उड़ गए. उसके बाद उन्होंने वहां से निकलना ही ठीक समझा और साथियों के साथ वहां से निकल गए. हमारा यहां पर एक-एक दिन निकालना मुश्किल हो रहा है, क्योंकि बीच में अटके हैं. हम बस 2 दिन का और इंतजार कर रहे हैं.

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8 साल के बच्चे के साथ पैदल पहुंची मां

14 अप्रैल को लॉकडाउन खत्म होने के साथ ही हम लोग निकल जाएंगे. अपने 8 साल के बच्चे के साथ अनीता ने बताया कि रास्ते में पैदल चलते चलते हमें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. जेब में ज्यादा राशि भी नहीं थी. ऐसे में बिस्किट खा-खाकर हमने रास्ता तय किया. हमें यहां पर 14 दिन के लिए रोका गया है. उसके बाद प्रशासन द्वारा हमें अपने घर छोड़ने की बात कही जा रही है.

हॉस्टल अधीक्षक नंदकिशोर निनामा के अनुसार हम इन लोगों के खाने-पीने और ठहराव का उचित प्रबंध कर रहे हैं. हमारा प्रयास है कि इन्हें किसी भी प्रकार की कोई तकलीफ नहीं आए. फिलहाल सभी को उम्मीद है कि 14 अप्रैल को लॉकडाउन खुलने के बाद वे अपने घर पहुंच जाएंगे.

Last Updated : Apr 13, 2020, 1:22 PM IST
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