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स्पेशल स्टोरी : बांसवाड़ा स्थित देवी नंदिनी के मंदिर से जुड़ा है द्वापर युग का रहस्य

बांसवाड़ा में माता यशोदा की जन्मी संतान का एक ऐसा भव्य मंदिर है, जो चमत्कारिक रहस्यों से भरा हुआ है. इस मंदिर के बारे में ऐसा कहा जाता है कि मंदिर के पीछे की चट्टानों को पीटने से वाद्ययंत्र की ध्वनि निकलती है, जो सभी को हैरत में डाल देती है. इतना ही नहीं यहां की देवी नवरात्र के समय समान्य स्त्री का रूप धारण करके गरबा करने आती हैं. इस चमत्कारिक मंदिर के बारे में जानकारी मिलते ही ईटीवी भारत की टीम भी इस मंदिर जा पहुंची.

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Published : Oct 8, 2019, 2:46 PM IST

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बांसवाड़ा. जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूरी पर बड़ोदिया कस्बे के दक्षिण पश्चिम में अरावली पर्वत श्रृंखला की ऊंचाईयों पर स्थित देवी तीर्थ नंदिनी माता का धाम है. विशाल पर्वत पर स्थित होने पर भी श्रद्धालुओं के लिए यह स्थान अब दुर्गम नहीं है, क्योंकि पहाड़ की तलहटी से ही पश्चिम और पूर्व भाग में 500-500 व्यवस्थित सीढ़ियां बनाई जा चुकी हैं. इस विशाल पहाड़ी पर चढ़ने के रोमांचक अनुभव के साथ ही जिले की सरहदों को उंचाई से देखने के लिए श्रद्धालु यहां नवरात्रि, शिवरात्रि और अवकाश के दिनों के अलावा आम दिनों में भी आते रहते है.

माता यशोदा की संतान देवी नंदिनी का चमत्कारिक मंदिर

देवी ने भगवान श्रीकृष्ण की रक्षा की थी

मां नंदिनी के बारे में कहा जाता है कि यह वही देवी है, जो द्वापर युग में यशोदा के गर्भ से उत्पन्न हुई थी. जिसे कंस ने देवकी की आठवीं संतान समझकर मारने का यत्न किया था. कंस के हाथों से मुक्त होकर यह देवी आकाश मार्ग से यहां इस पर्वत पर आकर स्थापित हुई. नन्दा नामक इसी देवी का उल्लेख दुर्गा सप्तशती के ग्यारहवें अध्याय के 42 वें श्लोक में अंकित है.

'नन्दगोपगृहे जाता, यशोदा गर्भ संभवा |
ततस्तौ नाशयिष्यामि विंध्याचल निवासिनी ।।

पढ़ें- खबर का असर : 4 साल बाद चिकित्सा मंत्रालय में भगवान गणेश होंगे स्थापित, आदेश जारी

साथ ही दुर्गा सप्तशती के मूर्तिरहस्य प्रकरण में देवी की अंगभूता छ: देवियों में नंदा देवी को ही सबसे पहले उल्लिखित किया गया है. आदिवासियों के प्राचीन गरबों और गीतों में आज भी इस देवी की प्राचीनता का बखान प्रमुखता से प्राप्त होता है.

''ओम नन्दा भगवती नाम या भविष्यती नन्दजा,
स्तुता सा पूजिता भवत्या वशीकुर्याज्जगत्रयम्।।

पढ़ें- जयपुर: महानवमी पर कन्या पूजन का चला दौर, बालिकाओं के पैर धोकर बांधा कलावा

शिव और शक्ति का श्रद्घाधाम

नंदिनी माता मुख्य मंदिर के अलावा इस स्थान पर भैरवजी मंदिर और नंदेश्वर शिवालय भी स्थित है. जिनके प्रति भी श्रद्धालु ओं में अगाध आस्थाएं है. नंदिनी माता मंदिर से सटे हुए भैरवजी मंदिर में भी बांके देव भैरव की चित्ताकर्षक प्रतिमा है. इसी तरह कुछ दूरी पर बिल्ववृक्षों से घिरे नंदेश्वर शिवालय में भी देवी पार्वती प्रतिमा के अलावा विशाल शिवलिंग इस स्थान की महत्ता को बढ़ा देता है.

चमत्कारिक हैं यहां की चट्टानें

नंदिनी माता मंदिर के पृष्ठ भाग में कुछ चमत्कारिक चट्टानें भी विद्यमान है. इन विशाल चट्टानों की विशेषता है कि इनकों पत्थर से पीटने पर इनसे ताम्र, लोह और अन्य धातु के बर्तन बजाने की सी ध्वनि उत्पन्न होती है. ये चट्टानें है तो पाषाण स्वरूपा परंतु किसी वाद्य यंत्र सरीखा व्यवहार करती है. कुदरत के करिश्में की प्रतीक इन चट्टानों को पीटने पर निकलने वाली सुरीली ध्वनियां यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को बेहद आकर्षित करती है. सर्वाधिक आश्चर्य की बात तो यह है कि इन चार चट्टानों के अलावा आसपास इस तरह की अनेक चट्टानें हैं, परंतु उनको बजाने पर इस तरह की ध्वनियां उत्पन्न नहीं होती हैं.

पढ़ें- महानवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की करें उपासना, सिद्धि की होगी प्राप्ति

देवी गरबा खेलने आती हैं यहां

मान्‍यता है कि पहले देवी नंदिनी नवरात्रि पर्व के दौरान पहाड़ से उतरकर सामान्‍य महिला का रूप धारण कर गरबा खेलने के लिए आती थी, परंतु जाति विशेष के एक व्‍यक्ति ने देवी के भेद को जान लिए जाने के कारण देवी ने उसे श्राप दिया. जिसके कारण आज तक बड़ोदिया गांव में उस जाति का एक भी परिवार नहीं है. शिक्षक और माता के परम भक्त प्रदीप पाठक बताते हैं कि आज यह स्थान गुजरात के पावागढ़ की तरह ख्याति प्राप्त कर रहा है. यहां जो भी व्यक्ति अपनी श्रद्धा के साथ मन्नत मांगता है, देवी मां उसे जरूर पूरी करती है.

बांसवाड़ा. जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूरी पर बड़ोदिया कस्बे के दक्षिण पश्चिम में अरावली पर्वत श्रृंखला की ऊंचाईयों पर स्थित देवी तीर्थ नंदिनी माता का धाम है. विशाल पर्वत पर स्थित होने पर भी श्रद्धालुओं के लिए यह स्थान अब दुर्गम नहीं है, क्योंकि पहाड़ की तलहटी से ही पश्चिम और पूर्व भाग में 500-500 व्यवस्थित सीढ़ियां बनाई जा चुकी हैं. इस विशाल पहाड़ी पर चढ़ने के रोमांचक अनुभव के साथ ही जिले की सरहदों को उंचाई से देखने के लिए श्रद्धालु यहां नवरात्रि, शिवरात्रि और अवकाश के दिनों के अलावा आम दिनों में भी आते रहते है.

माता यशोदा की संतान देवी नंदिनी का चमत्कारिक मंदिर

देवी ने भगवान श्रीकृष्ण की रक्षा की थी

मां नंदिनी के बारे में कहा जाता है कि यह वही देवी है, जो द्वापर युग में यशोदा के गर्भ से उत्पन्न हुई थी. जिसे कंस ने देवकी की आठवीं संतान समझकर मारने का यत्न किया था. कंस के हाथों से मुक्त होकर यह देवी आकाश मार्ग से यहां इस पर्वत पर आकर स्थापित हुई. नन्दा नामक इसी देवी का उल्लेख दुर्गा सप्तशती के ग्यारहवें अध्याय के 42 वें श्लोक में अंकित है.

'नन्दगोपगृहे जाता, यशोदा गर्भ संभवा |
ततस्तौ नाशयिष्यामि विंध्याचल निवासिनी ।।

पढ़ें- खबर का असर : 4 साल बाद चिकित्सा मंत्रालय में भगवान गणेश होंगे स्थापित, आदेश जारी

साथ ही दुर्गा सप्तशती के मूर्तिरहस्य प्रकरण में देवी की अंगभूता छ: देवियों में नंदा देवी को ही सबसे पहले उल्लिखित किया गया है. आदिवासियों के प्राचीन गरबों और गीतों में आज भी इस देवी की प्राचीनता का बखान प्रमुखता से प्राप्त होता है.

''ओम नन्दा भगवती नाम या भविष्यती नन्दजा,
स्तुता सा पूजिता भवत्या वशीकुर्याज्जगत्रयम्।।

पढ़ें- जयपुर: महानवमी पर कन्या पूजन का चला दौर, बालिकाओं के पैर धोकर बांधा कलावा

शिव और शक्ति का श्रद्घाधाम

नंदिनी माता मुख्य मंदिर के अलावा इस स्थान पर भैरवजी मंदिर और नंदेश्वर शिवालय भी स्थित है. जिनके प्रति भी श्रद्धालु ओं में अगाध आस्थाएं है. नंदिनी माता मंदिर से सटे हुए भैरवजी मंदिर में भी बांके देव भैरव की चित्ताकर्षक प्रतिमा है. इसी तरह कुछ दूरी पर बिल्ववृक्षों से घिरे नंदेश्वर शिवालय में भी देवी पार्वती प्रतिमा के अलावा विशाल शिवलिंग इस स्थान की महत्ता को बढ़ा देता है.

चमत्कारिक हैं यहां की चट्टानें

नंदिनी माता मंदिर के पृष्ठ भाग में कुछ चमत्कारिक चट्टानें भी विद्यमान है. इन विशाल चट्टानों की विशेषता है कि इनकों पत्थर से पीटने पर इनसे ताम्र, लोह और अन्य धातु के बर्तन बजाने की सी ध्वनि उत्पन्न होती है. ये चट्टानें है तो पाषाण स्वरूपा परंतु किसी वाद्य यंत्र सरीखा व्यवहार करती है. कुदरत के करिश्में की प्रतीक इन चट्टानों को पीटने पर निकलने वाली सुरीली ध्वनियां यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को बेहद आकर्षित करती है. सर्वाधिक आश्चर्य की बात तो यह है कि इन चार चट्टानों के अलावा आसपास इस तरह की अनेक चट्टानें हैं, परंतु उनको बजाने पर इस तरह की ध्वनियां उत्पन्न नहीं होती हैं.

पढ़ें- महानवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की करें उपासना, सिद्धि की होगी प्राप्ति

देवी गरबा खेलने आती हैं यहां

मान्‍यता है कि पहले देवी नंदिनी नवरात्रि पर्व के दौरान पहाड़ से उतरकर सामान्‍य महिला का रूप धारण कर गरबा खेलने के लिए आती थी, परंतु जाति विशेष के एक व्‍यक्ति ने देवी के भेद को जान लिए जाने के कारण देवी ने उसे श्राप दिया. जिसके कारण आज तक बड़ोदिया गांव में उस जाति का एक भी परिवार नहीं है. शिक्षक और माता के परम भक्त प्रदीप पाठक बताते हैं कि आज यह स्थान गुजरात के पावागढ़ की तरह ख्याति प्राप्त कर रहा है. यहां जो भी व्यक्ति अपनी श्रद्धा के साथ मन्नत मांगता है, देवी मां उसे जरूर पूरी करती है.

Intro:

बांसवाड़ाl गुजरात से सटा होने के कारण वागड़ अंचल गुजरात की संस्कृति के प्रभाव से भी अछूता नहीं रह पाया है। गुजरात की तरह देवी को आद्य शक्ति के रूप मैं प्रधानता दी जाती रही है। इसी का प्रत्यक्ष उदाहरण है वागड़ में जगह जगह स्थित देवी मंदिर और यहां उमडऩे वाली जनमेदिनी। गुजरात के ख्यातनाम देवी तीर्थ पावागढ़ सरीखी आभा व भौगिलिक स्थिति लिये एक ऐसा ही ख्यातनाम देवीधाम है नन्दनी माता तीर्थ, जिसे यहां के श्रद्धालु वागड़ का पावागढ़ की संज्ञा से विभूषित करते हैं। मान्यता है कि द्वापर युग में माता यशोदा के गर्भ से आठवीं संतान के रूप में जन्म लेने वाली माता नंदिनी अपने मामा कंस के हाथों मुक्त होकर इस पहाड़ी पर विराजमान हुई थी। आज यह बांसवाड़ा ही नहीं गुजरात और मध्य प्रदेश के लोगों के लिए भी प्रमुख आराध्य देवी के रूप में ख्यात है।

Body:जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूरी पर मुम्बई मार्ग पर अवस्थित बड़ोदिया कस्बे के दक्षिण पश्चिम में सडक़ किनारे छितराई अरावली पर्वतश्रृंखला की एक विशाल पर्वतशिखा पर अवस्थित देवी तीर्थ नन्दनी माता श्रद्धालुओं की अगाध आस्थाओं का धाम है। विशाल पर्वत पर स्थित होने पर भी श्रद्धालुओं के लिये यह स्थान अब दुर्गम नहीं है क्योंकि पहाड़ की तलहटी से ही पश्चिम और पूर्व भाग में 500-500 व्यवस्थित सीढिय़ॉं बनाई जा चुकी हैं।

इस विशाल पहाड़ी पर चढऩे के रोमांचक अनुभव के साथ ही जिले की सरहदों को उंचाई से देखने के आनंद का संवरण करने के लिये श्रद्धालु यहां नवरात्रि, शिवरात्रि व अवकाश के दिनों के अलावा आम दिनों में भी आते रहते है। प्रति रविवार यहां बड़ी तादाद में दूरदराज से श्रद्धालु देवी दर्शन व पिकनिक का आनंद लेने के लिये सपरिवार पहुंचते है।



...देवी जिसने भगवान श्रीकृष्ण की रक्षा की

नैसर्गिक सौन्दर्य से लकदक विशाल पर्वत पर स्थित नन्दनी माता तीर्थ पर मुख्य मंदिर में देवी नन्दनी की श्वेत वर्णा पाषाण प्रतिमा है जिसकी सौम्यता हर किसी जन को प्रथम दर्शन से ही सम्मोहित करती प्रतीत होती है। सिंहवाहिनी अष्टभुजाधारी मां नन्दनी के प्रति यहां की आदिम संस्कृति में बेहद आस्थाएं है।

मां नन्दनी के बारे में कहा जाता है कि यह वही देवी है जो द्वापर युग में यशोदा के गर्भ से उत्पन्न हुई व जिसे कंस ने देवकी की आठवीं संतान समझकर मारने का यत्न किया था। कंस के हाथों से मुक्त होकर यह देवी आकाश मार्ग से यहां इस पर्वत पर आकर स्थापित हुई। नन्दा नामक इसी देवी का उल्लेख दुर्गा सप्तशती के ग्यारहवें अध्याय के 42 वें श्लोक में दृष्टव्य है।

''नन्दगोपगृहे जाता, यशोदा गर्भ संभवा,

ततस्तौ नाशयिष्यामि विंध्याचल निवासिनी ।।

साथ ही दुर्गा सप्तशती के मूर्तिरहस्य प्रकरण में देवी की अंगभूता छ: देवियों में नंदा देवी को ही सबसे पहले उल्लिखित किया गया है।

''ओम नन्दा भगवती नाम या भविष्यती नन्दजा,

स्तुता सा पूजिता भवत्या वशीकुर्याज्जगत्रयम्।।

आदिवासियों के प्राचीन गरबों और गीतों में आज भी इस देवी की प्राचीनता का बखान प्रमुखता से प्राप्त होता है।


शिव व शक्ति का श्रद्घाधाम

नन्दनी माता मुख्य मंदिर के अलावा इस स्थान पर भैरवजी मंदिर और नंदेश्वर शिवालय भी स्थित है जिनके प्रति भी श्रद्धालु ओं में अगाध आस्थाएं है। नन्दनी माता मंदिर से सटे हुए भैरवजी मंदिर में भी बांके देव भैरव की चित्ताकर्षक प्रतिमा है इसी तरह कुछ दूरी पर बिल्ववृक्षों से घिरे नंदेश्वर शिवालय में भी देवी पार्वती प्रतिमा के अलावा विशाल शिवलिंग इस स्थान की महत्ता को द्विगुणित करता हुआ इसे शिवशक्ति धाम के रूप में प्रतिष्ठापित करता है।



Conclusion:चमत्कारिक चट्टानें

नन्दनी माता मंदिर के पृष्ठ भाग में कुछ चमत्कारिक चट्टानें भी विद्यमान है। इन विशाल चट्टानों की विशेषता है कि इनकों पत्थर से पीटने पर इनसे ताम्र, लोह व अन्य धातु के बर्तन बजाने की सी ध्वनि उत्पन्न होती है। ये चट्टानें है तो पाषाण स्वरूपा परंतु किसी वाद्य यंत्र सरीखा व्यवहार करती है। कुदरत के करिश्में की प्रतीक इन चट्टानों को पीटने पर निकलने वाली सुरीली ध्वनियां यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को बेहद आकर्षित करती है। सर्वाधिक आश्चर्य की बात तो यह है कि इन चार चट्टानों के अलावा आसपास इस तरह की अनेक चट्टानें हैं परंतु उनको बजाने पर इस तरह की ध्वनियां उत्पन्न नहीं होती हैं।



देवी गरबा खेलने आती थी

मान्‍यता है कि पहले देवी नन्दनी नवरात्रि पर्व दौरान पहाड से उतरकर सामान्‍य महिला का रूप धारण कर गरबा खेलने के लिए आती थी परंतु जाति विशेष के एक व्‍यक्ति द्वारा देवी के भेद को जान लिए जाने के कारण देवी ने उसे श्राप दिया जिसके कारण आज तक बड़ोदिया गांव में उस जाति का एक भी परिवार नहीं हैl शिक्षक और माता के परम भक्त प्रदीप पाठक बताते हैं कि आज यह स्थान गुजरात के पावागढ़ की तरह ख्याति प्राप्त कर रहा है। यहां जो भी व्यक्ति अपनी श्रद्धा के साथ मन्नत मांगता है देवी मां उसे जरूर पूरी करती है।

बाइट.... प्रदीप पाठक शिक्षक
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