बांसवाड़ा. जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूरी पर बड़ोदिया कस्बे के दक्षिण पश्चिम में अरावली पर्वत श्रृंखला की ऊंचाईयों पर स्थित देवी तीर्थ नंदिनी माता का धाम है. विशाल पर्वत पर स्थित होने पर भी श्रद्धालुओं के लिए यह स्थान अब दुर्गम नहीं है, क्योंकि पहाड़ की तलहटी से ही पश्चिम और पूर्व भाग में 500-500 व्यवस्थित सीढ़ियां बनाई जा चुकी हैं. इस विशाल पहाड़ी पर चढ़ने के रोमांचक अनुभव के साथ ही जिले की सरहदों को उंचाई से देखने के लिए श्रद्धालु यहां नवरात्रि, शिवरात्रि और अवकाश के दिनों के अलावा आम दिनों में भी आते रहते है.
देवी ने भगवान श्रीकृष्ण की रक्षा की थी
मां नंदिनी के बारे में कहा जाता है कि यह वही देवी है, जो द्वापर युग में यशोदा के गर्भ से उत्पन्न हुई थी. जिसे कंस ने देवकी की आठवीं संतान समझकर मारने का यत्न किया था. कंस के हाथों से मुक्त होकर यह देवी आकाश मार्ग से यहां इस पर्वत पर आकर स्थापित हुई. नन्दा नामक इसी देवी का उल्लेख दुर्गा सप्तशती के ग्यारहवें अध्याय के 42 वें श्लोक में अंकित है.
'नन्दगोपगृहे जाता, यशोदा गर्भ संभवा |
ततस्तौ नाशयिष्यामि विंध्याचल निवासिनी ।।
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साथ ही दुर्गा सप्तशती के मूर्तिरहस्य प्रकरण में देवी की अंगभूता छ: देवियों में नंदा देवी को ही सबसे पहले उल्लिखित किया गया है. आदिवासियों के प्राचीन गरबों और गीतों में आज भी इस देवी की प्राचीनता का बखान प्रमुखता से प्राप्त होता है.
''ओम नन्दा भगवती नाम या भविष्यती नन्दजा,
स्तुता सा पूजिता भवत्या वशीकुर्याज्जगत्रयम्।।
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शिव और शक्ति का श्रद्घाधाम
नंदिनी माता मुख्य मंदिर के अलावा इस स्थान पर भैरवजी मंदिर और नंदेश्वर शिवालय भी स्थित है. जिनके प्रति भी श्रद्धालु ओं में अगाध आस्थाएं है. नंदिनी माता मंदिर से सटे हुए भैरवजी मंदिर में भी बांके देव भैरव की चित्ताकर्षक प्रतिमा है. इसी तरह कुछ दूरी पर बिल्ववृक्षों से घिरे नंदेश्वर शिवालय में भी देवी पार्वती प्रतिमा के अलावा विशाल शिवलिंग इस स्थान की महत्ता को बढ़ा देता है.
चमत्कारिक हैं यहां की चट्टानें
नंदिनी माता मंदिर के पृष्ठ भाग में कुछ चमत्कारिक चट्टानें भी विद्यमान है. इन विशाल चट्टानों की विशेषता है कि इनकों पत्थर से पीटने पर इनसे ताम्र, लोह और अन्य धातु के बर्तन बजाने की सी ध्वनि उत्पन्न होती है. ये चट्टानें है तो पाषाण स्वरूपा परंतु किसी वाद्य यंत्र सरीखा व्यवहार करती है. कुदरत के करिश्में की प्रतीक इन चट्टानों को पीटने पर निकलने वाली सुरीली ध्वनियां यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को बेहद आकर्षित करती है. सर्वाधिक आश्चर्य की बात तो यह है कि इन चार चट्टानों के अलावा आसपास इस तरह की अनेक चट्टानें हैं, परंतु उनको बजाने पर इस तरह की ध्वनियां उत्पन्न नहीं होती हैं.
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देवी गरबा खेलने आती हैं यहां
मान्यता है कि पहले देवी नंदिनी नवरात्रि पर्व के दौरान पहाड़ से उतरकर सामान्य महिला का रूप धारण कर गरबा खेलने के लिए आती थी, परंतु जाति विशेष के एक व्यक्ति ने देवी के भेद को जान लिए जाने के कारण देवी ने उसे श्राप दिया. जिसके कारण आज तक बड़ोदिया गांव में उस जाति का एक भी परिवार नहीं है. शिक्षक और माता के परम भक्त प्रदीप पाठक बताते हैं कि आज यह स्थान गुजरात के पावागढ़ की तरह ख्याति प्राप्त कर रहा है. यहां जो भी व्यक्ति अपनी श्रद्धा के साथ मन्नत मांगता है, देवी मां उसे जरूर पूरी करती है.