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बांसवाड़ा: जोलाना की अनूठी परंपरा, यहां खेली जाती है कंडा मार होली

बांसवाड़ा जिले के जोलाना गांव में सदियों से चली आ रही कंडा मार होली खेली जाती है. इस परंपरा के अंतर्गत लोग सज-धज कर मंदिर पहुंचते हैं जहां पहले दो लोगों के बीच एक दूसरे को कंडे मारे जाते हैं.

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जोलाना की अनूठी परंपरा
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Published : Mar 13, 2020, 3:24 AM IST

बांसवाड़ा. त्योहारों को लेकर हमारे देश में अलग-अलग रीति रिवाज और परम्पराएं निभाई जाती हैं. वहीं फाल्गुन के महीने में कही लठमार होली खेली जाती है तो कहीं पत्थर मार होली खेली जाती है. बता दें कि एक जगह कंडा मार होली खेली जाती है. बच्चें से बुजुर्ग तक अपने-अपने प्रतिद्वंदी पर कंडे से निशाना साधते हैं. बांसवाड़ा जिले के जोलाना गांव में सदियों से चल रही इस परंपरा के अंतर्गत लोग सज धज कर मंदिर पहुंचते हैं. जहां पहले दो लोगों के बीच एक दूसरे को कंडे मारे जाते हैं.

जोलाना की अनूठी परंपरा

इसके बाद यह राड एक से अधिक लोगों के बीच पहुंच जाता है और जिसे जो मौका मिला आनन-फानन में निशाना साधा नजर आता है. यहीं नहीं महिलाएं प्रत्येक प्रकार का नृत्य करती है जिसे स्थानीय भाषा में घूमर कहा जाता है. होली के तीसरे दिन जिला मुख्यालय से करीब 35 घंटे दूर जोलाना गांव में होने वाली इस कंडो की राड को देखने के लिए आसपास के गांव से भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं. उसी परंपरा को निभाते हुए गुरुवार को गांव के बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक सज-धज कर लक्ष्मी नारायण मंदिर पहुंचे है.

पढ़ें: बांसवाड़ा: बाकियात के बोझ तले दबा एवीएनएल, अब उतारे जा रहे ट्रांसफार्मर और लाइन

यहां बच्चों के ग्रुप से इस अनोखी राड की शुरुआत हुई, देखते ही देखते और भी ग्रुप मैदान में कूद पड़े और एक दूसरे को कंडे मारने लगे. वहीं इस मौके पर उपरांत महिलाओं ने लक्ष्मी नारायण मंदिर प्रांगण में विशेष घूमर की प्रस्तुति देकर अपने परिवार में खुशहाली की कामना की.

साथ ही ढूंढ उत्सव का आयोजन कर पपड़ी वितरित की गई. प्रशासनिक अधिकारी डॉ. पीयूष पंड्या के अनुसार, इस राड को देखने के लिए सैकड़ों लोग पहुंचते हैं. कंडो की राड़ का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें कोई चोट नहीं लगती और शारीरिक श्रम भी हो जाता है. ढूंढ उत्सव से सामाजिक एकता का ताना-बाना और भी मजबूत होता है. यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है जिसमें समाज के हर तबके के व्यक्ति सहभागिता निभाते है.

बांसवाड़ा. त्योहारों को लेकर हमारे देश में अलग-अलग रीति रिवाज और परम्पराएं निभाई जाती हैं. वहीं फाल्गुन के महीने में कही लठमार होली खेली जाती है तो कहीं पत्थर मार होली खेली जाती है. बता दें कि एक जगह कंडा मार होली खेली जाती है. बच्चें से बुजुर्ग तक अपने-अपने प्रतिद्वंदी पर कंडे से निशाना साधते हैं. बांसवाड़ा जिले के जोलाना गांव में सदियों से चल रही इस परंपरा के अंतर्गत लोग सज धज कर मंदिर पहुंचते हैं. जहां पहले दो लोगों के बीच एक दूसरे को कंडे मारे जाते हैं.

जोलाना की अनूठी परंपरा

इसके बाद यह राड एक से अधिक लोगों के बीच पहुंच जाता है और जिसे जो मौका मिला आनन-फानन में निशाना साधा नजर आता है. यहीं नहीं महिलाएं प्रत्येक प्रकार का नृत्य करती है जिसे स्थानीय भाषा में घूमर कहा जाता है. होली के तीसरे दिन जिला मुख्यालय से करीब 35 घंटे दूर जोलाना गांव में होने वाली इस कंडो की राड को देखने के लिए आसपास के गांव से भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं. उसी परंपरा को निभाते हुए गुरुवार को गांव के बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक सज-धज कर लक्ष्मी नारायण मंदिर पहुंचे है.

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यहां बच्चों के ग्रुप से इस अनोखी राड की शुरुआत हुई, देखते ही देखते और भी ग्रुप मैदान में कूद पड़े और एक दूसरे को कंडे मारने लगे. वहीं इस मौके पर उपरांत महिलाओं ने लक्ष्मी नारायण मंदिर प्रांगण में विशेष घूमर की प्रस्तुति देकर अपने परिवार में खुशहाली की कामना की.

साथ ही ढूंढ उत्सव का आयोजन कर पपड़ी वितरित की गई. प्रशासनिक अधिकारी डॉ. पीयूष पंड्या के अनुसार, इस राड को देखने के लिए सैकड़ों लोग पहुंचते हैं. कंडो की राड़ का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें कोई चोट नहीं लगती और शारीरिक श्रम भी हो जाता है. ढूंढ उत्सव से सामाजिक एकता का ताना-बाना और भी मजबूत होता है. यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है जिसमें समाज के हर तबके के व्यक्ति सहभागिता निभाते है.

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