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बांसवाड़ा जिला प्रमुख का किसके सिर सजेगा ताज, कांग्रेस और भाजपा में कांटे की टक्कर - बांसवाड़ा पंचायत राज चुनाव

बांसवाड़ा में इस बार पंचायत समितियों और जिला प्रमुख पद के चुनाव काफी रोचक दिखाई दे सकते हैं. भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल के अधिकांश सरपंच अपनी विचारधारा के होने का दावा कर रहे हैं.

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बांसवाड़ा पंचायत राज चुनाव
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Published : Feb 3, 2020, 1:35 PM IST

बांसवाड़ा. पंचायत राज चुनाव का पहला चरण खत्म होने के साथ ही भाजपा और कांग्रेस की नजर अब पंचायत समिति और जिला परिषद का ताज हासिल करने पर टिकी है. जिला प्रमुख पद पर दो दशक से कांग्रेस काबिज है. इस बार दोनों ही दलों के दावों पर विश्वास करें तो पंचायत समितियों और जिला प्रमुख पद के चुनाव काफी रोचक दिखाई दे सकते हैं. दोनों ही दल के अधिकांश सरपंच अपनी विचारधारा के होने का दावा कर रहे हैं. इन दावों पर जाएं तो इस बार जिला प्रमुख पद के लिए कांटे का मुकाबला देखा जा सकता है.

बांसवाड़ा पंचायत राज चुनाव

अब तक के पंचायत राज चुनावों के नतीजों पर नजर डालें तो 12 में से 9 बार कांग्रेस का जिला प्रमुख रहा है. साल 1961 से 65 तक जनता दल के केशवचंद्र भ्राता और साल 1988 से 1971 तक इसी पार्टी के जीथिंग भाई 3 साल तक जिला प्रमुख की कमान संभाले रहे. भारतीय जनता पार्टी केवल साल 1995 से 2000 तक लक्ष्मी निनामा के रूप में अपना जिला प्रमुख बना पाई. उसके बाद से भाजपा इस पद को लेकर वनवास ही काट रही है.

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साल 2000 के बाद से भाजपा कभी भी जिला प्रमुख पद पर नहीं पहुंच पाई. सत्ता का ताज कांग्रेस के हाथ में ही रहा या यूं कहे कि इन दो दशकों में सत्ता की चाबी मालवीय परिवार के हाथ में रही और बागी दौरा विधायक महेंद्र जीत सिंह मालवीय का परिवार इस पद पर बना हुआ है. साल 2000 से 2009 तक महेंद्र जीत सिंह मालवीय जिला प्रमुख रहे और इसके बाद साल 2009 से अब तक उनकी पत्नी रेशम मालवीया इस पद पर काबिज है. वहीं आगामी चुनाव में भी रेशम मालवीय को इस पद के लिए प्रमुख दावेदार माना जा रहा है. हालांकि पूर्व विधायक कांता भील और पूर्व संसदीय सचिव नानालाल निनामा का नाम भी चर्चा में हैं. लेकिन रेशम मालवीय जिला प्रमुख की दौड़ में फिलहाल सबसे आगे नजर आ रही है.

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नगर निकाय चुनाव में पूर्व मंत्री विधायक महेंद्र जीत सिंह मालवीय और जनजाति मंत्री अर्जुन सिंह बामनिया की एकता से पार्टी भले ही बांसवाड़ा नगर परिषद में अपना वोट बनाने में कामयाब रही. लेकिन पंचायत राज चुनाव में यह एकता बनी रह पाएगी इसे लेकर संशय है. जहां बामनिया अपने गुट के किसी व्यक्ति को आगे लाना चाहेंगे, वहीं मालवीय सत्ता का ताज अपने हाथ में रखना चाहेंगे. इस गुटबाजी पर भाजपा की भी नजर रहेगी. वैसे भी सरपंचों की संख्या बल के आधार पर मुकाबला कांटे का माना जा रहा है ऐसे में भाजपा का सूखापन खत्म होने के आसार माने जा रहे हैं.

पढ़ेंः बांसवाड़ाः 2 पिकअप गाड़ियों के बीच जोरदार टक्कर, 2 महिलाओं समेत 3 की मौत, 6 अन्य घायल

जिले में 11 पंचायत समितियां होने के साथ ही 416 ग्राम पंचायतें हैं. इस बार पंचायत समिति प्रधान और जिला प्रमुख के चुनाव में सीधे तौर पर सरपंच और उपसरपंचओं की भूमिका महत्वपूर्ण होने वाली है. कुल मिलाकर सरपंचों पर ही पूरा दारोमदार रहने की उम्मीद है. भारतीय जनता पार्टी के जिला अध्यक्ष गोविंद सिंह राव के अनुसार इस बार भाजपा का यह वनवास खत्म होने की उम्मीद ज्यादा नजर आ रही है.

पढ़ेंः जयपुरः झोपड़ी में आग लगने से जिंदा जला किसान

गोविंद सिंह राव का कहना है कि 190 से अधिक सरपंच हमारी पार्टी के चुनकर आए हैं. इसके अलावा भी कई स्थानों पर यह राजनीतिक लोग भी सरपंच बने हैं. उनका हमें साथ मिल सकता है. इसके अलावा राज्य सरकार के कार्यकलाप और मोदी सरकार के कामकाज का भी हमें अवश्य लाभ मिलेगा. वहीं जनजाति मंत्री बामनिया का दावा है कि सरपंचों में 80 फिसदी लोग उनके चुनकर आए हैं और सभी पंचायत समिति और जिला प्रमुख पद पर एक बार फिर पार्टी परचम फहराएगी.

बांसवाड़ा. पंचायत राज चुनाव का पहला चरण खत्म होने के साथ ही भाजपा और कांग्रेस की नजर अब पंचायत समिति और जिला परिषद का ताज हासिल करने पर टिकी है. जिला प्रमुख पद पर दो दशक से कांग्रेस काबिज है. इस बार दोनों ही दलों के दावों पर विश्वास करें तो पंचायत समितियों और जिला प्रमुख पद के चुनाव काफी रोचक दिखाई दे सकते हैं. दोनों ही दल के अधिकांश सरपंच अपनी विचारधारा के होने का दावा कर रहे हैं. इन दावों पर जाएं तो इस बार जिला प्रमुख पद के लिए कांटे का मुकाबला देखा जा सकता है.

बांसवाड़ा पंचायत राज चुनाव

अब तक के पंचायत राज चुनावों के नतीजों पर नजर डालें तो 12 में से 9 बार कांग्रेस का जिला प्रमुख रहा है. साल 1961 से 65 तक जनता दल के केशवचंद्र भ्राता और साल 1988 से 1971 तक इसी पार्टी के जीथिंग भाई 3 साल तक जिला प्रमुख की कमान संभाले रहे. भारतीय जनता पार्टी केवल साल 1995 से 2000 तक लक्ष्मी निनामा के रूप में अपना जिला प्रमुख बना पाई. उसके बाद से भाजपा इस पद को लेकर वनवास ही काट रही है.

पढ़ेंः आग का गोला बना टैंकर, बड़ा हादसा होते-होते टला

साल 2000 के बाद से भाजपा कभी भी जिला प्रमुख पद पर नहीं पहुंच पाई. सत्ता का ताज कांग्रेस के हाथ में ही रहा या यूं कहे कि इन दो दशकों में सत्ता की चाबी मालवीय परिवार के हाथ में रही और बागी दौरा विधायक महेंद्र जीत सिंह मालवीय का परिवार इस पद पर बना हुआ है. साल 2000 से 2009 तक महेंद्र जीत सिंह मालवीय जिला प्रमुख रहे और इसके बाद साल 2009 से अब तक उनकी पत्नी रेशम मालवीया इस पद पर काबिज है. वहीं आगामी चुनाव में भी रेशम मालवीय को इस पद के लिए प्रमुख दावेदार माना जा रहा है. हालांकि पूर्व विधायक कांता भील और पूर्व संसदीय सचिव नानालाल निनामा का नाम भी चर्चा में हैं. लेकिन रेशम मालवीय जिला प्रमुख की दौड़ में फिलहाल सबसे आगे नजर आ रही है.

पढ़ेंः बांसवाड़ाः 2 अलग-अलग दुर्घटनाओं में 3 युवकों की मौत, 4 घायल

नगर निकाय चुनाव में पूर्व मंत्री विधायक महेंद्र जीत सिंह मालवीय और जनजाति मंत्री अर्जुन सिंह बामनिया की एकता से पार्टी भले ही बांसवाड़ा नगर परिषद में अपना वोट बनाने में कामयाब रही. लेकिन पंचायत राज चुनाव में यह एकता बनी रह पाएगी इसे लेकर संशय है. जहां बामनिया अपने गुट के किसी व्यक्ति को आगे लाना चाहेंगे, वहीं मालवीय सत्ता का ताज अपने हाथ में रखना चाहेंगे. इस गुटबाजी पर भाजपा की भी नजर रहेगी. वैसे भी सरपंचों की संख्या बल के आधार पर मुकाबला कांटे का माना जा रहा है ऐसे में भाजपा का सूखापन खत्म होने के आसार माने जा रहे हैं.

पढ़ेंः बांसवाड़ाः 2 पिकअप गाड़ियों के बीच जोरदार टक्कर, 2 महिलाओं समेत 3 की मौत, 6 अन्य घायल

जिले में 11 पंचायत समितियां होने के साथ ही 416 ग्राम पंचायतें हैं. इस बार पंचायत समिति प्रधान और जिला प्रमुख के चुनाव में सीधे तौर पर सरपंच और उपसरपंचओं की भूमिका महत्वपूर्ण होने वाली है. कुल मिलाकर सरपंचों पर ही पूरा दारोमदार रहने की उम्मीद है. भारतीय जनता पार्टी के जिला अध्यक्ष गोविंद सिंह राव के अनुसार इस बार भाजपा का यह वनवास खत्म होने की उम्मीद ज्यादा नजर आ रही है.

पढ़ेंः जयपुरः झोपड़ी में आग लगने से जिंदा जला किसान

गोविंद सिंह राव का कहना है कि 190 से अधिक सरपंच हमारी पार्टी के चुनकर आए हैं. इसके अलावा भी कई स्थानों पर यह राजनीतिक लोग भी सरपंच बने हैं. उनका हमें साथ मिल सकता है. इसके अलावा राज्य सरकार के कार्यकलाप और मोदी सरकार के कामकाज का भी हमें अवश्य लाभ मिलेगा. वहीं जनजाति मंत्री बामनिया का दावा है कि सरपंचों में 80 फिसदी लोग उनके चुनकर आए हैं और सभी पंचायत समिति और जिला प्रमुख पद पर एक बार फिर पार्टी परचम फहराएगी.

Intro:बांसवाड़ा। पंचायत राज चुनाव का पहला चरण निपटने के साथ ही भाजपा और कांग्रेस की नजर अब पंचायत समिति और जिला परिषद का ताज हासिल करने पर टिकी है। जिला प्रमुख पद पर दो दशक से कांग्रेस काबिज है। इस बार दोनों ही दलों के दावों पर विश्वास करें तो पंचायत समितियों और जिला प्रमुख पद के चुनाव काफी रोचक दिखाई दे सकते हैं। दोनों ही दल अधिकांश सरपंच अपनी विचारधारा के होने का दावा कर रहे हैं। इन अदाओं पर जाएं तो इस बार जिला प्रमुख पद के लिए कांटे का मुकाबला देखा जा सकता है ।


Body:अब तक के पंचायत राज चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो 12 में से 9 बार कांग्रेस का जिला प्रमुख रहा है । 1961 से 65 तक जनता दल के केशवचंद्र भ्राता और 1988 से 1971 इसी पार्टी के जीथिंग भाई 3 साल तक जिला प्रमुख की कमान संभाले रहे। भारतीय जनता पार्टी केवल 1995 से वर्ष 2000 तक लक्ष्मी निनामा के रूप में अपना जिला प्रमुख बना पाई। उसके बाद से भाजपा इस पद को लेकर वनवास ही काट रही है।

मालवीय परिवार का कब्जा

वर्ष 2000 के बाद से भाजपा कभी भी जिला प्रमुख पद पर नहीं पहुंच पाई और सत्ता का ताज कांग्रेस के हाथ में रहा। या यूं कहे कि इन दो दशकों में सत्ता की चाबी मालवीय परिवार के हाथ में रही और बागीदौरा विधायक महेंद्र जीत सिंह मालवीय का परिवार इस पद पर बना हुआ है। वर्ष 2000 से वर्ष 2009 तक महेंद्र जीत सिंह मालवीय जिला प्रमुख रहे और इसके बाद 2009 से अब तक उनकी पत्नी रेशम मालवीया इस पद पर काबिज है। वहीं आगामी चुनाव में भी रेशम मालवीय को इस पद के लिए प्रमुख दावेदार माना जा रहा है। हालांकि पूर्व विधायक कांता भील और पूर्व संसदीय सचिव नानालाल निनामा का नाम भी चर्चा में है लेकिन रेशम मालवीय जिला प्रमुख की दौड़ में फिलहाल सबसे आगे नजर आ रही है।


Conclusion:गुटबाजी पर रहेगी भाजपा की नजर

नगर निकाय चुनाव में पूर्व मंत्री विधायक महेंद्रजीत सिंह मालवीय और जनजाति मंत्री अर्जुन सिंह बामनिया की एकता से पार्टी भले ही बांसवाड़ा नगर परिषद में अपना वोट बनाने में कामयाब रही लेकिन पंचायत राज चुनाव में यह एकता बनी रह पाएगी इसे लेकर संशय है। जहां बामणिया अपने गुट के किसी व्यक्ति को आगे लाना चाहेंगे वही मालवीय सत्ता का ताज अपने हाथ में रखना चाहेंगे। इस गुटबाजी पर भाजपा की नजर रहेगी। वैसे भी सरपंचों की संख्या बल के आधार पर मुकाबला कांटे का माना जा रहा है ऐसे में भाजपा का सूखापन खत्म होने के आसार माने जा रहे हैं।

आधे आधे सरपंच और वार्ड पंच

जिले में 11 पंचायत समितियां होने के साथ ही 416 ग्राम पंचायतें हैं। इस बार पंचायत समिति प्रधान और जिला प्रमुख के चुनाव में सीधे तौर पर सरपंच और उपसरपंच ओं की भूमिका महत्वपूर्ण होने वाली है। कुल मिलाकर सरपंचों पर ही पूरा दारोमदार रहने की उम्मीद है। भारतीय जनता पार्टी के जिला अध्यक्ष गोविंद सिंह राव के अनुसार इस बार हमारा वनवास खत्म होने के चांसेस ज्यादा नजर आ रहे हैं। 190 से अधिक सरपंच हमारी पार्टी के चुनकर आए हैं। इसके अलावा भी कई स्थानों पर यह राजनीतिक लोग भी सरपंच बने हैं। उनका हमें साथ मिल सकता है। इसके अलावा राज्य सरकार के कार्यकलाप और मोदी सरकार के कामकाज का भी हमें अवश्य लाभ मिलेगा। वही जनजाति मंत्री बामणिया का दावा है कि सरपंचों में 80% लोग हमारे चुनकर आए हैं और सभी पंचायत समिति और जिला प्रमुख पद पर एक बार फिर पार्टी परचम फहराएगी।

बाइट....... गोविंद सिंह राव जिला अध्यक्ष भाजपा
.....…. अर्जुन सिंह बामनिया जनजाति मंत्री राजस्थान सरकार
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