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बांसवाड़ा में मोदी फैक्टर ही नहीं...कांग्रेस की हार का ये भी है मुख्य कारण - बांसवाड़ा

पूरे देश में मोदी लहर पर सवार होकर भाजपा ने अच्छा खासा जनमत हासिल कर फिर एक बार सरकार बना ली है. ऐसे में राजस्थान की जनता ने भी दिल खोलकर भाजपा को 25 की 25 सीटें दे दी. वहीं अगर बांसवाड़ा-डूंगरपुर सीट की बात करें तो यहां मोदी फैक्टर के अलावा गुटबाजी की वजह से भी कांग्रेस गच्चा खा गई, तभी तो जिलाध्यक्ष के बूथ पर ही कांग्रेस पिछड़ गई.

कांग्रेस की हार का मुख्य कारण
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Published : May 28, 2019, 7:48 PM IST

बांसवाड़ा. लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद अब तक कांग्रेस नेता अपनी हताशा से नहीं उबर पाए हैं. बांसवाड़ा में कांग्रेस प्रत्याशी ताराचंद भगोरा को भाजपा प्रत्याशी कनकमल कटारा के हाथों बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा. बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी करीब 3 लाख 6 हजार वोटों से जीतने में कामयाब रहे.

बांसवाड़ा में मोदी फैक्टर ही नहीं...कांग्रेस की हार का ये भी मुख्य कारण है

कांग्रेस की न्याय योजना से थी प्रत्याशियों को उम्मीद
हार के बाद से कांग्रेस नेता जनता को अपना चेहरा नहीं दिखा पा रहे हैं. इसका कारण यह है कि चुनाव परिणाम से पहले पार्टी नेता राहुल गांधी की बेणेश्वर में हुई सभा और पार्टी की न्याय योजना ने नेताओं को नई उम्मीदों से भर रखा था. इसे लेकर कांग्रेस नेता 50000 से लेकर 100000 तक के अंतराल से जीत का दावा कर रहे थे. इसके अलावा मोदी सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी की भी उम्मीद पाले हुए थे. चुनाव परिणामों ने कांग्रेस नेताओं की सारी उम्मीदें धराशायी कर दी. पार्टी के नेता जनता में मोदी के प्रति चल रहे अंडर करंट को भाप नहीं पाए.

रिकॉर्ड मतों से हार के पीछे गुटबाजी बड़ा कारण
वहीं रिकॉर्ड मतों से हार के पीछे सबसे बड़ा कारण स्थानीय नेताओं के बीच गुटबाजी को माना जा रहा है. पार्टी ने ताराचंद भगोरा का टिकट फाइनल करने के साथ ही अंदरूनी तौर पर यह तय हो गया कि पार्टी किसी भी कीमत पर जीत का सेहरा नहीं बांध पाएगी. क्योंकि डूंगरपुर-बांसवाड़ा में बागीदौरा विधायक महेंद्र जीत सिंह मालवीय का खेमा बड़ा प्रभावी है. विधानसभा चुनाव के बाद यह गुटबाजी सामने भी आ गई थी. चाहे बांसवाड़ा जिला अध्यक्ष चांदमल जैन हो या डूंगरपुर जिला अध्यक्ष दिनेश खोडनिया दोनों ही मालवीय के खेमे के अधिक नजदीक बताए जाते हैं. पता चला है कि भगोरा का टिकट फाइनल होने के साथ ही इस गुट ने चुनाव प्रचार से दूरियां बना रखी थी.

गहलोत दो बार बांसवाड़ा पहुंचे गहलोत..लेकिन परिणाम सबके सामने
चुनाव से पहले पार्टी कार्यालय में बैठक में भी यह बात खुलकर सामने आ गई थी. हालत यह थी कि 15 दिन पहले तक कार्यकर्ता जनता के बीच नहीं जा पाए थे. खुद मालवीय ने भगोरा के सामने बांसवाड़ा का नंबर आने पर डूंगरपुर के कार्यकर्ताओं के द्वारा धोखा दिए जाने की शिकायत की थी. कुल मिलाकर कांग्रेस के एक बड़े धड़े ने चुनाव प्रचार कार्य से खुद को दूर ही रखा हुआ था. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दो बार बांसवाड़ा पहुंचे. लेकिन, वह भी इन दोनों के बीच एका नहीं करा पाए. इसका नतीजा भी चुनाव परिणाम में सामने आ गया.

पार्टी जिलाध्यक्ष भी अपने बूथ पर नहीं जीता पाए
जहां आम कार्यकर्ता तो दूर की बात दोनों ही पार्टी जिलाध्यक्ष अपने-अपने बूथों से भी पार्टी को हारने से नहीं बचा पाए. बांसवाड़ा जिला अध्यक्ष जैन बड़ोदिया स्थित अपने बूथ से पार्टी को बढ़त दिलाने में नाकाम रहे. यहां से कांग्रेस को 137 वोट मिले. जबकि भाजपा को 429 लोगों का समर्थन हासिल हुआ. कुल मिलाकर बड़ोदिया के 4 बूथों में से कांग्रेस को मात्र 916 वोट मिलें. जबकि भाजपा को 1894 वोट मिले. इसी प्रकार सांगवाड़ा के बूथ नंबर 118 पर कांग्रेस प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहे. 866 मतों में से कनकमल कटारा को सबसे ज्यादा 544 तो बीटीपी को 197 वोट मिले. जबकि कांग्रेस यहां से मात्र 98 वोट ला पाई.

जनजाति मंत्री के क्षेत्र से 63 हजार वोटों के पिछड़ी कांग्रेस
हालत यह है कि जनजाति मंत्री अर्जुन सिंह बामनिया विधानसभा चुनाव में 18 हजार वोटों से जीते थे. लेकिन, लोकसभा चुनाव में उनके विधानसभा क्षेत्र से पार्टी 63 हजार वोटों के अंतर से पिछड़ गई. वहीं बागीदौरा विधायक मालवीय के बूथ पर कांग्रेस जीत गई, लेकिन विधानसभा क्षेत्र से करीब 9000 वोटों से भाजपा प्रत्याशी के मुकाबले पिछड़ गई. अंदरूनी तौर पर हार का बड़ा कारण पार्टी में चल रही खींचतान को भी माना जा रहा है. इसे देखते हुए अगले कुछ दिनों में दोनों ही जिलों में संगठन में फेरबदल की आशंका जताई जा रही है. पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं की नजर इस फेरबदल पर टिकी है.

बांसवाड़ा. लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद अब तक कांग्रेस नेता अपनी हताशा से नहीं उबर पाए हैं. बांसवाड़ा में कांग्रेस प्रत्याशी ताराचंद भगोरा को भाजपा प्रत्याशी कनकमल कटारा के हाथों बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा. बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी करीब 3 लाख 6 हजार वोटों से जीतने में कामयाब रहे.

बांसवाड़ा में मोदी फैक्टर ही नहीं...कांग्रेस की हार का ये भी मुख्य कारण है

कांग्रेस की न्याय योजना से थी प्रत्याशियों को उम्मीद
हार के बाद से कांग्रेस नेता जनता को अपना चेहरा नहीं दिखा पा रहे हैं. इसका कारण यह है कि चुनाव परिणाम से पहले पार्टी नेता राहुल गांधी की बेणेश्वर में हुई सभा और पार्टी की न्याय योजना ने नेताओं को नई उम्मीदों से भर रखा था. इसे लेकर कांग्रेस नेता 50000 से लेकर 100000 तक के अंतराल से जीत का दावा कर रहे थे. इसके अलावा मोदी सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी की भी उम्मीद पाले हुए थे. चुनाव परिणामों ने कांग्रेस नेताओं की सारी उम्मीदें धराशायी कर दी. पार्टी के नेता जनता में मोदी के प्रति चल रहे अंडर करंट को भाप नहीं पाए.

रिकॉर्ड मतों से हार के पीछे गुटबाजी बड़ा कारण
वहीं रिकॉर्ड मतों से हार के पीछे सबसे बड़ा कारण स्थानीय नेताओं के बीच गुटबाजी को माना जा रहा है. पार्टी ने ताराचंद भगोरा का टिकट फाइनल करने के साथ ही अंदरूनी तौर पर यह तय हो गया कि पार्टी किसी भी कीमत पर जीत का सेहरा नहीं बांध पाएगी. क्योंकि डूंगरपुर-बांसवाड़ा में बागीदौरा विधायक महेंद्र जीत सिंह मालवीय का खेमा बड़ा प्रभावी है. विधानसभा चुनाव के बाद यह गुटबाजी सामने भी आ गई थी. चाहे बांसवाड़ा जिला अध्यक्ष चांदमल जैन हो या डूंगरपुर जिला अध्यक्ष दिनेश खोडनिया दोनों ही मालवीय के खेमे के अधिक नजदीक बताए जाते हैं. पता चला है कि भगोरा का टिकट फाइनल होने के साथ ही इस गुट ने चुनाव प्रचार से दूरियां बना रखी थी.

गहलोत दो बार बांसवाड़ा पहुंचे गहलोत..लेकिन परिणाम सबके सामने
चुनाव से पहले पार्टी कार्यालय में बैठक में भी यह बात खुलकर सामने आ गई थी. हालत यह थी कि 15 दिन पहले तक कार्यकर्ता जनता के बीच नहीं जा पाए थे. खुद मालवीय ने भगोरा के सामने बांसवाड़ा का नंबर आने पर डूंगरपुर के कार्यकर्ताओं के द्वारा धोखा दिए जाने की शिकायत की थी. कुल मिलाकर कांग्रेस के एक बड़े धड़े ने चुनाव प्रचार कार्य से खुद को दूर ही रखा हुआ था. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दो बार बांसवाड़ा पहुंचे. लेकिन, वह भी इन दोनों के बीच एका नहीं करा पाए. इसका नतीजा भी चुनाव परिणाम में सामने आ गया.

पार्टी जिलाध्यक्ष भी अपने बूथ पर नहीं जीता पाए
जहां आम कार्यकर्ता तो दूर की बात दोनों ही पार्टी जिलाध्यक्ष अपने-अपने बूथों से भी पार्टी को हारने से नहीं बचा पाए. बांसवाड़ा जिला अध्यक्ष जैन बड़ोदिया स्थित अपने बूथ से पार्टी को बढ़त दिलाने में नाकाम रहे. यहां से कांग्रेस को 137 वोट मिले. जबकि भाजपा को 429 लोगों का समर्थन हासिल हुआ. कुल मिलाकर बड़ोदिया के 4 बूथों में से कांग्रेस को मात्र 916 वोट मिलें. जबकि भाजपा को 1894 वोट मिले. इसी प्रकार सांगवाड़ा के बूथ नंबर 118 पर कांग्रेस प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहे. 866 मतों में से कनकमल कटारा को सबसे ज्यादा 544 तो बीटीपी को 197 वोट मिले. जबकि कांग्रेस यहां से मात्र 98 वोट ला पाई.

जनजाति मंत्री के क्षेत्र से 63 हजार वोटों के पिछड़ी कांग्रेस
हालत यह है कि जनजाति मंत्री अर्जुन सिंह बामनिया विधानसभा चुनाव में 18 हजार वोटों से जीते थे. लेकिन, लोकसभा चुनाव में उनके विधानसभा क्षेत्र से पार्टी 63 हजार वोटों के अंतर से पिछड़ गई. वहीं बागीदौरा विधायक मालवीय के बूथ पर कांग्रेस जीत गई, लेकिन विधानसभा क्षेत्र से करीब 9000 वोटों से भाजपा प्रत्याशी के मुकाबले पिछड़ गई. अंदरूनी तौर पर हार का बड़ा कारण पार्टी में चल रही खींचतान को भी माना जा रहा है. इसे देखते हुए अगले कुछ दिनों में दोनों ही जिलों में संगठन में फेरबदल की आशंका जताई जा रही है. पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं की नजर इस फेरबदल पर टिकी है.

Intro:बांसवाड़ा। लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद अब तक कांग्रेस नेता अपनी हताशा से नहीं उबर पाए हैं। यहां पार्टी प्रत्याशी ताराचंद भगोरा को भाजपा प्रत्याशी कनक मल कटारा के हाथों बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा। बांसवाड़ा डूंगरपुर लोकसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी करीब 306000 मतों से जीतने में कामयाब रही। उसके बाद से कांग्रेस नेता लोगों को अपना मुंह नहीं दिखा पा रहे हैं। इसका कारण यह है कि चुनाव परिणाम से पहले पार्टी नेता राहुल गांधी की बेणेश्वर में हुई सभा और पार्टी की न्याय योजना आदि ने नेताओं को नई उम्मीदों से भर रखा था। इसे लेकर कांग्रेस नेता 50000 से लेकर 100000 तक के अंतराल से


Body:जीत का दावा कर रहे थे। इसके अलावा मोदी सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी की भी उम्मीद पाले हुए थे। चुनाव परिणामों ने कांग्रेस नेताओं की सारी उम्मीदें धराशायी कर दी। पार्टी के नेता जनता में मोदी के प्रति चल रहे अंडर करेंट को भाप नहीं पाए ।वही रिकॉर्ड मतों से हार के पीछे सबसे बड़ा कारण स्थानीय नेताओं के बीच गुटबाजी को माना जा रहा है। पार्टी द्वारा ताराचंद भगोरा का टिकट फाइनल करने के साथ ही अंदरूनी तौर पर यह तय हो गया कि पार्टी किसी भी कीमत पर जीत का सेहरा नहीं बांध पाएगी क्योंकि डूंगरपुर बांसवाड़ा में बागीदौरा विधायक महेंद्र जीत सिंह मालवीय का खेमा बड़ा प्रभावी है।


Conclusion:विधानसभा चुनाव के बाद यह गुटबाजी सामने भी आ गई थी। चाहे बांसवाड़ा जिला अध्यक्ष चांदमल जैन हो या डूंगरपुर जिला अध्यक्ष दिनेश खोडनिया दोनों ही माली के खेमे के अधिक नजदीक बताए जाते हैं। पता चला है कि भगोरा का टिकट फाइनल होने के साथ ही इस गुट ने चुनाव प्रचार से दूरियां बना रखी थी। चुनाव से पहले पार्टी कार्यालय में बैठक में भी यह बात खुलकर सामने आ गई थी। हालत यह थी कि 15 दिन पहले तक कार्यकर्ता जनता के बीच नहीं जा पाए थे। खुद मालवीय ने भगोरा के समक्ष डूंगरपुर द्वारा बांसवाड़ा के धर्म पर धोखेबाजी किए जाने की शिकायत की थी। कुल मिलाकर कांग्रेस के एक बड़े धड़े ने चुनाव प्रचार कार्य से खुद को दूर ही रखा हुआ था। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दो बार बांसवाड़ा पहुंचे लेकिन वह भी इन दोनों के बीच एका नहीं करा पाए। इसका नतीजा बी चुनाव परिणाम अब सामने आ गया जहां आम कार्यकर्ता तो दूर की बात दोनों ही पार्टी जिलाध्यक्ष अपने-अपने बूथों से भी पार्टी को हारने से नहीं बचा पाए। बांसवाड़ा जिला अध्यक्ष जैन बड़ोदिया स्थित अपने भूत से पार्टी को बढ़त दिलाने में नाकाम रहे। यहां से कांग्रेस को 137 वोट मिले जबकि भाजपा को 429 लोगों का समर्थन हासिल हुआ। कुल मिलाकर बड़ोदिया के 4 बूथों में से कांग्रेस को मात्र 916 वोट मिले जबकि भाजपा को 1894 वोट मिले। इसी प्रकार फोबिया के बूथ पर जाएं तो सागवाड़ा के भूत नंबर 118 पर कांग्रेस प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहे। 866 मतों में से कनक मल कटारा को सबसे ज्यादा 544 तो बीटीपी को 197 वोट मिले जबकि कांग्रेस यहां से मात्र 98 वोट ला पाई। हालत यह है कि जनजाति मंत्री अर्जुन सिंह बामनिया विधानसभा चुनाव में 18000 वोटों से जीते थे लेकिन लोकसभा चुनाव में उनके विधानसभा क्षेत्र से पार्टी 63000 वोटों के अंतर से पिछड़ गई। वही बागीदौरा विधायक मालवीय के बूथ पर कांग्रेस जीत गई लेकिन विधानसभा क्षेत्र से करीब 9000 वोटों से भाजपा प्रत्याशी के मुकाबले पिछड़ गई। अंदरूनी तौर पर हार का बड़ा कारण पार्टी में चल रही खींचतान को भी माना जा रहा है। इसे देखते हुए अगले कुछ दिनों में दोनों ही जिलों में संगठन में फेरबदल की आशंका जताई जा रही है। पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं की नजर इस फेरबदल पर टिकी है।
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