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स्वच्छता सर्वेक्षण में प्रतापगढ़ और डूंगरपुर रैंकिंग में चढ़े, बांसवाड़ा और कोटा औंधे मुंह गिरा...

देशभर के 4000 चरणों में हुए सफाई सर्वेक्षण किरण किंग केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने जारी कर दी है. इस लिस्ट में कई जिले अपनी रैंकिंग सुधार कर सर्वेक्षण में अच्छे अंकों से आगे आए हैं, वहीं कुछ जिले अपनी पुरानी स्थिति से भी नीचे लुढ़क गए.

स्वच्छता सर्वेक्षण
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Published : Mar 6, 2019, 11:32 PM IST

बांसवाड़ा.स्वच्छता सर्वेक्षण रैंकिंग में बांसवाड़ा नगर परिषद ना देश में और ना ही प्रदेश में कोई बेहतर स्थान हासिल कर पाई. जबकि पड़ोसी जिलों प्रतापगढ़ और डूंगरपुर पर नजर डालें तो दोनों ही नगर परिषद ने अपने कामकाज के बल पर ना केवल रैंक चढ़ा पाई हैं, बल्कि डूंगरपुर तो देशभर में लगातार तीसरे साल मिसाल कायम करने में कामयाब रहा.

स्वच्छता सर्वेक्षण
हालांकि परिषद के अधिकारी स्वच्छता सर्वेक्षण 2019 की रैंकिंग लिस्ट का इंतजार करते दिखे लेकिन विश्वस्त सूत्रों के अनुसार बांसवाड़ा नगर परिषद फिर फेल हो गई. उल्टा रैंक गिरकर आधी भी नहीं रही.इस तरह पड़ा रैंकिंग पर असर...बांसवाड़ा :2018 में देशभर में 790 वां स्थान पर था2018 में प्रदेश के 162 शहरों में 42 वां स्थान वहीं 2019 में गिरकर 1365 अंक पर लुढ़का डूंगरपुर:देशभर में 277 वां स्थानप्रतापगढ़:देशभर में 327 वां स्थानकोटा:देशभर में 302 वीं रैंकिंगबांसवाड़ा नगर परिषद के कनिष्ठ अभियंता मुकेश मधु कहते हैं कि स्वच्छता सर्वेक्षण के आधे अंक ठोस कचरा प्रबंधन के हैं. जबकि हमारे पास इसकी व्यवस्था ही नहीं है. सरकार के स्तर पर इसके लिए 2 बार टेंडर भी आमंत्रित किए गए. लेकिन कोई भी ठेकेदार आगे नहीं आया. इस कारण हम रैंकिंग में बेहतर स्थान नहीं बना पाए.बात की जाए कोटा की तो इस बार कोटा की रैंकिंग काफी नीचे आई है. कोटा जहां 2018 के स्वच्छता सर्वेक्षण में 101 रैंकिंग लेकर आया था अब 201 रैंकिंग इन कर 302 पर पहुंच गया है. कोटा को 1791 अंक मिले हैं. स्वच्छता सर्वेक्षण की रैंकिंग गिरने के कारणों में अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों का तालमेल नहीं होना ही कारण है.हालांकि महापौर महेश विजय का कहना है कि ठोस कचरा प्रबंधन व्यवस्था लागू नहीं होना, बार बार अधिकारियों के बदलने से काम पर फोकस नहीं होना और नए सफाई कर्मियों की भर्ती होने से भी सफाई व्यवस्था पर असर पड़ा है. RCC के कचरा पॉइंट बनाने का काम शुरू किया था, लेकिन कई जगह बने और कई जगह नहीं बन पाए. अधिकारियों को स्वच्छता सर्वेक्षण को देखते हुए सफाई के मुद्दों पर जो फोकस करना चाहिए था. वह नहीं कर पाए इस कारण ही कोटा पिछड़ गया.आपको बता दें कि वर्ष 2018 के स्वच्छता सर्वेक्षण में फीडबैक केटेगरी में कोटा देशभर में पहले स्थान पर रहा था. वहीं स्वच्छता रैंकिंग में कोटा 101 रैंकिंग लेकर आया था. इससे पहले 2017 के सर्वेक्षण में कोटा 341 में नंबर पर था.

बांसवाड़ा.स्वच्छता सर्वेक्षण रैंकिंग में बांसवाड़ा नगर परिषद ना देश में और ना ही प्रदेश में कोई बेहतर स्थान हासिल कर पाई. जबकि पड़ोसी जिलों प्रतापगढ़ और डूंगरपुर पर नजर डालें तो दोनों ही नगर परिषद ने अपने कामकाज के बल पर ना केवल रैंक चढ़ा पाई हैं, बल्कि डूंगरपुर तो देशभर में लगातार तीसरे साल मिसाल कायम करने में कामयाब रहा.

स्वच्छता सर्वेक्षण
हालांकि परिषद के अधिकारी स्वच्छता सर्वेक्षण 2019 की रैंकिंग लिस्ट का इंतजार करते दिखे लेकिन विश्वस्त सूत्रों के अनुसार बांसवाड़ा नगर परिषद फिर फेल हो गई. उल्टा रैंक गिरकर आधी भी नहीं रही.इस तरह पड़ा रैंकिंग पर असर...बांसवाड़ा :2018 में देशभर में 790 वां स्थान पर था2018 में प्रदेश के 162 शहरों में 42 वां स्थान वहीं 2019 में गिरकर 1365 अंक पर लुढ़का डूंगरपुर:देशभर में 277 वां स्थानप्रतापगढ़:देशभर में 327 वां स्थानकोटा:देशभर में 302 वीं रैंकिंगबांसवाड़ा नगर परिषद के कनिष्ठ अभियंता मुकेश मधु कहते हैं कि स्वच्छता सर्वेक्षण के आधे अंक ठोस कचरा प्रबंधन के हैं. जबकि हमारे पास इसकी व्यवस्था ही नहीं है. सरकार के स्तर पर इसके लिए 2 बार टेंडर भी आमंत्रित किए गए. लेकिन कोई भी ठेकेदार आगे नहीं आया. इस कारण हम रैंकिंग में बेहतर स्थान नहीं बना पाए.बात की जाए कोटा की तो इस बार कोटा की रैंकिंग काफी नीचे आई है. कोटा जहां 2018 के स्वच्छता सर्वेक्षण में 101 रैंकिंग लेकर आया था अब 201 रैंकिंग इन कर 302 पर पहुंच गया है. कोटा को 1791 अंक मिले हैं. स्वच्छता सर्वेक्षण की रैंकिंग गिरने के कारणों में अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों का तालमेल नहीं होना ही कारण है.हालांकि महापौर महेश विजय का कहना है कि ठोस कचरा प्रबंधन व्यवस्था लागू नहीं होना, बार बार अधिकारियों के बदलने से काम पर फोकस नहीं होना और नए सफाई कर्मियों की भर्ती होने से भी सफाई व्यवस्था पर असर पड़ा है. RCC के कचरा पॉइंट बनाने का काम शुरू किया था, लेकिन कई जगह बने और कई जगह नहीं बन पाए. अधिकारियों को स्वच्छता सर्वेक्षण को देखते हुए सफाई के मुद्दों पर जो फोकस करना चाहिए था. वह नहीं कर पाए इस कारण ही कोटा पिछड़ गया.आपको बता दें कि वर्ष 2018 के स्वच्छता सर्वेक्षण में फीडबैक केटेगरी में कोटा देशभर में पहले स्थान पर रहा था. वहीं स्वच्छता रैंकिंग में कोटा 101 रैंकिंग लेकर आया था. इससे पहले 2017 के सर्वेक्षण में कोटा 341 में नंबर पर था.
Intro:बांसवाड़ा। अक्सर पड़ोस में कुछ नया हो रहा है तो हम भी उस के नक्शे कदम पर चलने का प्रयास करते हैं। एक प्रकार से यह मानव स्वभाव भी है लेकिन स्वच्छता सर्वेक्षण रैंकिंग में बांसवाड़ा नगर परिषद ना देश में और ना ही प्रदेश में कोई बेहतर स्थान हासिल कर पाई। जबकि पड़ोसी जिलों प्रतापगढ़ और डूंगरपुर पर नजर डालें तो दोनों ही नगर परिषद ने अपने कामकाज के बूते ना केवल रैंक चढ़ाई है बल्कि डूंगरपुर तो देशभर में लगातार तीसरे साल मिसाल कायम करने में कामयाब रहा। हालांकि परिषद के अधिकारी स्वच्छता सर्वेक्षण 2019 की रैंकिंग लिस्ट


Body:का इंतजार करते दिखे लेकिन विश्वस्त सूत्रों के अनुसार बांसवाड़ा नगर परिषद फिर फेल हो गई। उल्टा रैंक गिरकर आधी भी नहीं रही। वर्ष 2018 में बांसवाड़ा नगर परिषद को देशभर में 790 वा स्थान हासिल हुआ था जो 2019 में 1365 पर जा पहुंचा। इसी प्रकार प्रदेश स्तर पर वर्ष 2018 में प्रदेश के 162 शहरों में बांसवाड़ा 42 वे स्थान पर था जो बुधवार को जारी सूची में और भी लुढ़क गया। वहीं बांसवाड़ा के आजू बाजू बसे डूंगरपुर और प्रतापगढ़ तेजी से अपनी रैंक सुधारते दिख रहे हैं। डूंगरपुर 277 वा स्थान हासिल कर लगातार तीसरे वर्ष राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार


Conclusion:हासिल करने में सफल रहा वहीं प्रतापगढ़ ने भी बेहतर प्रदर्शन करते हुए देशभर में 327 वा स्थान पाया है। इन दोनों के जिलों के मुकाबले बांसवाड़ा एकदम फिसड्डी साबित हुआ है।
न कचरा संग्रहण और ना ठोस कचरा प्रबंधन
स्वच्छता सर्वेक्षण 2019 में एकदम लचर प्रदर्शन के पीछे परिषद प्रशासन की बेरुखी को कहा जा सकता है। सभापति से लेकर परिषद प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारियों ने कभी भी सर्वेक्षण सूची में टॉप पर पहुंचने की प्लानिंग पर काम नहीं किया। शहर के विभिन्न इलाकों से कचरा संग्रहण के लिए दो ठेकेदारों को करीब ₹700000 प्रति माह का भुगतान किया जा रहा है वहीं परिषद का अमला बी एक हिस्से से कचरा उठाने का काम कर रहा है लेकिन प्रमुख स्थानों पर दिन में कचरे के ढेर बखूबी देखे जा सकते हैं। वहीं संग्रहित कचरे के प्रबंधन में भी परिषद प्रशासन नाकाम रहा है। यहां तक की डंपिंग स्टेशन तक प्रॉपर नहीं है। इस कचरे को जलाने के अलावा परिषद के पास कोई विकल्प नहीं है। इसका खामियाजा डंपिंग स्टेशन के आसपास रहने वाले लोगों को भुगतना पड़ रहा है जो दिन भर प्रदूषित वातावरण में सांस लेने को मजबूर है। नगर परिषद के कनिष्ठ अभियंता मुकेश मधु किस बारे में कहते हैं कि स्वच्छता सर्वेक्षण के आधे अंक ठोस कचरा प्रबंधन के हैं जबकि हमारे पास इसकी व्यवस्था ही नहीं है। सरकार के स्तर पर इसके लिए दो बार टेंडर भी आमंत्रित किए गए लेकिन कोई भी ठेकेदार आगे नहीं आया। इस कारण हम रैंकिंग में बेहतर स्थान नहीं बना पाए।
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