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SPECIAL : नए कृषि कानून के Side Effects...अलवर में मंडी टैक्स में आई भारी गिरावट

नए कृषि कानून पर पूरे देश में घमासान चल रहा है. हजारों किसान सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं. इन सबके बीच अलवर की कृषि उपज मंडी में नए कानून का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है. बीते साल की तुलना में इस साल मंडी को मिलने वाले टैक्स में भारी कमी आई है. देखिये यह खास रिपोर्ट...

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नए कृषि कानून का मंडी शुल्क पर असर
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Published : Dec 11, 2020, 5:54 PM IST

अलवर. देशभर में नए कृषि कानूनों का विरोध हो रहा है. विपक्ष सरकार को घेरने में लगी है. दूसरी तरफ किसान सड़कों पर उतरकर नए कानून का विरोध कर रहे हैं. उधर, अलवर में कृषि कानून से व्यापारी और किसान दोनों ही खासे परेशान हैं. अलवर में नए कृषि कानून का असर भी देखने को मिल रहा है.

नए कृषि कानून का मंडी शुल्क पर असर

अलवर मंडी के अधीन 11 मंडिया आती हैं. इसमें अलवर बड़ौदामेव, बयाना, भरतपुर, डीग, खैरथल, खेड़ली, नगर, नदबई, धौलपुर और कामां मंडी शामिल हैं. इन मंडियों में हजारों व्यापारी काम करते हैं. अकेली अलवर मंडी में 400 से अधिक व्यापारी हैं. अलवर मंडी पर व्यापारियों के अलावा वहां काम करने वाले पल्लेदार, मजदूर, किसान और प्रत्येक व्यापारी के कांटे पर बड़ी संख्या में कर्मचारी काम करते हैं.

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अलवर कृषि उपज मंडी में मंडी शुल्क में भारी गिरावट

मंडी शुल्क में भारी गिरावट

व्यापारी को कारोबार के हिसाब से मंडी शुल्क देना पड़ता है. सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2019-20 में व्यापारियों द्वारा 653 लाख रुपए मंडी शुल्क के रूप में दिया गया. जबकि नए कानून आने के बाद अक्टूबर माह में महज 88.43 लाख रुपए मंडी शुल्क के रूप में व्यापारियों द्वारा जमा किए गए. ऐसे में अलवर मंडी 564.57 लाख रुपए घाटे में रही. इसी तरह से अब तक की बात करें तो 2019-20 में 2976.10 लाख रुपए मंडी शुल्क व्यापारियों द्वारा दिया गया. 2020-21 में यह घटकर 2368.17 लाख रह गया. ऐसे में 607.95 लाख रुपए की गिरावट मंडी शुल्क में रही.

पढ़ें - कृषि मंडियां गुलजार, लेकिन अब भी अधूरे हैं धरती पुत्रों के अरमान

ऐसा रहा तो बंद हो जाएंगी मंडियां

व्यापारियों की मानें तो नए कृषि कानून के चलते फसल बिकने के लिए मंडियों में नहीं आ रही हैं. मंडी में किसान को टैक्स देना पड़ता है, जबकि बाहर सरकार की तरफ से कोई टैक्स नहीं लिया जा रहा. व्यापारियों का कहना है कि यही हालात रहे तो आने वाले समय में मंडियां पूरी तरह से बंद हो जाएंगी. सरकार का इस पर कोई ध्यान नहीं है. कुछ लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकार द्वारा यह कानून बनाया है. इस कानून से आम आदमी वे व्यापारी सभी परेशान हैं. व्यापारियों ने कहा कि पूरे देश में किसान नई मंडी कानून का विरोध कर रहा है. कुछ समय पहले व्यापारियों द्वारा भी मंडियों को बंद रखा गया था. लगातार इस संबंध में प्रशासन को ज्ञापन दिए गए.

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व्यापारियों को मंडी से जुड़े लोगों के बेरोजगार होने का डर

ईटीवी भारत से बातचीत में व्यापारियों ने कहा किस कानून से किसान व्यापारी सड़क पर आ जाएगा. कुछ पूंजीपति लोगों को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा यह कानून बनाया गया है. सरकार ने अगर जल्द ही कोई फैसला नहीं दिया तो आने वाले समय में परेशानी बढ़ सकती है.

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अलवर कृषि उपज मंडी से 11 नजदीकी मंडियां जुड़ी हैं

देश की बड़ी मंडियों में शामिल है अलवर

अलवर मंडी देश की बड़ी मंडियों में शामिल है. अलवर मंडी के अधीन आसपास जिले की 11 मंडी आती हैं. अलवर की मंडी का कामकाज इन सब मंडियों के आधार पर होता है. हजारों की संख्या में लोग मंडियों में काम करते हैं. इन मंडियों से जुड़े लोगों का कहना है कि अगर मंडी में फसल बिकने के लिए नहीं आएगी तो लोगों का काम काज कैसे चलेगा.

पढ़ें- पूर्णागिरि की कृषि मंडी पर कोरोना की मार, ठंडा पड़ा कारोबार

देश में हो रहा है विरोध

केंद्र सरकार के नए कृषि कानून का पूरे देश में विरोध हो रहा है. किसान सरकार की नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि यह काला कानून है. सरकार को इसमें बदलाव करना चाहिए या इस कानून को वापस लेना चाहिए. किसानों ने कहा कि एक साथ तीन बिल पेश करने का मतलब साफ है कि सरकार की मंशा ठीक नहीं है.

अलवर की मंडी क्यों है खास

अलवर एनसीआर का हिस्सा है. अलवर की मंडी में सरसों की सबसे ज्यादा आवक होती है. अलवर क्षेत्र में सरसों की पैदावार भी अन्य जिलों से ज्यादा है. इसके अलावा गेहूं, चना, बाजरा, कपास और ग्वार सहित प्रमुख जिंस अलवर की मंडी से पूरे देश में सप्लाई होते हैं. अलवर की मंडी में व्यापारी देश भर में व्यापार करते हैं.

अलवर. देशभर में नए कृषि कानूनों का विरोध हो रहा है. विपक्ष सरकार को घेरने में लगी है. दूसरी तरफ किसान सड़कों पर उतरकर नए कानून का विरोध कर रहे हैं. उधर, अलवर में कृषि कानून से व्यापारी और किसान दोनों ही खासे परेशान हैं. अलवर में नए कृषि कानून का असर भी देखने को मिल रहा है.

नए कृषि कानून का मंडी शुल्क पर असर

अलवर मंडी के अधीन 11 मंडिया आती हैं. इसमें अलवर बड़ौदामेव, बयाना, भरतपुर, डीग, खैरथल, खेड़ली, नगर, नदबई, धौलपुर और कामां मंडी शामिल हैं. इन मंडियों में हजारों व्यापारी काम करते हैं. अकेली अलवर मंडी में 400 से अधिक व्यापारी हैं. अलवर मंडी पर व्यापारियों के अलावा वहां काम करने वाले पल्लेदार, मजदूर, किसान और प्रत्येक व्यापारी के कांटे पर बड़ी संख्या में कर्मचारी काम करते हैं.

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अलवर कृषि उपज मंडी में मंडी शुल्क में भारी गिरावट

मंडी शुल्क में भारी गिरावट

व्यापारी को कारोबार के हिसाब से मंडी शुल्क देना पड़ता है. सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2019-20 में व्यापारियों द्वारा 653 लाख रुपए मंडी शुल्क के रूप में दिया गया. जबकि नए कानून आने के बाद अक्टूबर माह में महज 88.43 लाख रुपए मंडी शुल्क के रूप में व्यापारियों द्वारा जमा किए गए. ऐसे में अलवर मंडी 564.57 लाख रुपए घाटे में रही. इसी तरह से अब तक की बात करें तो 2019-20 में 2976.10 लाख रुपए मंडी शुल्क व्यापारियों द्वारा दिया गया. 2020-21 में यह घटकर 2368.17 लाख रह गया. ऐसे में 607.95 लाख रुपए की गिरावट मंडी शुल्क में रही.

पढ़ें - कृषि मंडियां गुलजार, लेकिन अब भी अधूरे हैं धरती पुत्रों के अरमान

ऐसा रहा तो बंद हो जाएंगी मंडियां

व्यापारियों की मानें तो नए कृषि कानून के चलते फसल बिकने के लिए मंडियों में नहीं आ रही हैं. मंडी में किसान को टैक्स देना पड़ता है, जबकि बाहर सरकार की तरफ से कोई टैक्स नहीं लिया जा रहा. व्यापारियों का कहना है कि यही हालात रहे तो आने वाले समय में मंडियां पूरी तरह से बंद हो जाएंगी. सरकार का इस पर कोई ध्यान नहीं है. कुछ लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकार द्वारा यह कानून बनाया है. इस कानून से आम आदमी वे व्यापारी सभी परेशान हैं. व्यापारियों ने कहा कि पूरे देश में किसान नई मंडी कानून का विरोध कर रहा है. कुछ समय पहले व्यापारियों द्वारा भी मंडियों को बंद रखा गया था. लगातार इस संबंध में प्रशासन को ज्ञापन दिए गए.

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व्यापारियों को मंडी से जुड़े लोगों के बेरोजगार होने का डर

ईटीवी भारत से बातचीत में व्यापारियों ने कहा किस कानून से किसान व्यापारी सड़क पर आ जाएगा. कुछ पूंजीपति लोगों को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा यह कानून बनाया गया है. सरकार ने अगर जल्द ही कोई फैसला नहीं दिया तो आने वाले समय में परेशानी बढ़ सकती है.

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अलवर कृषि उपज मंडी से 11 नजदीकी मंडियां जुड़ी हैं

देश की बड़ी मंडियों में शामिल है अलवर

अलवर मंडी देश की बड़ी मंडियों में शामिल है. अलवर मंडी के अधीन आसपास जिले की 11 मंडी आती हैं. अलवर की मंडी का कामकाज इन सब मंडियों के आधार पर होता है. हजारों की संख्या में लोग मंडियों में काम करते हैं. इन मंडियों से जुड़े लोगों का कहना है कि अगर मंडी में फसल बिकने के लिए नहीं आएगी तो लोगों का काम काज कैसे चलेगा.

पढ़ें- पूर्णागिरि की कृषि मंडी पर कोरोना की मार, ठंडा पड़ा कारोबार

देश में हो रहा है विरोध

केंद्र सरकार के नए कृषि कानून का पूरे देश में विरोध हो रहा है. किसान सरकार की नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि यह काला कानून है. सरकार को इसमें बदलाव करना चाहिए या इस कानून को वापस लेना चाहिए. किसानों ने कहा कि एक साथ तीन बिल पेश करने का मतलब साफ है कि सरकार की मंशा ठीक नहीं है.

अलवर की मंडी क्यों है खास

अलवर एनसीआर का हिस्सा है. अलवर की मंडी में सरसों की सबसे ज्यादा आवक होती है. अलवर क्षेत्र में सरसों की पैदावार भी अन्य जिलों से ज्यादा है. इसके अलावा गेहूं, चना, बाजरा, कपास और ग्वार सहित प्रमुख जिंस अलवर की मंडी से पूरे देश में सप्लाई होते हैं. अलवर की मंडी में व्यापारी देश भर में व्यापार करते हैं.

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