बानसूर (अलवर). बानसूर के गांव नीमूचाणा में अंग्रेजों के समय में लगान दोगुना करने को लेकर 1925 में करीबन 250 से ज्यादा किसानों को गोलियों से भून दिया गया था. राजस्थान में निमूचाणा की इस घटना को जलियांवाला बाग नरसंहार जैसा माना गया है. नीमूचाणा में इस दौरान शहीद हुए किसानों की शहादत की 97वीं बरसी आज यानी 14 मई को (Neemuchana Massacre on 14th May 1925) है. इस साल ग्रामीणों की ओर से कैंडल मार्च निकाला जाएगा.
गांव के बुजुर्गों ने बताया कि 14 मई, 1925 को राजस्थान का नीमूचाणा कांड हुआ था, जिसमें करीब 250 से ज्यादा किसानों पर गोलियां बरसाईं गई. यह नरसंहार याद कर लोगों की रूह कांप उठती है. आज भी गांव में वो हवेलीयां मौजूद हैं जहां तोप तथा गोलियों के निशान मौजूद हैं. देश के अन्य भागों की भांति अंग्रेजों ने राजस्थान के अलवर क्षेत्र की सत्ता को कब्जे में लेना शुरू कर दिया था. इसी क्रम में अलवर के महाराजा जयसिंह ने किसानों पर लगाए जाने वाले कर को दोगुना कर दिया था.
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किसानों ने इसका विरोध किया. इसी को लेकर अंग्रेजों की चाल को नाकाम करने के लिए नीमूचाणा गांव के ग्राणीण और आस-पास के गांव के किसान 14 मई, 1925 को एकत्रित हुए. यहां शांतिपूर्वक सभा चल रही थी, जिसमें हजारों किसान मौजूद थे. किसानों के लिए दाल बाटी चूरमा बनाया जा रहा था. सभा की सूचना मिलते ही अलवर नरेश ने अपनी सेना भेज दी. पूरे गांव को चारों और से घेरकर किसानों पर गोलियां चलवा दी गई. पूरे गांव में आग लगवा दी गई. जिससे गांव धूं-धूं कर जल उठा.
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इसमें करीब 200 घर जल गए. सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार 250 किसान शहीद हो गए. हजारों किसान घायल हो हुए. सैकड़ों की संख्या में मवेशी मारे गए. इस कांड की चारों ओर निंदा की गई. महात्मा गांधी ने इस नरसंहार को जरनल डायर के कारनामों से भी दोगुना करार दिया. महात्मा गांधी ने ही इस कांड को जलियांवाला बाग की संज्ञा दी थी. ग्रामीणों ने स्थानीय विधायक एवं सांसद से मांग की है कि गांव नीमूचाणा में शहीद स्मारक बनाया जाए. ताकि आने वाली पीढ़ी किसानों की आत्मा की शांति के लिए इस आयोजन को पुरजोर और बेहतरीन ढंग से कर सके.