अलवर. जिले का पांडुपोल हनुमान मंदिर (pandupol hanuman temple) देश-विदेश में अपनी खास पहचान के लिए प्रसिद्ध है. पांडुपोल हनुमान मंदिर सरिस्का टाइगर रिजर्व के बीच में स्थित है. सरिस्का के कोर एरिया में मंदिर होने के चलते मंगलवार और शनिवार को निजी वाहनों से मंदिर जाने की अनुमति मिलती है. कहते हैं जिस जगह पर हनुमान जी की प्रतिमा है. उसी जगह पर हनुमान जी ने भीम का घमंड तोड़ा था. पांडुपोल मंदिर में हनुमान जी की लेटी हुई प्रतिमा है. चलिए जानते हैं क्यों खास है पांडुपोल हनुमान मंदिर
पांडुपोल मंदिर में हर साल भादो शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन मेला लगता है. 29 अगस्त से 31 अगस्त तक मेला भरेगा. 29 अगस्त को जिला कलेक्टर मेले की शुरुआत करेंगे. इस दौरान दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र से लाखों की भीड़ में श्रद्धालु हनुमान जी का दर्शन करने आते हैं. मेले के दौरान सरिस्का गेट से रोडवेज बसों की भी व्यवस्था रहेगी. निजी वाहनों को अनुमति नहीं दी जाएगी. इस दौरान लाखों श्रद्धालु हनुमान जी के दर्शन के लिए आते हैं.
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बड़ी संख्या में दर्शन करने आते हैं श्रद्धालू: अलवर-जयपुर मार्ग पर अलवर शहर से 55 किलोमीटर दूर स्थित इस मंदिर पर लगने वाले मेले में बड़ी संख्या ग्रामीण पहुंचते हैं. कहा जाता है कि महाभारत काल में अज्ञातवास के समय भीम ने गधा से पहाड़ तोड़कर रास्ता निकाला था. भीम ने अपनी गदा से ऐसा प्रहार किया कि पहाड़ में आरपार छेद निकल गया. पहाड़ में बना यह दरवाजा ही पांडुपोल के नाम से विख्यात है, जो प्रदेश के प्रमुख पर्यटक स्थलों में गिना जाता है. साथ ही लोगों की अटूट आस्था का केंद्र है.
मेले के लिए प्रशासन की ओर से पुख्ता इंतजाम: मेले के दौरान प्रशासन की तरफ से खास इंतजाम किए जाते हैं. श्रद्धालुओं के लिए भोजन, पीने के पानी व शौचालय की व्यवस्था की जाती है. साथ ही आने-जाने के लिए सरिस्का गेट से पांडुपोल मंदिर तक रोडवेज बस की व्यवस्था रहती है. इसके अलावा मेले में मंदिर परिसर में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होगा. इसमें पहले दिन स्थानीय लोक कलाकारों को मौका दिया जाएगा. तो वहीं दूसरे दिन प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर के कलाकार कार्यक्रम पेश करेंगे. मेले के दौरान भारी पुलिस बल की व्यवस्था रहेगी. जंगल में लोग खाद्य पदार्थों को लोग न डालें, इसके लिए अलग से चौकसी रखी जाएगी. रात के समय जंगल में लाइट की व्यवस्था, लोगों के लिए पूछताछ केंद्र, कंट्रोल रूम सहित अन्य इंतजाम भी किए जाएंगे. क्योंकि जंगल क्षेत्र में मोबाइल का नेटवर्क काम नहीं करता है. ऐसे में अगर कोई व्यक्ति व बच्चा खो जाता है, तो उसके लिए भी मंदिर प्रशासन व जिला प्रशासन की तरफ से व्यवस्था की जाती है.
टूटी हुई है मंदिर की सड़क: सरिस्का गेट से पांडुपोल मंदिर पहुंचने के लिए लोगों को खासी मशक्कत का सामना करना पड़ता है. क्योंकि जगह-जगह से सड़क टूटी हुई है व सरिस्का क्षेत्र में होने के कारण वन विभाग की तरफ से सड़क बनाने की अनुमति नहीं दी जाती है. ऐसे में लोगों को घंटों मंगलवार और शनिवार के दिन जाम में फंसना पड़ता है और सरिस्का गेट से पांडुपोल मंदिर पहुंचने में 2 घंटे से ज्यादा का समय लगता है.
मुराद मांगने पर होती है पुरी: पांडुपोल हनुमान मंदिर की खास बात यह है कि हनुमान जी की शयन प्रतिमा मंदिर में स्थापित है. कहा जाता है कि मूर्ति की स्थापना भी पांडवों ने की थी. जिस जगह पर हनुमान जी ने भीम का घमंड तोड़ने के लिए बुजुर्ग वानर का रूप धारण करके लेटे थे, उसी जगह पर हनुमान जी की प्रतिमा विराजमान है. कहा जाता है कि इस मंदिर की बहुत मान्यताएं हैं, पांडुपोल हनुमान में दर्शन करके कोई भी श्रद्धालू अगर कोई अपनी मुराद मांगता है तो वह पूरी हो जाती है.
मंदिर की क्या है कहानी, हनुमानजी ने दिए थे दर्शन: पांडुपोल में बजरंग बली ने भीम को दर्शन दिए थे. महाभारत काल की एक घटना के अनुसार इसी अवधि में द्रौपदी अपनी नियमित दिनचर्या के अनुसार इसी घाटी के नीचे की ओर नाले के जलाशय पर स्नान करने गई थी. एक दिन स्नान करते समय नाले में ऊपर से जल में बहता हुआ एक सुन्दर पुष्प आया द्रौपदी ने उस पुष्प को प्राप्त कर बड़ी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उसे अपने कानों के कुण्डलों में धारण करने की सोची. स्नान के बाद द्रौपदी ने महाबली भीम को वो पुष्प लाने को कहा. तो महाबली भीम पुष्प की खोज करता हुआ जलधारा की ओर बढ़ने लगे. आगे जाने पर महाबली भीम ने देखा की एक वृद्ध विशाल वानर अपनी पूंछ फैला आराम से लेटा हुआ था. वानर के लेटने से रास्ता पूर्णतया अवरुद्ध था. यहां संकरी घाटी होने के कारण भीमसेन के आगे निकलने के लिए कोई अन्य मार्ग नहीं था.
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इसलिए भीम ने मार्ग में लेटे हुए वृद्व वानर से कहा कि तुम अपनी पूंछ को रास्ते से हटाकर एक ओर कर लो. वानर ने कहां कि मैं वृद्व अवस्था में हूं. आप इसके ऊपर से चले जाएं, भीम ने कहा कि मैं इसे लांघकर नहीं जा सकता, आप पूंछ हटाएं. इस पर वानर ने कहा कि आप बलशाली दिखते हैं, आप स्वयं ही मेरी पूंछ को हटा लें. भीमसेन ने वानर की पूंछ हटाने की कोशिश की तो पूंछ भीमसेन से टस से मस भी न हो सकी. भीमसेन के बार-बार कोशिश करने के पश्चात भी भीमसेन वृद्ध वानर की पूंछ को नहीं हटा पाए और समझ गए कि यह कोई साधारण वानर नहीं हैं. भीमसेन ने हाथ जोड़ कर वृद्ध वानर को अपने वास्तविक रूप प्रकट करने की विनती की. इस पर वृद्ध वानर ने अपना वास्तविक रूप प्रकट कर अपना परिचय हनुमान के रूप में दिया. भीम ने सभी पांडव को वहां बुला कर वृद्ध वानर की लेटे हुए रूप में ही पूजा अर्चना की. इसके बाद पांडवों ने वहां हनुमान मंदिर की स्थापना की. जो आज पांडुपोल हनुमान मंदिर नाम से दुनिया में जाना जाता है.