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अलवर: प्रमुख पार्टियों के चुनाव चिन्ह के बगैर मैदान में उतरेंगे पंच-सरपंच पद के प्रत्याशी

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Published : Jan 4, 2020, 11:18 AM IST

अलवर सहित प्रदेश भर में गांव की सरकार के लिए बिगुल बज चुका है. राज्य निर्वाचन आयोग ने पंच-सरपंच के 3 चरणों में चुनाव कराने की घोषणा की है. इसके साथ ही कांग्रेस और भाजपा सहित सभी प्रमुख दलों ने गांव में डेरा डाल लिया है. सभाओं के माध्यम से लगातार लोगों से जुड़ने का काम किया जा रहा है.

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पंचायती राज चुनाव अलवर

अलवर. ग्रामीण क्षेत्र में सरपंच और पंच के पद का खासा महत्व है. यही कारण है, कि प्रमुख पार्टियों के नेता ग्राम पंचायतों में लोगों से संपर्क कर रहे हैं और खुद का सरपंच और पंच बनाने की कोशिश में जुटे हैं.

पंचायती राज चुनाव अलवर

पंचायत समिति और जिला परिषद सहित प्रधान, उप प्रधान, जिला प्रमुख और उप जिला प्रमुख के चुनाव की तारीख का ऐलान भी होना अभी बाकी है. कांग्रेस और भाजपा के अलावा सभी प्रमुख पार्टियों ने गांव में लोगों से संपर्क करने और अपनी जमीन तलाश करने का काम शुरू कर दिया है. पार्टी के नेता गांव में अपनी योजनाओं और विपक्षी पार्टी की कमियों को गिनाने में लगे हुए हैं.

पढ़ें- जालोर: घाणा के ग्रामीणों की चौपाल, गांव के मुद्दों और चुनाव को लेकर की चर्चा

ग्राम पंचायत के सरपंच का चुनाव कहने में भले ही छोटा लगे, लेकिन पंचायत राज संस्थाओं में ग्राम पंचायत महत्वपूर्ण कड़ी माना जाता है. इसलिए राजनीति में सरपंचों का रोल बड़ा रहता है. अबतक की राजनीति के तहत कांग्रेस और भाजपा ने सरपंच और पंच पद के चुनाव में सिंबल पर प्रत्याशी नहीं उतारने का फैसला लिया है. लेकिन दोनों ही पार्टियों के नेताओं की मंशा, उनकी विचारधारा से जुड़े कार्यकर्ताओं को पंच-सरपंच पद का चुनाव लड़ाने की है.

पंजाब चुनाव में प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने सरपंच पद पर सिंबल पर प्रत्याशी नहीं उतारा था. राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों का मानना है, कि सरपंच का चुनाव महत्वपूर्ण होने के बाद भी प्रमुख पार्टियों की ओर से सिंबल पर प्रत्याशी नहीं उतारने के पीछे प्रत्याशियों की बगावत का डर रहता है. प्रमुख पार्टियां लंबे समय से निकाय चुनाव में सिंबल पर प्रत्याशी उतार रहीं हैं.

पार्षद पद के चुनाव में पार्टी टिकट के कई दावेदार होने से बगावत का खतरा झेलना पड़ता है. इसी बगावत के डर से फिलहाल प्रमुख पार्टियों ने इन चुनाव में सिंबल जारी नहीं करने का फैसला लिया है. भाजपा के नेताओं की मानें तो सरपंच चुनाव में राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रत्याशियों का सहयोग करने का भी फैसला लिया गया है.

अलवर. ग्रामीण क्षेत्र में सरपंच और पंच के पद का खासा महत्व है. यही कारण है, कि प्रमुख पार्टियों के नेता ग्राम पंचायतों में लोगों से संपर्क कर रहे हैं और खुद का सरपंच और पंच बनाने की कोशिश में जुटे हैं.

पंचायती राज चुनाव अलवर

पंचायत समिति और जिला परिषद सहित प्रधान, उप प्रधान, जिला प्रमुख और उप जिला प्रमुख के चुनाव की तारीख का ऐलान भी होना अभी बाकी है. कांग्रेस और भाजपा के अलावा सभी प्रमुख पार्टियों ने गांव में लोगों से संपर्क करने और अपनी जमीन तलाश करने का काम शुरू कर दिया है. पार्टी के नेता गांव में अपनी योजनाओं और विपक्षी पार्टी की कमियों को गिनाने में लगे हुए हैं.

पढ़ें- जालोर: घाणा के ग्रामीणों की चौपाल, गांव के मुद्दों और चुनाव को लेकर की चर्चा

ग्राम पंचायत के सरपंच का चुनाव कहने में भले ही छोटा लगे, लेकिन पंचायत राज संस्थाओं में ग्राम पंचायत महत्वपूर्ण कड़ी माना जाता है. इसलिए राजनीति में सरपंचों का रोल बड़ा रहता है. अबतक की राजनीति के तहत कांग्रेस और भाजपा ने सरपंच और पंच पद के चुनाव में सिंबल पर प्रत्याशी नहीं उतारने का फैसला लिया है. लेकिन दोनों ही पार्टियों के नेताओं की मंशा, उनकी विचारधारा से जुड़े कार्यकर्ताओं को पंच-सरपंच पद का चुनाव लड़ाने की है.

पंजाब चुनाव में प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने सरपंच पद पर सिंबल पर प्रत्याशी नहीं उतारा था. राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों का मानना है, कि सरपंच का चुनाव महत्वपूर्ण होने के बाद भी प्रमुख पार्टियों की ओर से सिंबल पर प्रत्याशी नहीं उतारने के पीछे प्रत्याशियों की बगावत का डर रहता है. प्रमुख पार्टियां लंबे समय से निकाय चुनाव में सिंबल पर प्रत्याशी उतार रहीं हैं.

पार्षद पद के चुनाव में पार्टी टिकट के कई दावेदार होने से बगावत का खतरा झेलना पड़ता है. इसी बगावत के डर से फिलहाल प्रमुख पार्टियों ने इन चुनाव में सिंबल जारी नहीं करने का फैसला लिया है. भाजपा के नेताओं की मानें तो सरपंच चुनाव में राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रत्याशियों का सहयोग करने का भी फैसला लिया गया है.

Intro:अलवर
अलवर सहित प्रदेश भर में गांव की सरकार के लिए बिगुल बज चुका है। राज्य निर्वाचन आयोग ने पंच सरपंच के 3 चरणों में चुनाव कराने की घोषणा की है। इसके साथ ही कांग्रेस व भाजपा सहित सभी प्रमुख दलों ने गांव में डेरा डाल लिया हैं। लगातार लोगों से सभाओं के माध्यम से जुड़ने का काम किया जा रहा है।


Body:ग्रामीण क्षेत्र में सरपंच व पंच के पद का खासा महत्व है। यही कारण है कि प्रमुख पार्टियों के नेता ग्राम पंचायतों में लोगों से संपर्क व खुद का सरपंच व पंच बनाने में जुट चुके हैं। प्रदेश में पंचायत चुनाव का बिगुल बजते ही सरगर्मी तेज हो चुकी है। राज्य निर्वाचन आयोग ने पंच सरपंच के 3 चरणों में चुनाव कराने की तिथि की घोषणा की है। पंचायत समिति व जिला परिषद सहित प्रधान, उप प्रधान, जिला प्रमुख तथा उप जिला प्रमुख के चुनाव के तारीख का ऐलान भी होना अभी बाकी है। कांग्रेस व भाजपा के अलावा सभी प्रमुख पार्टियों ने गांव में लोगों से संपर्क करने व अपनी जमीन तलाश करने का काम शुरू कर दिया है। पार्टी के नेता गांव में अपनी योजनाओं व विपक्षी पार्टी की कमियों को गिराने में लगे हुए हैं। ग्राम पंचायत के सरपंच का चुनाव कहने में भले ही छोटा लगे लेकिन पंचायत राज संस्थाओं में ग्राम पंचायत महत्वपूर्ण कड़ी माना जाता है। इसलिए राजनीति में सरपंचों का रोल बड़ा रहता है। अभी तक की राजनीति के तहत कांग्रेस व भाजपा गाने सरपंच व पंच पद के चुनाव में सिंबल पर प्रत्याशी नहीं उतारने का फैसला लिया है। लेकिन दोनों ही पार्टियों के नेताओं की जांच उनकी विचारधारा से जुड़े कार्यकर्ताओं को पंच सरपंच पद का चुनाव लड़ाने की है।


Conclusion:पंजाब चुनाव में प्रमुख राजनीतिक पार्टियां सरपंच पद के पद पर सिंबल पर प्रत्याशी नहीं उतार थी। राजनीति दलों से जुड़े लोगों का मानना है कि सरपंच का चुनाव महत्वपूर्ण होने के बाद भी प्रमुख पार्टियों की ओर से सिंबल पर प्रत्याशी नहीं उतारने के पीछे प्रत्याशियों की बगावत का डर रहता है। प्रमुख पार्टियां लंबे समय से निकाय चुनाव में सिंबल पर प्रत्याशी उतार रही है। पार्षद पद के चुनाव में पार्टी टिकट के कई दावेदार होने से बगावत का खतरा झेलना पड़ता है। इसी बगावत के डर से फिलहाल प्रमुख पार्टियों ने इन चुनाव में सिंबल जारी नहीं करनी फैसला लिया है। भाजपा के नेताओं की माने तो सरपंच चुनाव में राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रत्याशियों का सहयोग करने का भी फैसला लिया गया है। इन चुनावों में पार्टी की ओर से सुधारने के निर्देश नहीं है।
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