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महंगाई और मंदी की मार झेल रहे 'दीपक'

अलवर में दिवाली के मौके पर दीपक सबसे खास होते हैं. बिना दीपक के दिवाली अधूरी है और दीपक से दिवाली पर रोशनी होती है. इसी बीच महंगाई और मंदी की मार दीपक बनाने वाले कुम्हार और दीपक पर पड़ रही है.

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Published : Oct 19, 2019, 9:17 AM IST

अलवर. लोगों के जीवन में उजाला करने वाले दीपक खुद मंदी और महंगाई की मार झेल रहे हैं. दिवाली के मौके पर दीपक की खास अहमियत होती है. लेकिन इस साल दीपक कुंभकारों को खासा परेशान कर रहा है. 100 दीपक महज 40 रुपए में कुंभकारों को बेचने पड़ रहे हैं.

महंगाई और मंदी की मार झेल रहे दिवाली के दीपक

वहीं दीपक बनाने में कुंभकार को खासी परेशानी उठानी पड़ती है. सबसे पहले मिट्टी लानी पड़ती है और उसके बाद लंबी प्रोसेसिंग से दीपक बनाए जाते हैं. लेकिन फैंसी दीपकों के बाजार में आने के बाद मिट्टी के दीपक की डिमांड कम हो गई है. इसलिए कुम्हार खासे परेशान है और उनका जीवन यापन मुश्किल में पड़ गया है. इस कारोबार में लगे कारीगरों ने कहा कि महंगाई के दौर में इस कारण घर का बिजली खर्च भी नहीं चुकता है.

पढ़ें: जल्द ही KBC की हॉट सीट पर नजर आएंगे भरतपुर के बीएम भारद्वाज, बिग बी ने भेजी 11 लाख रुपए की आर्थिक मदद

कुंभकारों ने कहा कि प्रशासन और सरकार को इसमें आगे आकर जरूरी कदम उठाने चाहिए. सामान की सरकार को कीमत निर्धारित करनी चाहिए. जिससे उनको अपने सामान का उचित मूल्य मिल सके. इसके अलावा सरकार की तरफ से अतिरिक्त मदद भी मिलनी चाहिए. तो वहीं उन्होंने कहा कि, आज के दौर में मिट्टी के दीपक बनाना खासी मेहनत और जद्दोजहद का काम है.

अलवर. लोगों के जीवन में उजाला करने वाले दीपक खुद मंदी और महंगाई की मार झेल रहे हैं. दिवाली के मौके पर दीपक की खास अहमियत होती है. लेकिन इस साल दीपक कुंभकारों को खासा परेशान कर रहा है. 100 दीपक महज 40 रुपए में कुंभकारों को बेचने पड़ रहे हैं.

महंगाई और मंदी की मार झेल रहे दिवाली के दीपक

वहीं दीपक बनाने में कुंभकार को खासी परेशानी उठानी पड़ती है. सबसे पहले मिट्टी लानी पड़ती है और उसके बाद लंबी प्रोसेसिंग से दीपक बनाए जाते हैं. लेकिन फैंसी दीपकों के बाजार में आने के बाद मिट्टी के दीपक की डिमांड कम हो गई है. इसलिए कुम्हार खासे परेशान है और उनका जीवन यापन मुश्किल में पड़ गया है. इस कारोबार में लगे कारीगरों ने कहा कि महंगाई के दौर में इस कारण घर का बिजली खर्च भी नहीं चुकता है.

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कुंभकारों ने कहा कि प्रशासन और सरकार को इसमें आगे आकर जरूरी कदम उठाने चाहिए. सामान की सरकार को कीमत निर्धारित करनी चाहिए. जिससे उनको अपने सामान का उचित मूल्य मिल सके. इसके अलावा सरकार की तरफ से अतिरिक्त मदद भी मिलनी चाहिए. तो वहीं उन्होंने कहा कि, आज के दौर में मिट्टी के दीपक बनाना खासी मेहनत और जद्दोजहद का काम है.

Intro:अलवर
दिवाली के मौके पर दीपक सबसे खास होते हैं। बिना दीपक के दिवाली अधूरी है व दीपक से दिवाली पर रोशनी होती है। ऐसे में महंगाई व मंदी की मार दीपक बनाने वाले कुम्हार व दीपक पर पड़ रही है।


Body:

लोगों के जीवन में उजाला करने वाले दीपक मंदी व महंगाई की मार झेल रहे हैं। दिवाली के मौके पर दीपक की खास अहमियत होती है। लेकिन इस साल दीपक कुम्हार को खासा परेशान कर रहा है। 100 दीपक नहर 40 रुपए में कुम्हार को बेचने पड़ते हैं। तो वहीं दीपक बनाने में कुमार को खासी परेशानी उठानी पड़ती है। मट्टी लानी पड़ती है व उसके बाद लंबी प्रोसेसिंग के बाद दीपक बनाए जाते हैं। समय के साथ फैंसी दीपक ओने मिट्टी के दीपक को की डिमांड कम कर दी है। इसलिए कुम्हार खासे परेशान है व उनको जीवन यापन मुश्किल में पड़ गया है। इस कारोबार में लगे कारीगरों ने कहा कि महंगाई के दौर में इस कवर घर का बिजली खर्च भी नहीं झुकता है।


Conclusion:
तो वहीं लगातार मिट्टी के सामान्य दीपक की डिमांड फैंसी दीपक के आगे कम हो रही है। लोग फैंसी दीपक को को ज्यादा पसंद करने लगे हैं। ऐसे में मिट्टी के दीपक बनाने वाले कुम्हारों के आगे रोजी-रोटी का संकट मंडराने लगा है। तो वही कुम्हारों ने कहा प्रशासन व सरकार को इसमें आगे आकर जरूरी कदम उठाने चाहिए। सामान की सरकार को कीमत निर्धारित करनी चाहिए। जिससे उनको अपने सामान का उचित मूल्य मिल सके। इसके अलावा सरकार की तरफ से अतिरिक्त मदद भी मिलनी चाहिए। तो वही उन्होंने कहा कि आज के दौर में मिट्टी के दीपक बनाना खासी मेहनत जद्दोजहद का काम है।
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