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कोरोना काल में शुरू हुआ एक प्रयास बना मिसाल, अलवर में पांच लाख से ज्यादा लोग कर चुके हैं भोजन...

अलवर के एक हिमांशु शर्मा नाम के एक युवा ने कोरोना काल में जरूरतमंद लोगों की मदद करने का काम शुरू किया. उसने लोगों को 10 रुपये में लोगों को भरपेट खाना खिलाना शुरू किया. जो आज सिर्फ 1 रुपये प्रति व्यक्ति लोगों को भरपेट खाना खिला रहा है. युवा के मुताबिक पांच लाख से अधिक लोगों को खाना खिला चुका है. पढ़ें पूरी खबर...

अलवर के युवा ने बनाई मिसाल
विजन संस्थान अलवर
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Published : Oct 31, 2022, 9:58 PM IST

अलवर. राजस्थान के अलवर में एक युवा ने कोरोना काल में जरूरतमंद लोगों की मदद करने का फैसला लिया. शुरुआत में जरूरतमंद मरीजों के लिए एंबुलेंस, ब्लड ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था करते हुए शुद्ध खाने के पैकेट पर पहुंचाया. डिमांड बढ़ने लगी तो अलवर में जरूरत के हिसाब से लोगों को भरपेट भोजन दिया गया. आज यह मुहिम एक मिसाल बन चुकी है. 500 दिनों के सफर में 5 लाख से ज्यादा लोग इस मुहिम के तहत भोजन कर चुके हैं. इतना ही नहीं, 1 रुपए में भरपेट भोजन प्रदेश सरकार के इंदिरा रसोई पर भी भारी पड़ रहा है. इसमें लोग आगे आकर अपना सहयोग दे रहे हैं. इसलिए यह कारवां आगे भी बदस्तूर जारी है.

अलवर के 60 फिट क्षेत्र में रहने वाले हिमांशु शर्मा ने 16 जून 2021 को लोगों के सहयोग उसने शहर के बिजली घर चौराहे पर लोगों को खाना खिलाना शुरू किया. शुरूआत में उसने 10 रुपये प्रति व्यक्ति भरपेट भोजन कराया. लेकिन बाद में लोगों के सहयोग मिलने के बाद यह राशि सिर्फ 1 रुपये प्रति व्यक्ति भरपेट कर गई.

पढ़ें: Most Polluted Area in Rajasthan : राजस्थान का सबसे प्रदूषित क्षेत्र बना भिवाड़ी, प्रशासन से साधी चुप्पी

हिमांशु ने बताया कि इसका मकसद यह है कि खाने वाले को यह न लगे कि उसने मुफ्त में भोजन किया है. उन्होंने कहा कि कारवां चलता रहा आज शहर के लोग आगे आकर इस मुहिम से जुड़ते हैं. घर में जन्मदिन हो, शादी की सालगिरह हो या कोई अन्य खुशी का मौका लोग अपनी तरफ से खाने की व्यवस्था करते हैं. एक दिन के भोजन के लिए 5100 रुपए व्यक्ति को देने पड़ते हैं. उसके बाद ढाई सौ से 300 लोगों का खाना तैयार होता है और लोगों को खिलाया जाता है. कुछ लोगों ने आटा दिया तो कुछ ने घी और तेल की व्यवस्था की.

हिमांशु शर्मा का बयान

भोजन की व्यवस्था होने से श्रमिकों को फायदा: हिमांशु ने बताया कि उन्होंने एक संस्था का रजिस्ट्रेशन कराया उसके तहत आज वो लोगों से जुड़े हुए हैं. यह रसोई अलवर शहर में बिजली घर चौराहे पर चलती है. इस चौराहे पर श्रमिक बैठते हैं. भोजन की व्यवस्था होने से श्रमिकों को भी फायदा मिला है. शुरुआत में लोगों ने इसका विरोध किया, तो कुछ ने गलत फैसला बताया. लेकिन बाद में वो लोग ही आगे आकर जुड़ने लगे. उन्होंने बताया कि शराब पीने वाले व्यक्ति को खाना नहीं दिया जाता है. साथ ही खाना बनाने के लिए श्रमिकों को रखा गया. वो सुबह शाम खाना बनाते हैं, तो संस्था की तरफ से उनको वेतन भी दिया जाता है. .

पढ़ें: 20 अगस्त से राजस्थान में शुरू होगी 'इंदिरा रसोई', 8 रुपए में मिलेगा खाना

बदल बदल कर बनता है भोजन: हिमांशु ने बताया कि कुछ लोग यहां आकर केक काटते हैं, तो कुछ मिठाई बांटते हैं. खाने में दो सब्जी, चावल, रोटी और मीठे के अलावा बदल-बदल कर खाने की व्यवस्था की जाती है. उन्होंने बताया कि शुरुआत में उन्होंने नहीं सोचा था की यह मुहिम इस मुकाम पर पहुंचेगी. शुरुआत के दिनों में वो प्रोफेशनल तरह से इस पूरी मुहिम से जुड़े, लेकिन धीरे-धीरे पता ही नहीं चला कि कब वो तन मन से इस कार्यक्रम से जुड़ गए.

ईमानदारी देख लोग जुड़ रहे: उन्होंने बताया वो लेबर कांट्रेक्टर है, लोग अब उन्हें बुलाकर काम देते हैं. उन्होंने बताया कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई की कुछ करने सोची और इस काम को शुरू कर दिया. काम में ईमानदारी देखकर लोग आकर उनके साथ जुड़ने लगे. आज उनको घी, तेल, मसाले, आटा व सभी चीज लोगों की तरफ से उपलब्ध कराई जाती है. साथ ही कुछ साथियों की ओर से अभी रोटी बनाने की मशीन उपलब्ध कराई गई है. इसके अलावा अन्य संसाधन भी अपने आप जुड़ रहे हैं.

भोजन के आलावा कई तरह की करते हैं मदद: उन्होंने बताया कि यहां आने वाले लोगों की वो मदद करते हैं. किसी को ब्लड की आवश्यकता होती है. तो उसे ब्लड भी उपलब्ध कराया जाता है. किसी को एंबुलेंस की जरूरत होती है, तो उसे एंबुलेंस भी उपलब्ध कराई जाती है. उन्होंने कहा कि वो बच्चों को शिक्षा भी देना चाहते हैं. उन्होंने बताया कि महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग बैठने की व्यवस्था है. भोजन करने के बाद व्यक्ति अपनी थाली खुद साफ करता है.

अलवर. राजस्थान के अलवर में एक युवा ने कोरोना काल में जरूरतमंद लोगों की मदद करने का फैसला लिया. शुरुआत में जरूरतमंद मरीजों के लिए एंबुलेंस, ब्लड ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था करते हुए शुद्ध खाने के पैकेट पर पहुंचाया. डिमांड बढ़ने लगी तो अलवर में जरूरत के हिसाब से लोगों को भरपेट भोजन दिया गया. आज यह मुहिम एक मिसाल बन चुकी है. 500 दिनों के सफर में 5 लाख से ज्यादा लोग इस मुहिम के तहत भोजन कर चुके हैं. इतना ही नहीं, 1 रुपए में भरपेट भोजन प्रदेश सरकार के इंदिरा रसोई पर भी भारी पड़ रहा है. इसमें लोग आगे आकर अपना सहयोग दे रहे हैं. इसलिए यह कारवां आगे भी बदस्तूर जारी है.

अलवर के 60 फिट क्षेत्र में रहने वाले हिमांशु शर्मा ने 16 जून 2021 को लोगों के सहयोग उसने शहर के बिजली घर चौराहे पर लोगों को खाना खिलाना शुरू किया. शुरूआत में उसने 10 रुपये प्रति व्यक्ति भरपेट भोजन कराया. लेकिन बाद में लोगों के सहयोग मिलने के बाद यह राशि सिर्फ 1 रुपये प्रति व्यक्ति भरपेट कर गई.

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हिमांशु ने बताया कि इसका मकसद यह है कि खाने वाले को यह न लगे कि उसने मुफ्त में भोजन किया है. उन्होंने कहा कि कारवां चलता रहा आज शहर के लोग आगे आकर इस मुहिम से जुड़ते हैं. घर में जन्मदिन हो, शादी की सालगिरह हो या कोई अन्य खुशी का मौका लोग अपनी तरफ से खाने की व्यवस्था करते हैं. एक दिन के भोजन के लिए 5100 रुपए व्यक्ति को देने पड़ते हैं. उसके बाद ढाई सौ से 300 लोगों का खाना तैयार होता है और लोगों को खिलाया जाता है. कुछ लोगों ने आटा दिया तो कुछ ने घी और तेल की व्यवस्था की.

हिमांशु शर्मा का बयान

भोजन की व्यवस्था होने से श्रमिकों को फायदा: हिमांशु ने बताया कि उन्होंने एक संस्था का रजिस्ट्रेशन कराया उसके तहत आज वो लोगों से जुड़े हुए हैं. यह रसोई अलवर शहर में बिजली घर चौराहे पर चलती है. इस चौराहे पर श्रमिक बैठते हैं. भोजन की व्यवस्था होने से श्रमिकों को भी फायदा मिला है. शुरुआत में लोगों ने इसका विरोध किया, तो कुछ ने गलत फैसला बताया. लेकिन बाद में वो लोग ही आगे आकर जुड़ने लगे. उन्होंने बताया कि शराब पीने वाले व्यक्ति को खाना नहीं दिया जाता है. साथ ही खाना बनाने के लिए श्रमिकों को रखा गया. वो सुबह शाम खाना बनाते हैं, तो संस्था की तरफ से उनको वेतन भी दिया जाता है. .

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बदल बदल कर बनता है भोजन: हिमांशु ने बताया कि कुछ लोग यहां आकर केक काटते हैं, तो कुछ मिठाई बांटते हैं. खाने में दो सब्जी, चावल, रोटी और मीठे के अलावा बदल-बदल कर खाने की व्यवस्था की जाती है. उन्होंने बताया कि शुरुआत में उन्होंने नहीं सोचा था की यह मुहिम इस मुकाम पर पहुंचेगी. शुरुआत के दिनों में वो प्रोफेशनल तरह से इस पूरी मुहिम से जुड़े, लेकिन धीरे-धीरे पता ही नहीं चला कि कब वो तन मन से इस कार्यक्रम से जुड़ गए.

ईमानदारी देख लोग जुड़ रहे: उन्होंने बताया वो लेबर कांट्रेक्टर है, लोग अब उन्हें बुलाकर काम देते हैं. उन्होंने बताया कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई की कुछ करने सोची और इस काम को शुरू कर दिया. काम में ईमानदारी देखकर लोग आकर उनके साथ जुड़ने लगे. आज उनको घी, तेल, मसाले, आटा व सभी चीज लोगों की तरफ से उपलब्ध कराई जाती है. साथ ही कुछ साथियों की ओर से अभी रोटी बनाने की मशीन उपलब्ध कराई गई है. इसके अलावा अन्य संसाधन भी अपने आप जुड़ रहे हैं.

भोजन के आलावा कई तरह की करते हैं मदद: उन्होंने बताया कि यहां आने वाले लोगों की वो मदद करते हैं. किसी को ब्लड की आवश्यकता होती है. तो उसे ब्लड भी उपलब्ध कराया जाता है. किसी को एंबुलेंस की जरूरत होती है, तो उसे एंबुलेंस भी उपलब्ध कराई जाती है. उन्होंने कहा कि वो बच्चों को शिक्षा भी देना चाहते हैं. उन्होंने बताया कि महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग बैठने की व्यवस्था है. भोजन करने के बाद व्यक्ति अपनी थाली खुद साफ करता है.

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